करीब 10 महीने बाद पार्टी के मंच पर राजे की धमक, पुराने तेवर में दिखीं और गरजीं भी

गौरव द्विवेदी

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Vasundhara raje’s comeback in BJP public meeting: राजस्थान चुनाव (rajasthan assembly election 2023) के करीब आते ही बीजेपी में वसुंधरा राजे को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. दरअसल, ये चर्चा पिछले चुनावों की तरह राजे की विपक्ष पर हुंकार को लेकर नहीं, बल्कि अपनी ही पार्टी में अनदेखी को लेकर है. इस चर्चा में बुधवार को तब नया मोड़ आ गया जब करीब 10 महीने बाद राजे पार्टी के मंच पर पुराने तेवर में दिखीं. वो मंच पर मौजूद ही नहीं रहीं बल्कि विपक्ष पर जमकर हमलावर भी हुईं.

इस नजारे के सामने आने के बाद अब सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की है कि ‘महारानी’ का पार्टी में कम बैक हो गया क्या? यहां पार्टी की सियासत में किनारे पर जा रहीं राजे के बदले तेवर पर चर्चा कर रहे हैं.

दरअसल, साल की शुरुआत से ही पूर्व सीएम राजे पार्टी के कार्यक्रमों से दूर रही हैं. अब जब वापसी की तो विरोधियों पर हमलावर राजे ने अपने तेवर पार्टी को भी बता दिए. जिसके बाद उनकी दूरी और मोदी (PM Modi) के मंच पर चुप्पी की चर्चाओं पर विराम लगता नजर आ रहा है. अब सवाल यह उठता है कि क्या वसुंधरा राजे पार्टी में फिर से पकड़ बना रही है? क्या BJP वसुंधरा राजे को दरकिनार कर जोखिम नहीं लेना चाहती?

शाह के साथ मीटिंग में मिला कोई इशारा

माना जा रहा है कि हाल ही में जयपुर में गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्‌डा और महामंत्री बीएल संतोष के साथ मीटिंग के बाद राजे बहुत पॉजिटिव दिखीं थीं. उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी. जबकि शाह जब आए थे तब उनके चेहरे पर एक गंभीरता दिख रही थी. जानकारी के मुताबिक होटल ललित 3 बजे तड़के तक हुई इस मीटिंग में राजे के साथ शाह ने करीब आधे घंटे तक चर्चा की थी. ऐसे में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि इस मीटिंग में राजे को कोई बड़ा संदेश मिला है.

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जानकारों की मानें तो पार्टी इस बात को बखूबी समझती है कि बिना वसुंधरा राजे के चुनाव लड़ना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. कहीं ना कहीं कोशिश इसी बात की है कि राजे गुट हो या उनके विरोधी, सभी को एकजुट कर चुनावी मैदान में जाए और उसके बाद सत्ता हासिल करें.

वसुंधरा ही बीजेपी के लिए सर्वनान्य चेहरा!

CSDS से जुड़े प्रो. संजय लोढ़ा का कहना है कि पार्टी के भीतर रस्साकशी चाहे जैसी भी हो, लेकिन एक बात तो तय है कि बीजेपी की तरफ से सर्वमान्य नेता वसुंधरा राजे ही हैं. लोढ़ा तो यहां तक कहते हैं कि मेरिट के आधार पर सोचा जाए या यूं कहिए कि बीजेपी को किसी भी सूरत में जीतना है तो पूर्व सीएम को प्रोजेक्ट करना जरूरी है. ऐसा नहीं होने पर पार्टी के लिए मुश्किल होगी. बीजेपी के आंदोलन या कार्यक्रम को देखें तो जनाक्रोश यात्रा से लेकर परिवर्तन यात्रा तक में वसुंधरा राजे ज्यादा सक्रिय नहीं दिखीं. जिसका असर ये रहा कि ये सभी कार्यक्रम फ्लॉप रहे.

कर्नाटक वाली गलती दोहरा रही बीजेपी?

प्रो. लोढ़ा पिछले 25 वर्षों से भी ज्यादा वक्त से राजस्थान की राजनीति को करीब से देख रहे हैं. उन्होंने अपने पिछले अनुभवों के आधार पर राय साझा करते हुए कहा कि राजस्थान में इस बार का चुनाव कुछ इस स्थिति में है कि पीएम मोदी और राजे, दोनों का चेहरा राजस्थान बीजेपी के लिए जरूरी हो चला है. ऐसे में ‘पहले चुनाव, फिर चेहरा’ वाली रणनीति बीजेपी के लिए मुश्किल है. क्योंकि अब नेचर ऑफ पॉलिटिक्स बदल गया है.

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उनका कहना है कि अगर अब बीजेपी स्थानीय तौर पर प्रभावी नेताओं को तवज्जों नहीं देती है तो सत्ता की डगर आसान नहीं होगी. राजस्थान ही नहीं, कर्नाटक चुनाव में इसका उदाहरण देखने को मिला कि जहां भी क्षत्रपों को पीछे रखकर सिर्फ और सिर्फ मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया, वहां चुनावी परिणाम बीजेपी के पक्ष में नहीं रहा.

राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ रिश्ते पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?

इन सबके बावजूद फिर सवाल घूम-फिरकर मोदी और वसुंधरा राजे के संबंधों पर ही आ जाता है. एक वक्त था जब कहा जाता था कि ‘केसरिया में हरा-हरा, राजस्थान में वसुंधरा’. लेकिन साल 2018 का चुनाव राजे हारीं और उसके बाद उनके लिए सूबे की सत्ता के लिए ही नहीं, पार्टी में पकड़ के लिए भी संघर्ष नजर आया.

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कयास तो इस तरह के भी लगाए जाते रहे हैं कि राजे और बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. राजनैतिक विश्लेषक की मानें तो वसुंधरा राजे स्वायत्त तौर पर काम करने वाली नेता के तौर पर जानी जाती है. उन्हें अपने राज्य में किसी का भी दखल शायद स्वीकार नहीं हो. उनकी इसी शैली के चलते उनके राज्य में समर्थक है तो वहीं, यही वजह उनके खिलाफ लामबंदी की वजह भी बनती दिख रही है.

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