4,000 किलो दूरी तय करके जैसलमेर पहुंचे विदेशी साइबेरियन पक्षी, तालाब किनारे दिखने लगा मनोरम दृश्य

विमल भाटिया

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4,000 किलो दूरी तय करके जैसलमेर पहुंचे विदेशी साइबेरियन पक्षी, तालाब किनारे दिखने लगा मनोरम दृश्य
4,000 किलो दूरी तय करके जैसलमेर पहुंचे विदेशी साइबेरियन पक्षी, तालाब किनारे दिखने लगा मनोरम दृश्य
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Siberian Bird in Jaisalmer: रेगिस्तानी इलाकों में इस बार हुई अच्छी मानूसन बारिश के बाद जगह-जगह तालाब और नदियां भर गई है. ऐसे में जैसलमेर (Jaisalmer) में विदेशी पक्षियों की कलरव गूंजनी शुरु हो गई है. खासकर इस बार साइबेरियन बर्ड्स (Siberian Birds in Rajasthan) डेमोसाईल क्रेन जिसे हिन्दी में कुरंजा कहा जाता है. जैसलमेर के विभिन्न हिस्सों में साइबेरियन बर्ड्स ने डेरा डाल लिया है. जैसलमेर के लाठी, धोलिया, खेतोलाई, नोख आदि क्षेत्रो में बड़ी संख्या में कुरंजा बर्ड्स के झुंड देखे जा सकते हैं जिससे वन्य जीव प्रेमियों व पक्षी प्रेमियों में खुशियो की लहर है.

पक्षी प्रेमी राधेश्याम पैमानी ने बताया कि अमूमन अक्टूबर महीने से आने वाले पक्षियों ने सितंबर के पहले हफ्ते में ही जैसलमेर में अपना बसेरा डाल दिया है. इस बार अच्छी बारिश के बाद मौसम अनुकूल होने से हिमालय की ऊंचाइयों को पार कर कुरजां पक्षी ने भारत में प्रवेश किया है. हजारों किमी की उड़ान भरकर 300 से 500 के करीब कुरजां पहुंच गई हैं. अपने पूरे परिवार के साथ लाठी इलाके में बसेरा बना लिया है. अब अगले साल मार्च महीने तक यहां पर बसेरा रहेगा.

कई सदियों से चला आ रहा यह सिलसिला

ये सिलसिला कई सदियों से चला आ रहा है. मध्य एशिया और पहाड़ी इलाकों में तेज सर्दी की वजह से ये गरम इलाकों की तरफ रुख करते हैं. राजस्थान इनका सबसे पसंदीदा इलाका है. जैसलमेर में हर साल हजारों की संख्या में कुरजां पक्षी प्रवास करने आते हैं. फिलहाल 300 से 500 के करीब पक्षियों का झुंड जैसलमेर पहुंचा है. धीरे-धीरे ये संख्या बढ़ती जाएगी और चारों तरफ कुरजां ही नजर आएंगे.

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कुरजां पक्षी ने जैसलमेर में डाला डेरा

पर्यावरण प्रेमी राधेश्याम पेमानी ने बताया कि साइबेरिया, मंगोलिया, कजाकिस्तान मध्य एशिया से हर साल कुरजां पक्षी झुंड में पश्चिमी राजस्थान में प्रवास करती हैं. हिमालय की ऊंचाइयों को पार कर ये भारत में प्रवेश करती है और मार्च-अप्रैल के करीब वापस लौट जाती है. जैसलमेर के लाठी इलाके के खेतोलाई, चाचा, सोढ़ाकोर, डेलासर, देगराय आदि के पास के तालाब पर कुरजां अपना डेरा डालती है. इन कुरजां पक्षियों पर शोध करने वाले भी कई लोग जैसलमेर आते हैं. फिलहाल कुरजां के झुंड ने लाठी, खेतोलाई व चाचा, नोख आदि गांवो में के पास तालाबों पर अपना डेरा डाला है.

अच्छी बारिश के बाद राजस्थान आए कुरंजा

वाईल्ड लाईफ लवर श्याम विश्नोई ने बताया कि प्रवासी पक्षी कुरजां का वजन दो से अढ़ाई किलो का होता है. ये पानी के आसपास खुले मैदान और समतल जमीन पर ही अपना अस्थायी डेरा डालकर रहते हैं. इन पक्षियों का मुख्य भोजन मोतिया घास होती है. पानी के पास पैदा होने वाले कीड़े-मकोड़े खाकर कुरजां अपना पेट भरती हैं. इस साल अच्छी बारिश से इलाके में तरबूज की बढ़िया फसल होगी जो कुरजां का पसंदीदा भोजन है.

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