सिविल लाइंस सीट: गोपाल शर्मा या खाचरियावास? 15 साल के आंकड़ों ने बढ़ाई कांग्रेस की टेंशन

Omprakash Sharma

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सिविल लाइंस सीट: गोपाल शर्मा या खाचरियावास? 15 साल के आंकड़ों ने बढ़ाई कांग्रेस की टेंशन
सिविल लाइंस सीट: गोपाल शर्मा या खाचरियावास? 15 साल के आंकड़ों ने बढ़ाई कांग्रेस की टेंशन
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Civil Lines Vidhan Sabha Seat: जयपुर की सिविल लाइंस सीट (civil lines assembly seat) प्रदेश की सबसे हॉट सीटों में से एक है. यहां के वर्तमान विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास (pratap singh khachariyawas) को कांग्रेस पार्टी ने फिर से उम्मीदवार बनाया है. वहीं बीजेपी की तरफ से पत्रकार गोपाल शर्मा (gopal sharma) को प्रत्याशी बनाया गया है. इस बार सिविल लाइंस में मुकाबला इसलिए भी खास है क्योंकि एक तरफ प्रताप सिंह खाचरिवास पूर्व उपराष्ट्रपति और बीजेपी के दिग्गज नेता भैरोसिंह शेखावत के भतीजे हैं. तो दूसरी तरफ भैरोसिंह शेखावत को पितातुल्य मानने वाले बीजेपी के गोपाल शर्मा हैं जो एक जमाने में उनके काफी करीबी हुआ करते थे.

बीजेपी ने सिविल लाइंस में अरुण चतुर्वेदी का टिकट काटकर नए प्रत्याशी गोपाल शर्मा पर दांव खेला है. 2018 के विधानसभा चुनाव में अरुण चतुर्वेदी प्रताप सिंह खाचरियावास से करीब 18 हजार वोटों के बड़े अंतर से हार गए थे. कांग्रेस के प्रताप सिंह खाचरियावास को 87,937 जबकि बीजेपी के अरुण चतुर्वेदी को 69,859 वोट मिले थे. 

ब्राह्मण वोटर्स का है दबदबा

सिविल लाइंस विधानसभा सीट पर करीब 2 लाख 35 हजार वोटर्स हैं. इनमें ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या करीब 55 हजार हैं जो जीत-हार में अपनी प्रभावी भूमिका निभाते हैं. यही वजह है कि बीजेपी हर बार यहां से किसी ब्राह्मण प्रत्याशी को ही अपना उम्मीदवार बनाती है. संख्या के लिहाज से इसके बाद मुस्लिम और अनूसूचित जाति के मतदाताओं का नंबर आता है. 25 हजार अनुसूचित जनजाति और 25 हजार मुस्लिम वोटरों की संख्या है. इसके अलावा 25 हजार वैश्य, 10 हजार राजपूत और 20 हजार माली मतदाता हैं. इस सीट पर 10 फीसदी मतदाता तो ऐसे हैं जो बाहरी राज्यों से आकर यहां रह रहे हैं. ऐसे में चुनाव में ऐसे मतदाताओं की संख्या भी हार-जीत तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है.

25 साल के आंकड़ों ने बढ़ाई खाचरियावास की टेंशन!

सिविल लाइंस सीट का रिवाज है कि यहां से जिस पार्टी का उम्मीदवार जीतकर आता है निश्चित तौर पर सरकार उसी पार्टी की बनती है. जिस तरह राजस्थान की राजनीति का मिथक एक बार बीजेपी तो दूसरी बार कांग्रेस का रहा है. उसी तरह इस सीट पर भी वोटर पहले ही अनुमान लगा लेते हैं कि सरकार किसकी बनने वाली है. अगर पिछले 15 साल के आंकड़ों की बात करें तो 2008 में कांग्रेस के प्रताप सिंह खाचरियावास, 2013 में बीजेपी के अरुण चतुर्वेदी, 2018 में फिर से कांग्रेस के प्रताप सिंह खाचरियावास ने जीत दर्ज की. अगर इस बार के विधानसभा चुनाव की बात करें तो अधिकतर ओपिनियन पोल राजस्थान में बीजेपी की वापसी की बात कह रहे हैं. इस तरह से सिविल लाइंस सीट का इतिहास कांग्रेस प्रत्याशी खाचरियावास की टेंशन बढ़ा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के गोपाल शर्मा को अपनी राह आसान नजर आ रही है.

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गोपाल शर्मा को PM मोदी के रोड शो से भी उम्मीद

जयपुर शहर की सभी सीटों में सबसे ज्यादा ब्राह्मण वोट सिविल लाइंस विधानसभा सीट पर है. इसलिए शर्मा को यहां ब्राह्मण वोटों पर बड़ा भरोसा है. बीजेपी जयपुर की सभी सीटों पर हिंदू वोटर्स को एकजुट करने की कोशिश में लगी हुई है. 22 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जयपुर में होने वाले रोड़ शो के बाद बीजेपी की स्थिति मजबूत होने की उम्मीद जताई जा रही है. इस वजह से गोपाल शर्मा की निगाहें भी पीएम मोदी के रोड शो पर टिकी हुई है. इससे सिविल लाइंस विधानसभा सीट पर भी बीजेपी के मजबूत होने की उन्हें उम्मीद है.

इस बार क्या रहेगा जनता का मूड?

सिविल लाइंस में मुख्यमंत्री से लेकर हर एक वो मंत्री निवास करता है जो प्रदेश की राजनीति में बड़ा रसूख रखता है. इसलिए इस विधानसभा पर सबकी निगाहें टिकी रहती हैं. गोपाल शर्मा को टिकट मिलने से बीजेपी कि इस सीट पर जीतने की उम्मीद बढ़ गई है. हालांकि गोपाल शर्मा राजनीति में एक नए चेहरे हैं जिन्हें अनुभवी प्रताप सिंह खाचरियावस का सामना करना पड़ेगा. लेकिन एक अनुभवी पत्रकार होने का फायदा गोपाल शर्मा को जरूर मिलेगा. अगर गोपाल शर्मा बीजेपी समर्थकों को एकजुट कर पाते हैं और क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करने का वादा करते हैं तो उनके पास खाचरियावास को हराने का मौका है. हालांकि अब इस सीट पर यह देखना काफी रोमांचक होगा कि दोनों में से कौन उम्मीदवार जीत अपने नाम करता है.

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