कोटा की तरफ उमड़ रहे छात्रों के पांव क्यों थमने लगे, सूने पड़े हॉस्टल-होटल के पीछे ये वजह तो नहीं?

चेतन गुर्जर

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आईआईटी-जेईई और नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए विख्यात कोचिंग नगरी कोटा में छात्रों की आत्महत्या चिंता का विषय है. 1400 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत वाली लग्जरी हॉस्टल परियोजना वाला यह शहर भूतिया लगने लगा है. जाहिर तौर पर यहां आने वाले छात्रों के परिजनों के लिए भी यह चिंता का विषय है. कोटा में रह रहे छात्रों का लगातार बेहद प्रदर्शन. इस साल का इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम का टॉपर भी कोटा से था. दूसरी ओर,  शहर में बढ़ते सुसाइड और कोटा से बाहर सेंटर खुलने के चलते स्टूडेंट की संख्या कम हुई है.

हालात ऐसे है कि कई इमारतें खाली होने की कगार पर है. इन इमारतों पर To-Let और  For Sale के बोर्ड लगाए हुए हैं. इसके पीछे वजह है कि कई कोचिंग संस्थानों में प्रवेश के मामले में 35 से 40 फीसदी तक गिरावट आई है. 

 

कोटा का व्यापार चरमराया!

दरअसल, शिक्षा नगरी में आमतौर पर सालाना 2 लाख से ज़्यादा JEE और NEET उम्मीदवार आते हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. शहर के अलग-अलग इलाकों में करीब 4 हजार हॉस्टल्स पीजी और 1500 से अधिक मैस संचालित की जा रही है. शहर में तकरीबन 4 हजार हॉस्टल और पीजी संचालकों का गुज़ारा इन छात्रों के होने से चलता है. यहां अधिकतर घरों में 6-7 हजार तक के महीने किराए पर छात्रों को रूम दिए जाते रहे हैं. उदाहरण के तौर पर बारां रोड स्थित कोरल पार्क में लगभग 250 से ज्यादा बिल्डिंग बिकवाली के लिए ग्राहक या किराएदार ढूंढ रही है. जिन निवेशकों ने कोरल पार्क की इस योजना में हिस्सा लिया था, वह काफी परेशानी का सामना कर रहे हैं. इस सोसायटी में हॉस्टल पीजी संचालकों की इस साल उनकी मासिक आय लगभग 3 लाख रुपये से घटकर 30 हजार रुपये रह गई है.

जब औद्योगिक नगरी बन गई कोचिंग नगरी

दरअसल, कोटा की पहचान पहले औद्योगिक नगरी के तौर पर थी. कोटा शहर में प्रवेश के दौरान लगे बोर्ड "औद्योगिक नगरी में आपका स्वागत है" इसके गवाह है. लेकिन जब यहां फैक्ट्रियां बंद हुई तो उसके बाद लोगों का कोचिंग की तरफ रुझान बड़ा और कोटा के प्रवेश द्वार पर औद्योगिक क्षेत्र को हटाकर शिक्षा नगरी के बोर्ड लग गए. धीरे-धीरे शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाता यह शहर देशभर में शिक्षा नगरी के नाम पर मशहूर हो गयाय हर साल बच्चों की संख्या बढ़ती गई और क्षेत्र में बड़े-बड़े कोचिंगों ने डेरा डाला. शहर के चारों ओर हॉस्टल भी बनते गए. 

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रिटायर्ड प्रोफेसर प्रेमचंद गौतम बताते हैं कि रेलवे स्टेशन पर बच्चे अपने शहर से आकर जब ट्रेन से उतरते है तो पूरे स्टेशन पर उनको अलग-अलग कोचिंग संस्थान के बड़े-बड़े होर्डिंग नजर आते हैं. ऑल इंडिया रैंक होल्डर के बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे होते हैं. उन टॉपर्स की फोटोज और रैंक देखकर उन बच्चों को भी लगता है कि हमारे भी फोटो एक दिन इन होर्डिंग में लगेगी. फिर उनको लगता है कि अब तो हम 100 फीसदी डॉक्टर या इंजीनियर बन ही जाएंगे. सपना देख तो लेते है पर जब पूरा नहीं हो पाता तो वह अपने आप को नहीं संभाल पाते और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं.  
 

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