धौलपुर में दिखा दुर्लभ जीव सियागोस, देश के 95 प्रतिशत हिस्से से हो चुका विलुप्त

Umesh Mishra

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Dholpur news: धौलपुर में देश से विलुप्त हो रहा बिल्ली प्रजाति का दुर्लभ जीव एशियाटिक कैराकल (सियागोस) दिखा है. जो वन्य जीव प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है. यह जीव दुनिया में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. बिल्ली प्रजाति का दुर्लभ जीव एशियाटिक कैराकल बेहद ही खूबसूरत और फुर्तीला होता हैं. जिसे हिंदी में सियागोस कहते हैं और यह जंगल में कलाबाजी करते हुए उड़ते पक्षियों का शिकार कर अपना भोजन बना लेता है. यह झाड़ियों के बीच छिप कर अचानक पक्षियों को झपट कर शिकार बनाता है. मादा ही बच्चों के बड़े होने तक उनके साथ रहती है. केवल जनवरी से फरवरी के बीच ही नर व मादा साथ रहते हैं. सियागोस को धौलपुर के सरमथुरा उप खंड के जंगलों में देखा गया.

बता दें भारत के कच्छ के रण और रणथंभौर से कूनो तक के जंगलो में इनकी संख्या करीब सौ के आसपास ही बची है. धौलपुर जिले के सरमथुरा उप खंड में सियागोस की संख्या करीब 9 पाई गई है, जो जंगल में लगे टाइगर कैमरे में ट्रैप हुए हैं. जीव प्रेमी देश के 95 प्रतिशत हिस्से से विलुप्त हो चुके दुर्लभ जीव सियागोस के संरक्षण के लिए राजस्थान सरकार को कदम उठाने की मांग कर रहे हैं. आजादी के बाद देश में चीता के बाद विलुप्त होने वाला यह दूसरा खूबसूरत वन्य जीव होगा.

गौरतलब है कि भारत में चीते के बाद विलुप्त होने वाला ये दूसरा वन्य जीव है, जिसके लिए धौलपुर से लेकर रणथम्भौर तक वन क्षेत्र इनके लिए बेहतर साबित होगा. इसके बावजूद सरकार इनकी कम होती संख्या और प्रजाति को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही हैं.

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क्षेत्रीय वन अधिकारी अमर लाल मीणा ने बताया कि धौलपुर जिले के जंगलो में एक नया जानवर देखने को मिल रहा हैं. यह विलुप्त हो चुका है, यह झिरी और खुशालपुर के जंगलो में देखने को मिला है. जंगलो में टाइगर के जो कैमरे लगाए गए हैं, उनमे यह ट्रैप हो रहा है. इसे कैराकल और हिंदी में सियागोस कहते हैं. बहुत दिनों बाद देखने को मिला हैं और सभी जंगलो से विलुप्त हो चुका है.

एशियाटिक कैराकल (सियागोस) कहां-कहां हैं
भारत के कच्छ के रण और रणथंभौर से कूनो तक के जंगल, पाकिस्तान के बलूच, ईरान और तजाकिस्तान में ही बचे हैं. दुनिया से विलुप्त हो रहा एशियाटिक कैराकल (सियागोस) दुर्लभ जीव लंबे समय से जिले के सरमथुरा उप खंड के खुशालपुर और झिरी जंगलो में देखने को मिला हैं और यह जीव केवल रणथंभौर में मौजूद है. लेकिन यहां पर भी इस दुर्लभ जीव को लेकर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है.

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