सियासी किस्सेः इस दिग्गज नेता ने महिला के घूंघट पर जताई थी आपत्ति, खाना छोड़कर चले गए, जानें

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Rajasthan News: जब देश आजाद हुआ तो राजस्थान के गठन में कई नेताओं की अहम भूमिका थी. उनमें से ही एक थे माणिक्यलाल वर्मा. जिन्हें राजस्थान राज्य का गठन होने से पहले प्रधानमंत्री बनाया गया. राज्य का विलय हुआ तो लोकसभा चुनाव में पहले टोंक और फिर चित्तौड़गढ़ से सांसद भी रहे. वर्मा को राज्य के ऐतिहासिक बिजौलिया किसान आंदोलन से जुड़े रहने की वजह से भी याद किया जाता है. मेवाड़ के इस नेता ने आजीवन किसानो और पिछड़े वर्ग के मुद्दों के लिए संघर्ष किया. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे वर्मा ने सामाजिक कुरीतियों का भी विरोध किया. इसी से जुड़ा एक किस्सा भी खास है जब रूढ़ियो के कट्टर विरोधी वर्मा ने स्त्रियो में पर्दा की प्रथा पर नाराजगी जाहिर की. 

लेकिन वह नियमों के इतने कट्टर थे कि ना सिर्फ उनका परिवार बल्कि उनके पार्टी के सदस्य भी सोच में पड़ जाते थे. दरअसल, उन्होंने यह नियम बना रखा था कि वे उस व्यक्ति के यहां कभी भोजन नहीं करते थे, जिसकी पत्नी पर्दा करती हो. जब कोई काग्रेसी कार्यकर्ता या अन्य व्यक्ति उन्हें अपने यहां भोजन के लिए आमंत्रित करता तो उनकी पहली शर्त यह होती थी कि उनकी पत्नी घूंघट खोलकर खाना परोसें. तभी वे उनका निमंत्रण स्वीकार करेंगे.

ऐसा कई बार हुआ जब उनके करीबी कार्यकर्ताओं ने इस नियम का पालन नहीं किया और वर्मा उनके यहां भोजन किए बिना ही लौट गए. ना सिर्फ घर-परिवार, बल्कि किसी भी सामाजिक या विवाह समारोह में वह शामिल होने से मना कर देते थे. जब यह पता चल जाता कि कोई कांग्रेस कार्यकर्ता अपनी पत्नी से पर्दा कराता है. ‘जो देश के लिए जिए’ किताब में शंकर दयाल सक्सेना ने इसका जिक्र किया. उनके अनुसार उन्हें एक विधानसभा के सदस्य के सम्बन्ध में संदेह हो गया था कि उनकी पत्नी पर्दा करती है तो वर्मा खुद ही उनके घर गए और पत्नी को बुलाने के लिए कहा. उस वक्त नेता के समर्थको ने वर्मा से झूठ कह दिया कि उनकी पत्नी गर्भवती है. इस वजह से वर्मा ने भी संकोच किया.

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सभाओं में भाषण देने के दौरान वर्मा घूंघट नहीं लेने के लिए महिलाओं से करते थे अपील
जब वह गांव में जाते या महिलाओं की सभा मे भाषण देते तो सबसे पहले महिलाओं से घूंघट खुलवाते. कई युवकों ने वचन दिया कि वे अपनी पत्नियो से पर्दा नही करवाएंगे. जब वे
युवक मिलते तो पूछते कि पत्नी पर्दा तो नहीं करती. ऐसे ही राजस्थान मे मृत्यु भोज की पुरानी परम्परा का भी माणिक्यलाल वर्मा ने विरोध किया. जहां कही भी जाते, हमेशा मृत्यु भोज का विरोध करते. बिजौलिया के किसानों ने एक बार मृत्यु भोज किया. जिसकी जानकारी उन्हें लग गई.

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तब उन्होंने पत्र लिखा कि सरपंच और किसान भाई-बहनो, मैं हमेशा इस बात पर जोर देता हूं कि हमें मृत्युभोज बंद करना खुशी से मंजूर करना चाहिए. इसके बाद भी बहुमत ने इस सौगंध को तोड़ा है. मुझे अब उस फौज के साथ नहीं रहना, जिसको अपने वचनों और सौगंधो की इज्जत का ख्याल न हो. ऐसे लोगों के भरोसे देश खतरें में पड़ सकता है. हमने वर्षों तक एक दूसरे का मुसीबत मे साथ दिया, खूब लड़े और स्वराज्य आ गया. इसी के बदौलत किसानो के जुल्मो का अन्त हो गया. पत्र में आगे वर्मा ने लिखा कि अब कोई कर्जा नहीं, दवाब नहीं और आप अपने घर के मालिक हो गए. चाहे बनाओं या बिगाड़ो अब आपको मेरी सेवा की जरूरत नहीं है. 

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जागीरदारों के घोर विरोधी वर्मा ने संविधान सभा में भी की थी बहस
वर्मा देश की संविधान सभा के सदस्य भी रहे. राजस्थान से उनके साथ वी.टी. कृष्णामाचारी, हीरालाल शास्त्री, सरदार सिंह खेतड़ी, जयनारायण व्यास, बलवंत सिंह मेहता, लेफ्टिनेंट कर्नल दलेल सिंह, जसवंत सिंह, गोकुल लाल असावा, बाबू राजबहादुर, रामचंद्र उपाध्याय और मुकुट बिहारी लाल भार्गव भी संविधान सभा के मेंबर बने. स्वतंत्रता सेनानी माणिक्यलाल वर्मा को जागीरदारों का घोर-विरोधी माना जाता था. उन्होंने संविधान सभा की बहस के दौरान कहा था कि राजस्थान में एक वर्ग सोचता है कि जागीरदारी का उन्मूलन अब निश्चित है. जबकि जागीरदारों का दूसरा वर्ग आतंक पैदा करके केंद्र सरकार को प्रभावित करना चाहता है. उन्होंने यह भी आरोप लगाए कि जागीरदारों के वर्ग ने सरकार को भी धमकाना शुरू कर दिया हैं. 

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