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जब धुर-विरोधी नेता के चोटिल होने की मिली खबर तो खुद सुखाड़िया उन्हें ले गए ऑपरेशन थिएटर

तस्वीरः राजस्थान तक

Siasi Kisse: आधुनिक राजस्थान के निर्माता मोहन लाल सुखाड़िया साल 1954 से 1971 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे. जिसके बाद कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के राज्यपाल भी रहे. इंदिरा गांधी के खिलाफ खेमे में राजस्थान के अगुवा नेता रहे सुखाड़िया को उनके व्यवहार के लिए संगठन के नेता ही नहीं बल्कि धुर-विरोधी भी याद करते थे. ऐसे कई मौके आए जब मेवाड़ ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में पकड़ रखने वाले सुखाड़िया के मुरीद उनके विरोधी भी हो गए.

‘मोहनलाल सुखाड़िया स्मरणिका’ किताब में पूर्व सीएम हरिदेव जोशी ने इसे लेकर कई किस्से साझा किए. उन्होंने लिखा कि सुखाड़ियाजी की याद गहराई से मन को कचोटती है. उनके देहावसान को इतना समय हो गया, लेकिन जो क्षति उनके मित्रों और समस्त राजस्थान को हुई और उसकी पूर्ति होती हुई मुझे दिखाई नहीं देती. जोशी ने लिखा कि जब भी कहीं कोई राजनीतिक चर्चा चल पड़ती है सुखाड़ियाजी की याद आ ही जाती है.

ऐसा ही एक किस्सा है कभी सुखाड़िया कैबिनेट में रहे और बाद में उनके विरोधी कुंभाराम आर्य का, जिन्हें राजस्थान में किसान वर्ग के लिए संघर्ष का प्रतीक माना जाता है. कई मौके आए जब आर्य और सुखाड़िया के बीच वैचारिक मतभेद भी दिखे. जिसके चलते किसान नेता आर्य ने सुखाड़िया से अलग राह चुन ली. कुंभाराम आर्य को राजस्थान का किसान वर्ग इसलिए भी याद करता है क्योंकि उन्होंने शोषण और उत्पीड़न के चक्रव्यूह से किसानों को बाहर निकालने के लिए मुहिम चलाई थी.

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10 मई 1914 को जन्मे कुंभाराम राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानियों में भी प्रमुख थे और उन्हें आजादी की जंग में कई बार जेल भी जाना पड़ा था. किसानों के लिए संघर्ष करने के साथ ही वे राजनीतिक जगत में भी अहम पदों पर रहे. इसी दौरान एक किस्सा खास है जब सुखाड़िया और कुम्भाराम के बीच में तनाव चल रहा था. तभी सीकर कलक्टर ने सुखाड़िया को टेलीफोन पर बताया कि बीकानेर से कार में आते हुए कुम्भाराम के पेट में चोट आ गई है. जिसके चलते उन्हें सीकर के अस्पताल ले जाया गया. जहां डॉक्टरों ने यह राय दी कि उन्हें जल्दी से जल्दी जयपुर ले जाना होगा और वहीं ऑपरेशन करवाना होगा. समाचार सुनते ही सुखाड़िया खुद जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल पहुंच गए और वहां डॉक्टरों को बुलाकर ऑपरेशन की तैयारी करवाई. अस्पताल पहुंचते ही सुखाड़िया ने उन्हें संभाला और खुद ऑपरेशन थियेटर में ले गए. तब तक वहां खड़े रहे जब तक कि सफलतापूर्वक ऑपरेशन नहीं हो गया.

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भानुकुमार शास्त्री ने श्रद्धांजलि सभा में कही थी बात- उनके धुर-विरोधी होने का मुझे नहीं हुआ अहसास
राजस्थान की उदयपुर शहर विधानसभा सीट को सुखाड़िया ने अपना गढ़ बनाया. जब उन्होंने चुनाव लड़ा तो कई बार उनके खिलाफ जनसंघ के नेता और भानुकुमार शास्त्री ने भी नामांकन भरा. जब सुखाड़ियाजी का निधन हुआ तो उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में एक शास्त्री भी थे. शास्त्री ने उन्होंने उस सभा में श्रद्धा विभोर होकर कहा था कि मैंने सुखाड़ियाजी के विरुद्ध कितनी ही बार चुनाव लड़ा और चुनावों के बाद सुखाड़ियाजी मुख्यमंत्री बने. उसके बाद उनसे कई बार मिलने का मौका पड़ा. सुखाड़ियाजी ने मुझे कभी यह अनुभव नहीं होने दिया कि मैं वह व्यक्ति हूं जो चुनावों में उनके विरोध में खड़ा होता रहा हूं और उनके राजनीतिक अस्तित्व को चुनौती देता रहा हूं. इस बीच कई सार्वजनिक कार्यों के बारे में उनको कहा तो उन कार्यों को सुखाड़ियाजी ने प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया.

राजस्थान के बाबूजी कहे जाने वाले राजस्थान के मेवाड़ से आने वाला दिग्गज नेता रहे मोहनलाल सुखाड़िया के सिर महज 38 साल की उम्र में राज्य के मुख्यमंत्री का सेहरा सजा. जब वे सूबे की सत्ता पर काबिज हुए तो अगले 17 साल तक कोई हटा नहीं पाया. ना तो विपक्ष और ना ही आलाकमान. इनके लिए कहा जाता है वह पैदल ही घूमा करते थे और सड़कें नापते थे. खेतों में जाकर किसानों से मिला करते थे.

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