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राजस्थान में कांग्रेस ही कांग्रेस के लिए चुनौती, राष्ट्रीय अधिवेशन इन राज्यों में तय करेगा पार्टी का भविष्य? जानें

तस्वीर: राजस्थान तक.

gehlot vs sachin pilot: राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने कमर कसनी शुरू कर दी है. बीजेपी में फेस वार और कांग्रेस में पार्टी के भीतर की कलह कहीं न कहीं बड़ी चुनौती नजर आ रही है. बीजेपी का फेस वार भले ही खुलकर सामने न आ रहा हो पर कांग्रेस में फेस वार की आग अब रह रहकर धधक लगे है.

कयास लगाए जा रहे थे कि 25 सितंबर की घटना के मद्देनजर भारत जोड़ो यात्रा से पहले राजस्थान कांग्रेस को लेकर आला कमान बड़ा फैसला लेगा. फिर चर्चाएं शुरू हुईं कि यात्रा के बाद फैसला होगा. इस संबंध में पार्टी महासचिव जयराम रमेश, राजस्थान प्रभारी रंधावा के बयान ने भी ये साफ कर दिया कि जल्द ही कुछ पुख्ता होने वाला है. पर हुआ कुछ नहीं, बस हो रही हैं चर्चाएं.

इधर चुनाव का वक्त करीब आते देख पायलट गुट एक बार फिर एक्टिव होता नजर आ रहा है. पायलट को सीएम बनाने के सुर फिर तेज होने लगे हैं. इसी बीच सचिन पायलट ने खुद पीटीआई को दिए इंटरव्यू में राजस्थान पर जल्द फैसला करने के साथ 81 विधायकों के इस्तीफे की जांच का मुद्दा भी उठा दिया है.

कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन पर हैं सबकी निगाहें
कुल मिलाकर अब सबकी निगाहें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 24 से 26 फरवरी तक होने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन पर हैं. कांग्रेस के भीतर चल रहा ये तूफान इस अधिवेशन के बाद थम जाएगा या चुनाव आते-आते फूट और बगावत के नए किस्से रचे जाएंगे ये अब देखने वाली बात होगी.

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राजस्थान ही नहीं ये कांग्रेस शासित राज्य भी कलह का शिकार
केवल राजस्थान ही नहीं छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के भीतर की कलह अब सरेआम होने लगी है. दोनों राज्यों में वर्ष 2018 में कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने के बाद से ही फेस वार की जमीन तैयार हो गई थी. माना गया कि राजस्थान में सचिन पायलट के नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव लड़ा और सत्ता वापसी की. वहीं छत्तीसगढ़ में लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस की वापसी के पीछे दो दिग्गज भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव का नाम सामने आया. राजस्थान में ताजपोशी गहलोत की हुई और छत्तीसगढ़ में बघेल की. चर्चाएं आम हुईं कि ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर सीएम होंगे. कई मौके आए, रार-और तकरार का सीन भी नजर आया पर फेस नहीं बदला. अब चुनाव से ऐन पहले पिछले 4 साल के भीतर कई उठापटक का गुबार निकलने लगा है.

माना जा रहा है कि सीएम बघेल की शिकायत पर आलाकमान ने छत्तीसगढ़ के प्रदेश महामंत्री अमरजीत चावला को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया है. इधर प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने उन्हें ही राष्ट्रीय अधिवेशन में जिम्मेदारी सौंप दी है. इसपर चावला ने नोटिस का जिक्र करते हुए राष्‍ट्रीय अधिवेशन में मिली जिम्‍मेदारियों से मुक्‍त करने की मांग की है.

अधिवेशन में भी राजस्थान को लेकर फैसला नहीं हुआ तो?
अब सवाल ये उठता है कि यदि राष्ट्रीय अधिवेशन में भी फैसला नहीं हुआ तो आगे क्या होगा? राजस्थान में कांग्रेस की वापसी कठिन होगी? पिछले कुछ दिनों की घटनाओं पर नजर डाला जाए तो प्रदेश में गहलोत सरकार विधायकों के इस्तीफे को लेकर हुए खुलासे और बजट भाषण में पुराना बजट के अंश पढ़ने के दौरान विरोधियों के टारगेट पर हैं. जिस बजट में वे बचत और राहत की बात करने वाले थे उसकी चर्चा ही उनकी इस गलती से शुरू हुई और आगे भी होती रही.

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25 सितंबर की बगावत के बाद से गहलोत सरकार इस डैमेज की भरपाई में लगी हुई है. इधर पायलट को ये उम्मीद है कि सीएम से बगावत की उन्हें तुरंत सजा मिल गई थी तो आलाकमान से बगावत के बाद गहलोत गुट को तो सजा मिलनी तय है. हालांकि एक्शन में देरी के चलते अब उनका भी धैर्य जवाब देता दिख रहा है.

इधर गहलोत ने महेश जोशी को हटाकर दिया ये संदेश
बजट सत्र के दौरान जलदाय मंत्री और गहलोत गुट के खास कहे जाने वाले महेश जोशी ने मुख्य सचेतक पद से इस्तीफ दे दिया. इसे लेकर चर्चाएं आम हैं कि गहलोत ने ये संदेश देने की कोशिश की है कि उन्होंने अपने स्तर पर कार्रवाई की है. ध्यान देने वाली बात है कि विधायकों के बगावत को लेकर जो तीन नाम सबसे ऊपर थे, जिनपर आलाकमान का फैसला आना बाकी है, उनमें महेश जोशी भी हैं.

ये कार्रवाई महज खानापूर्ति?
इधर महेश जोशी के इस्तीफे पर उनकी ही पार्टी के मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने चुटकी ले ली. खाचरियावास ने कहा कि उनकी पार्टी में एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत है. बावजूद कोई व्यक्ति दो पदों पर रहे वो तो भाग्यवान है. उन्होंने कहा कि ये इस्तीफा इतना लेट क्यों हुआ ये तो सीएम और प्रदेश अध्यक्ष ही बता सकते हैं. कुल मिलाकर इस इस्तीफे के बाद सीएम गहलोत पायलट गुट को मैसेज देने की बजाय अपनों से ही घिरते नजर आ रहे हैं.

क्या नई पार्टी बना सकते हैं पायलट?
पायलट गुट अब उन्हें सीएम बनाने के लिए पूरी तरह से मुखर है. यहां तक कह रहे हैं कि यदि वे सीएम नहीं बने तो राजस्थान में वापसी नहीं होगी. इधर सीएम गहलोत किसी भी सूरत में पर समझौता नहीं करने के मूड में हैं. पूरी तैयारी के बाद बजट पेश कर वे ये संदेश देना चाहते हैं कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को हिला सके ये विपक्ष के बूते की बात नहीं है.

बीजेपी के कद्दावर नेता और अपने बयानों से सत्ता पक्ष के लिए मुसीबत बन जाने वाले कटारिया के राज्यपाल बन जाने से गहलोत को आगामी चुनाव और भी सरल दिखने लगा है, पर अपनों के बीच कलह कहीं पार्टी को टूट की तरफ तो नहीं ले जा रही?

राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो रह-रहकर सचिन पायलट की चुप्पी ये साफ इशारा कर रही है कि वे उम्मीदों के साथ आलाकमान का मुंह ताक रहे हैं. अब उनके लिए रायपुर में होने वाला राष्ट्रीय अधिवेश ही आखिरी उम्मीद बचा है या वो और इंतजार करेंगे ये तो समय ही बताएगा. पर एक बात तो साफ है कि अधिवेशन में फैसला नहीं हुआ तो पायलट गुट खुलकर सामने आएगा. ये बड़ी बात नहीं होगी कि पार्टी में टूट भी हो जाए.

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