‘इस घर को जिला नहीं तो कम से कम तहसील तो बनाना ही चाहिए’!
‘This house should be made at least a tehsil, if not a district’!
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‘This house should be made at least a tehsil, if not a district’!
कलयुग के इस दौर में आपने बुजुर्ग मां बाप को वृद्ध आश्रम छोड़ने की खबरें तो कई बार पढ़ी और सुनी होगी लेकिन आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे परिवार से मिलवाने जा रहे हैं जिस परिवार में 10- 20 नहीं पूरे 185 लोग रहते हैं। गांव के लोग मजाक में ही कहते हैं कि इसे घर नहीं तहसील होना चाहिए। अजमेर के रामसर के इस परिवार में आज भी 13 चूल्हों पर 185 लोगों के लिए खाना बनाया जाता है इतना ही नहीं परिवार के बुजुर्ग खुद भले ही अनपढ़ हो लेकिन आज की पीढ़ी को पढ़ा लिखा कर कंपाउंडर और शिक्षक बना रहे हैं। परिवार के 2 सदस्य शिक्षक है तो वही 2 सदस्य कंपाउंडर हैं साथ ही कुछ अन्य सदस्य प्राइवेट नौकरियां कर रहे हैं। इतना ही नहीं पूरे गांव में यह माली परिवार अपना अलग ही वर्चस्व लगता है इसी के चलते 2016 में परिवार की बहू ने सरपंच का चुनाव लड़ा और करीब 800 वोटों से जीत भी हासिल की। यह बात अलग है की परिवार की बड़ी भाभी इससे पहले चुनाव हार चुकी हैं। परिवार के बुजुर्ग विरदी चंद बताते हैं कि उनके पिता सुल्तान ने उन्हें परिवार को एकजुट रखने की सलाह दी थी इसके बाद से ही यह परिवार आज भी संयुक्त रूप से अपना जीवन यापन कर रहा है। विरदी चंद के अनुसार उनके पिता सुल्तान के 6 बेटे है जिनका परिवार लगातार बढ़ता गया और अब यह कुनबा 185 तक पहुंच गया है। परिवार में सबसे छोटे बच्चे का जन्म 5 महीने पहले हुआ था।विरदीचंद बताते हैं की परिवार की महिलाएं सुबह 4:00 बजे से खाना बनाने का काम शुरू कर देती हैं दो चूल्हों पर 25 किलो सब्जी एक समय पर बनाई जाती है साथ ही 25 किलो आटे की रोटियां 11 चूल्हों पर बनाई जाती है। परिवार के बुजुर्गों के अनुसार उनके जीवनयापन का सबसे बड़ा साधन खेती था परिवार के पास करीब 500 बीघा जमीन है जिस पर खेती की जाती है लेकिन परिवार बढ़ने के साथ ही आय के बीच अलग-अलग साधन परिवार ने तलाशना शुरू कर दिया था आज रामसर का यह माली परिवार अपनी 100 से अधिक दुधारू गायों का दूध बेचकर वह पट्टी की ताल मुर्गी पालन करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
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