चुनावी सालः राष्ट्रीय बैठक में मोदी की निगाहें राजस्थान पर, बीजेपी में चेहरे को लेकर हो सकती है घोषणा! जानें

गौरव द्विवेदी

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Rajasthan News: बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक सोमवार से हो गई है. संभावना है कि राष्ट्रीय नेतृत्व इस बैठक में राजस्थान को लेकर भी फैसले कर सकता है. चुनावी साल में भी प्रदेश संगठन में असमंजस बरकरार है. जहां कांग्रेस में गहलोत और पायलट के बीच फेस वॉर चल रहा है. वहीं दूसरी ओर बीजेपी बिखरी नजर आ रही है. अब सवाल यह है कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोध में पार्टी की कलह बढ़ गई?

जानकारों की मानें तो पार्टी में वसुंधरा राजे के विरोध की कई वजह हैं. जिसके चलते किरोड़ी लाल मीणा, घनश्याम तिवाड़ी और हनुमान बेनीवाल जैसे लोग पार्टी को छोड़कर तत्कालीन बीजेपी सरकार की विरोध करने लगे थे. जिसके बाद दोनों नेता पार्टी में वापस आ गए, लेकिन बेनीवाल अलग पार्टी की राह पर चल पड़े.

वसुंधरा के पास गहलोत की तरह योजनाओं का पुलिंदा नहीं
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. मिथिलेश जैमिनी के अनुसार बीजेपी के सबका साथ सबका विकास वाले विजन में भी महारानी फिट नहीं बैठती. दूसरी ओर उनकी सरकार की योजनाओं का भी उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ. आज गहलोत की तरह उनके पास बताने के लिए कोई खास योजनाएं नहीं हैं. वह योजनाएं जो उनकी सरकार की उपलब्धि रही हो. जयपुर में द्रव्यवती नदी को संवारने के लिए 1200 करोड़ की योजनाएं लाई गई, लेकिन उसकी भी तस्वीर नहीं बदली.

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चुनाव से पहले गुटबाजी में उलझी पार्टी
पिछले 5 साल के दौरान सत्ता को घेरने के लिए बीजेपी एकजुट नहीं दिखाई दी. सदन में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के नेतृत्व में बीजेपी भले ही सरकार के खिलाफ मुखर रही, लेकिन सरकार के खिलाफ सड़क पर एकजुटता नहीं दिखा पाई. हैरानी की बात यह है कि आंदोलन और विरोध में अव्वल कही जाने वाली बीजेपी इस बार सत्ताधारी कांग्रेस के खिलाफ पेपर लीक जैसे मुद्दे पर भी बड़ा प्रदर्शन नहीं कर पाई. बीजेपी के राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की पत्नी गोलमा देवी ने तो यहां तक कह दिया कि बाबा अकेले ही इस मुद्दे पर लड़ रहे हैं. उनका साथ देने के लिए कोई नहीं है.

जातिगत समीकरण भी अब साथ नहीं!
वहीं, खुद को राजपूत की बेटी, जाट की बहू और गुर्जर की समधन कहने वाली वसुंधरा राजे की यह कहावत भी अब बदल गई. एक्सपर्ट्स मानते हैं अब जातिगत समीकरण भी उनके साथ नहीं दिखाई पड़ता, क्योंकि आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद राजपूत खासा नाराज हुए. जिसके बाद उनके करीबी राजेंद्र राठौड़ जैसे नेता भी अब सतीश पूनिया के साथ नजर आते हैं. इसके अलावा गुर्जर आंदोलन के चलते उनके खिलाफ बनी हवा और पायलट जैसे नेताओं के चलते भी समाज दूर हो गया. जाट समाज का समीकरण हनुमान बेनीवाल साध चुके हैं. शायद आलाकमान भी इस बात को भांप चुका है कि पूर्व मुख्यमंत्री अब जातिगत समीकरण के लिहाज से फिट नहीं बैठती.

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जनाक्रोश में महारानी के आईपैड पर रही निगाहें
जनाक्रोश यात्रा में बीजेपी की गुटबाजी जमकर नजर आई. श्रीगंगानगर, झुंझुनू और भरतपुर समेत प्रदेश के कई हिस्सों में बीजेपी को जनता के आक्रोश का ही सामना करना पड़ा. इस यात्रा को वसुंधरा ने आईपैड से संबोधित किया. कयास लगाए जाने लगे कि जनाक्रोश यात्रा के केंद्र में प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया थे. ऐसे में वसुंधरा खेमा कभी नहीं चाहेगा कि पूनिया को क्रेडिट मिले. इन सबके बीच वसुंधरा राजे यूपी के मुख्यमंत्री सीएम योगी से मिल पाए. राजनीतिक गलियारों में चर्चा चली कि पूरे देश में चर्चित यूपी मॉडल को लेकर वसुंधरा की बातचीत हुई. संदेश यह भी था कि क्राइम से निपटने के लिए वसुंधरा बुलडोजर मॉडल को समझ रही हैं.

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पूनिया पर होगा बीजेपी का दांव?
दूसरी ओर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया पार्टी के दिग्गज नेताओं को एक मंच पर लाने में पूरी तरह सफल नहीं हुए. हालांकि उनके पक्ष में कई राष्ट्रीय स्तर के नेता बयान देते चुके हैं. हाईकमान के चहेते होने का उन्हें फायदा भी मिला. पार्टी प्रभारी अरुण सिंह ने आमेर में एक सभा के दौरान कह दिया कि प्रदेश के सबसे बड़े नेता पूनिया है और आने वाले समय में बड़ा नेता होने का इशारा कर दिया. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल भी कह चुके हैं कि ‘उगते हुए सूरज’ सतीश पूनिया के नेतृत्व में देखना शुरू करो और डूबता सूरज देखना बंद करो. इस बयान को वसुंधरा राजे के विरोध के लिहाज से काफी अहम माना गया.

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