पायलट की नौकरी ठुकराकर शुरू किया ऑर्गेनिक खेती और पशुपालन, आज लाखों में कर रहे कमाई, देखें

Vijay Chauhan

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Organic Farming: चूरू, कहने को आजकल के युवा भले ही खेती-बाड़ी जैसे परम्परागत धंधों से विमुख हो रहे हों, लेकिन चूरू के विकास रणवां एमसीए करने के बाद टीसीएस जैसी प्रतिष्ठित कंपनी ओर पायलट की नौकरी छोड़कर करीब दस साल से सफलतापूर्वक ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं. विकास ने अब करीब चालीस बीघा में सरसों, गेहूं और रिजका की खेती कर रखी है. उन्होंने पिछले 10 साल में खेत में कोई भी रासायनिक उर्वरक इस्तेमाल नहीं किया है. इसके बावजूद वे अच्छी पैदावार ले रहे हैं और ऑर्गेनिक अनाज के भाव भी अच्छे मिल रहे हैं. वे बताते हैं कि उन्होंने जैविक उर्वरक के दम पर 14.5 क्विंटल प्रति बीघा तक गेहूं का उत्पादन किया है, जो आसपास में एक रिकॉर्ड है और इसके भाव भी बाजार भाव से कम से कम एक हजार रुपए अधिक मिले हैं. ऑर्गेनिक
खेती और पशुपालन से आज लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं.

डीकंपोजर गोबर का करते हैं उपयोग
आमतौर पर किसान गाय के गोबर का ढेर लगा देते हैं और फिर उसे खाद के तौर पर उपयोग करते हैं, जो ज्यादा प्रभावी नहीं है. इसकी बजाय बायो डीकंपोजर का उपयोग करके बनाई खाद ज्यादा गुणवत्ता वाली होती है. बायो-डीकंपोजर में 6-7 बैक्टीरिया होते हैं, जो गोबर को बेहतर उर्वरक में बदलते हैं. हरियाणा-पंजाब में पराली निस्तारण के लिए भी यही डीकंपोजर काम लिया जा रहा है, जिससे अब पराली से प्रदूषण की समस्या का काफी हद तक निदान हुआ है.

खारा पानी चूरू जिले की सबसे बड़ी चुनौती
विकास बताते हैं कि खारे पानी और मौसम के उतार-चढ़ाव के कारण यहां खेती सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है लेकिन किसान यदि परम्परागत खेती के साथ-साथ उन्नत तकनीक अपनाएं और नवाचार पर ध्यान दें तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. किसान पुरानी चीजे मुश्किल से छोड़ते हैं. अब सरकार नैनो यूरिया पर फोकस कर रही है लेकिन किसान अभी भी दाने पर ज्यादा विश्वास कर रहे हैं जबकि नैनो ज्यादा बेहतर है. खेती में देसी तौर-तरीकों के साथ उन्नत और आधुनिक तकनीक पर ध्यान और अपने ज्ञान का समुचित उपयोग जरूरी है.

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खेती-पशुपालन का चोली-दामन सा साथ
विकास कहते हैं कि खेती और पशुपालन का साथ चोली-दामन जैसा है. खेती के बिना पशुपालन और पशुपालन के बिना खेती बहुत मुश्किल है. यह सोचकर उन्होंने शुरू में अमेरिकन गायें लीं. एक समय उनके पास करीब 55 अमेरिकन गायें हो गईं लेकिन उनके दूध की क्वालिटी उन्हें रास न आई. अब उनके पास 15-16 साहीवाल गायें हैं. इनका दूध 65 रुपए लीटर और घी 1500 रुपए लीटर बिक रहा है. यह दूध गाढ़ा तो होता ही है, डॉक्टरों के मुताबिक यह ज्यादा पौष्टिक और अधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता वाला है.

गायों के अलावा विकास बकरीपालन भी कर रहे हैं. सिरोही नस्ल की करीब सौ बकरियां उनके पास हैं. वे बताते हैं कि बकरीपालन इस क्षेत्र में सबसे बेहतरीन व्यवसाय है. यह शुष्क एरिया का पशु है. इसकी खाद गाय के गोबर से भी ज्यादा कारगर है. गोबर की खाद दो-तीन साल फायदा देती हैं लेकिन बकरी की मींगणी की खाद 7-8 साल तक भूमि को पोषण देती है. इसका चारे का खर्चा बहुत कम है. मीट का भाव अच्छा है. आने वाले समय में बकरीपालन व्यवसाय के आगे बढ़ने की भरपूर संभावनाएं हैं.

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सरकारी योजनाओं का मिला भरपूर लाभ
विकास रणवां खुद एक सक्षम किसान हैं फिर भी उन्हें सरकार की सब्सिड़ी योजनाओं का पूरा लाभ मिला है. वे बताते हैं कि ऑर्गेनिक खेती के इस सफर में उन्हें ड्रिप इरिगेशन और पॉवर रिपर के लिए अनुदान मिला. वे बताते हैं कि आज किसानों और पशुपालकों के लिए अनेक योजनाएं सरकार की ओर से संचालित की जा रही हैं, यदि किसान जागरुक होकर इनका लाभ उठाएं तो ये योजनाएं उनके जीवन में बदलाव की वाहक बन सकती हैं. आत्मा के परियोजना निदेशक दीपक कपिला बताते हैं कि विकास रणवां ने खेती और पशुपालन को एक बेहतर व्यवसाय के रूप में स्थापित करके यह साबित कर दिया है कि यदि मन लगाकर काम किया जाए तो खेती-बाड़ी किसी भी मायने में कमजोर नहीं है. सरकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हीं किसानों के लिए ज्यादा कारगर होता है, जो खुद पूरे मन के साथ खेती या पशुपालन कर रहे हैं.

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