जैन तीर्थ सम्मेद शिखरजी को बचाने के लिए मुनि सुज्ञेय सागर ने प्राण त्यागे, 25 दिसंबर से थे अनशन पर

विशाल शर्मा

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Rajasthan news: राजस्थान में एक जैन मुनि ने अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. विश्व विख्यात जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने के विरोध में उपवास पर बैठे जयपुर के मुनि सुज्ञेय सागर ने मंगलवार को समाधी मरण ली. सम्मेद शिखर मामले को लेकर मुनि सुज्ञेय सागर ने अन्न जल त्याग कर आमरण अनशन कर रहें थे. जिसमें उन्होंने पंच परमेष्ठि का ध्यान करते हुए अपना देह त्याग दिया.

दरअसल दुनियाभर के जैन धर्मावलंबियों के बीच सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखरजी के रूप में विख्यात झारखंड के गिरिडीह जिले में अवस्थित पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के खिलाफ देशभर में विरोध हो रहा हैं. इसको लेकर जयपुर के सांगानेर स्थित संघीजी मन्दिर में 72 वर्षीय मुनि सुज्ञेय सागर 25 दिसंबर से आमरण अनशन पर थे. लेकिन मंगलवार सुबह उन्होंने सम्मेद शिखर को बचाने के लिए बलिदान दे दिया.

जिसके बाद संघीजी मन्दिर सांगानेर से जैन नसिया रोड अतिशय तीर्थ वीरोदय नगर तक उनकी डोल यात्रा निकालकर अंतिम संस्कार किया गया. इस दौरान मुनि के दर्शन करने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा. इस मौके पर आचार्य सुनील सागर ने कहा कि सम्मेद शिखर जी जैन समाज की आना बान और शान है. राजस्थान की भूमि पर कई साधु-संतो और जैन मुनियों ने धर्म के लिए अपना समर्पण किया है. उन्हीं का अनुसरण करते हुए मुनि सुज्ञेय सागर ने अपने तीर्थ स्थल को बचाने के लिए प्राण त्यागे हैं. आध्यात्मिक संस्कृति की रुपरेखा के लिए अहिंसामयी तरीके से जैन समाज द्वारा चल रहें आंदोलन में अब मुनि सुज्ञेय सागर के देह त्याग के बाद मुनि समर्थ सागर जी ने भी आज से जिंदगीभर के लिए भोजन का त्याग कर दिया हैं.

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