कटारिया के बाद अब मेवाड़ में किस करवट बैठेगी राजनीति, पूर्व राजघराने का क्या है ‘लक्ष्य’? जानें

गौरव द्विवेदी

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Rajasthan Assembly Election 2023: उदयपुर शहर विधायक और नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाए जाने के बाद मेवाड़ की राजनीति में बड़ी उथल-पुथल मच चुकी है. पिछले 3-4 दशक की राजनीति के बाद अब बीजेपी में नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं. वहीं कांग्रेस भी नए दांव-पेंच चलने के मूड में है. राजस्थान की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले मेवाड़ में गुलाबचंद कटारिया 40 साल तक बीजेपी में सक्रिय रहे. पूर्व नेता प्रतिपक्ष कटारिया 8 बार के विधायक रह चुके हैं. अब सवाल यह उठ रहा हैं कि मेवाड़ में इस दिग्गज की जगह कौन भरेगा?

इन सब कयासों के बीच मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के राजनीति में उतरने की चर्चाएं भी तेज हो गई है. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कटारिया की सीट पर बीजेपी अब यूथ आइकॉन कहे जाने वाले लक्ष्यराज सिंह पर दांव चल सकती है.

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हालांकि इन सवालों को लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ भले ही स्पष्ट तौर पर ना सुलझाए, लेकिन वह इन दावों को स्पष्ट तौर पर नकार भी नहीं रहे. कही ना कही वह अपने लिए सियासी भविष्य को तलाशने में जुटे हैं. अब इसके मायने भाजपा नेताओं से हो रही उनकी मुलाकातों से भी निकाले जा सकते हैं. पिछले कुछ महीनों के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया से भी वह मुलाकात कर चुके हैं.

मोदी की मौजूदगी में की थी तारीफ 
हाल ही में जब केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उदयपुर स्थित सिटी पैलेस में उनसे मुलाकात की. जिसके बाद जल शक्ति मंत्रालय के एक कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेसिंग से जुड़े और उसी कार्यक्रम को लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने भी संबोधित किया था. जिसमें यहां तक कह दिया कि पिछले 70 वर्षों के दौरान जो नहीं हुआ, वह आज हुआ है. उन्होंने कहा था कि पहली बार जलशक्ति मंत्रालय की स्थापना की गई.

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ऐसे में उनकी गतिविधियों पर नजर डालें तो उसमें राजनीतिक मायने साफ तौर पर नजर आते हैं. पिछले कुछ साल से सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हैं और लाखों फॉलोअर्स हैं. सामाजिक कार्यक्रमों में भी लक्ष्यराज सिंह नजर आते दिखाई देते हैं. सामाजिक कार्यों के चलते चर्चा में रहने वाले लक्ष्यराज सिंह के नाम 7 गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी हैं.

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इन सबके बीच बीजेपी के लिहाज से देखें तो बात सिर्फ उदयपुर शहर की सीट या विधानसभा दावेदारी को लेकर ही नही हैं. क्योंकि कटारिया का प्रभाव क्षेत्र उनके गृह जिले उदयपुर के साथ बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जैसे आदिवासी इलाकों में भी है. जैन समाज से ताल्लुक रखने वाले कटारिया ने राजपूत और आदिवासी जातियों को भी बखूबी साधा.

क्षेत्र की 28 सीटों को कटारिया सीधे प्रभावित करते आए हैं. इसका ताजा उदाहरण यह है कि साल 2018 में सूबे में मात खाने वाली बीजेपी को 28 सीटों में से 15 सीटों पर जीत हासिल कराने में कटारिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. ऐसे में मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य के बूते बीजेपी ना सिर्फ उदयपुर शहर की विधानसभा सीट जीतना चाहेगी, बल्कि इस पूरे क्षेत्र में अपना वर्चस्व भी कायम रखना चाहेगी.

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कांग्रेस तलाश रही अपना पावर सेंटर
इधर, कांग्रेस अपना पावर सेंटर तलाशने में जुटी है. पूर्व कैबिनेट मंत्री गिरिजा व्यास जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता इसी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं. बावजूद इसके कांग्रेस को यहां सफलता हाथ नहीं लगी है. वहीं, सीएम अशोक गहलोत इसी साल जब 7 जनवरी को विधायक प्रीति शक्तावत के घर पहुंचे तो यह पूरे मेवाड़ में चर्चा का विषय बना रहा.

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मेवाड़ में जीत हासिल करने वाले इकलौते कांग्रेसी विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत को पायलट का खास माना जाता था. जब पायलट गुट ने बगावत की तो शक्तावत उनके साथ खड़े थे. जिनके कोरोना से निधन के चलते उपचुनाव में उनकी पत्नी प्रीति शक्तावत मैदान में उतरीं.

अब उनकी पत्नी गहलोत गुट के काफी करीब नजर आती है. खास बात यह है कि 25 सितंबर को गहलोत के समर्थन में इस्तीफे देने वाले विधायकों में प्रीति शक्तावत भी एक थीं. गहलोत ने वल्लभनगर में प्रीति शक्तावत के जरिए कोशिश शुरू कर दी है.

गहलोत ने कहा था हर सौगात दूंगा, मेवाड़ को बनाना है कांग्रेस का गढ़
कांग्रेस मेवाड़ में अपने दशकों पुराने इतिहास को भी दोहराना चाहती है. क्योंकि कांग्रेस के लिए सिरदर्द उदयपुर शहर की यह सीट कभी कांग्रेस का गढ़ भी रही है. पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया साल 1957 से 1972 तक लगातार यहां से विधायक रहे. उनके बाद इस सीट पर कांग्रेस सिर्फ 2 बार जीत हासिल कर पाई है. 1985 से 1990 में डॉ. गिरिजा व्यास और फिर 1998 से 2003 में त्रिलोक पूर्बिया पार्टी के सिबंल से विधानसभा पहुंचे.

ऐसे में कांग्रेस और खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी इस सीट को अपना गढ़ बनाना चाहते है. जिसे वह सार्वजनिक तौर पर जाहिर भी कर चुके हैं. जब वल्लभनगर विधायक के आवास पर सीएम पहुंचे तो चर्चाएं तेज हो गई. तभी गहलोत ने कहा कि मेवाड़ कांग्रेस का गढ़ रहा है. अब फिर से उसी जोश जज्बे के साथ चुनावी मैदान में उतरकर यहां भी भाजपा को पटखनी देने की जरूरत है. आप जो मांगोगे, मैं वो सौगात दूंगा.

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