राजस्थान: 2023 के चुनाव में कांग्रेस-BJP में कौन होगा Face, सरदारशहर के मतदाता करेंगे फैसला? जानें

गौरव द्विवेदी

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Sardarshahar election: जहां कांग्रेस में सीएम की कुर्सी को लेकर गहलोत-पायलट को लेकर कलह मची है. खींचतान के बीच विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के तौर पर तीसरा नाम भी सामने आ चुका है. सीएम फेस वॉर को लेकर लड़ाई बीजेपी में भी है. ऐसे में सरदारशहर उपचुनाव का नतीजा दावेदारी की लड़ाई में काफी अहम साबित हो सकता है.

क्योंकि सरदारशहर कांग्रेस की सीट है. पार्टी में गहलोत और पायलट के बीच तनातनी भी सरकार बनने के बाद से ही जारी है. राजस्थान तक के साथ खास बातचीत में भी पायलट कह चुके है कि अगले चुनाव से पहले हमें कुछ चीजें बदलनी होगी. पायलट का साफ इशारा है कि गहलोत के चेहरे पर चुनाव नहीं जीता जा सकता. दूसरी ओर, चूरु जिले की जिस विधानसभा सीट में मतदान चल रहा है. वह राठौड़ का गृह जिला है और पूनिया भी इसी जिले से आते है. प्रदेश अध्यक्ष के नाते पूनिया के लिए दोहरी चुनौती है.

राजनैतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी हाईकमान की पसंद बने पुनिया के नेतृत्व में अगर बीजेपी चुनाव हारी, तो वसुंधरा गुट को हावी होने क मौका मिल जाएगा. कहीं ना कहीं पूनिया इस संदेश को समझ रहे है. ऐसे में हाईकमान की पसंद पूनिया इस मौके को गंवाना नहीं चाहेंगे. विधानसभा उपचुनाव को 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल मानने से इनकार करने वाले पुनिया प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ रहे है. उन्होंने कहा था कि एक उपचुनाव कभी भी सेमीफाइनल नहीं होता है.

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ऐसे में सरदारशहर सीट राजस्थान की राजनीति का केंद्र बन चुकी है. 8 दिसंबर के यह नतीजे अगले साल होने वाले सियासी संग्राम से पहले काफी कुछ तस्वीर साफ कर देंगे. पूनिया-राठौड़ का गृह जिले चूरू की सीट दोनों नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का सवाल और बड़ी चुनौती है. 

भाजपा प्रत्याशी अशोक पींचा के समर्थन में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष कई किलोमीटर पैदल चलकर जनसंपर्क करते नजर आ रहे है. पूनिया अपनी सभाओं में प्रदेश की कानून व्यवस्था की नाकामी को मुद्दा बनाने में लगे है.

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4 बार तारानगर और 3 बार चूरु में जीते, उपचुनाव में अब डेरा जमाकर बैठे है राठौड़ः

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राजेंद्र राठौड़ ने साल 1990, 1993, 1998, 2003 और 2008 में तारानगर से जीत दर्ज की. जबकि 2013 और 2018 में चूरू विधानसभा सीट से चुनाव जीतें. 7 बार रिकॉर्ड जीत हासिल कर चुके राठौड़ भी ताजपोशी के इंतजार में है. अब सरदारशहर उपचुनाव में भी राठौड़ डेरा जमाए बैठे है. विश्लेषकों का मानना है कि पूरे जिले में राठौड़ का वर्चस्व है. जिसे वह रिकॉर्ड जीत से साबित भी कर चुके है. अब सरदारशहर पर बीजेपी प्रत्याशी की जीत होती है, तो राठौड़ को अपनी ताकत दिखाने का मौका मिलेगा. क्योंकि सीएम की दावेदारी में वह भी पीछे नहीं है. ऐसे में चूरू शहर से विधायक राठौड़ के लिए 70 किमी दूर इस सीट पर हार उनके पक्ष में नहीं होगी.

गहलोत के लिए क्यों अहम है चुनाव, हारे तो दिल्ली तक जाएगा संदेश:

कांग्रेस की जीत गुटबाजी का सामना कर रहे सीएम अशोक गहलोत को मजबूती देगी. कांग्रेस के खाते में रह चुकी सीट फिर से हासिल कर गहलोत संदेश देना चाहेंगे कि उनका जादू पिछली बार की तरह बरकरार है. जिससे उन्हें रणनीतिक बढ़त मिलेगी. वहीं, अगर सीट हारे तो पायलट गुट इस बात को दिल्ली तक पहुंचाने में नहीं चूकेगा. हार के सियासी मायने यह होंगे कि गहलोत के दम पर अगला चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है.

कांग्रेस का उपचुनाव में बेहतर रहा है रिकॉर्डः 

वहीं, सीएसडीएस के स्टेट कॉर्डिनेटर प्रो. संजय लोढ़ा का कहना है कि सरकार चाहे किसी की भी रही हो, लेकिन उपचुनावों के मामले में कांग्रेस का रिकॉर्ड प्रदेश में बेहतर रहा है. इस बार उपचुनाव भाजपा जीतती है, तो प्रदेश नेतृत्व के लिए ये बड़ी उपलब्धि होगी. शायद वसुंधरा गुट के लिए स्थिति तभी बेहतर होगी, जब चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में ना आए. जिसका ठीकरा पूनिया के सिर फूटेगा. इससे भाजपा का आंतरिक कलह भी गहरा जाएगा.

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