सीएम साहब.. जब आपने खुद ही मान लिया था सचिन पायलट और आप खुद दोनों पार्टी के एसेट हैं तो फिर ये मानेसर वाला रायता दोबारा क्यों फैलाया। महारानी के गढ़ में पहुंचकर गहलोत ने सियासी चाल नहीं चली बल्कि जादूगरी और बाजीगरी वाला वो ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया, जिससे ना तो पायलट बच पाए और ना हीं महारानी ही अछूती रहीं। कई नेता आरोप लगाते हैं कि वसुंधरा-गहलोत मिले हुए हैं, अभी कुछ दिन पहले ही महारानी अपनी सफाई भी दे चुकी हैं, लेकिन गहलोत जी ने राजे पर ऐसा बयान देकर एक बार फिर से उन आरोपों पर बल दे दिया है। सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, ये बात गहलोत हों या खड़गे, राहुल, प्रियंका और सोनिया सबको मालूम है, और शायद गहलोत जी को पायलट से नहीं बल्कि उनकी इस लोकप्रियता से ही सबसे ज्यादा डर लगता है। इसीलिए जब भी पायलट की सियासत राजस्थान में उफान पर होती है, सचिन के समर्थक हजारों की संख्या में एकजुट होते हैं तो गहलोत जी शायद घबरा से जाते हैं, और फिर से राग मानेसर अलापने लगते हैं, गहलोत साहब कभी 25 सितंबर पर भी कुछ सुनाइए… क्यों की पब्लिक भी अब कुछ नया सुनना चाहती है। पायलट को छोड़िए, कभी खुद को मर्द बताने वाले शांति धारीवाल के किस्से भी सुनाइए. धर्मेंद्र राठौड़ के बारे में बताइए और महेश जोशी जी के कारनामों से भी जनता को रूबरू करवाइए… क्यों कि आपके सामने पड़ी ये खाली कुर्सियां आपको इशारा कर रही हैं कि लोग अब ना तो महारानी के खिलाफ सुनना चाहते हैं और ना ही पायलट के… अगर पायलट कैंप ने 2020 में मानेसर में बगावत की थी तो 25 सितंबर को जयपुर में गहलोत गुट ने क्या किया था। पब्लिक को इसका भी जवाब चाहिए। अब कुछ नया कीजिए साहब, चुनावी साल है वोट बड़ी मुश्किल से मिलते हैं।
There is no magic on the public, Gehlot is firing ‘arrow’ on the queen, ‘sword’ on the pilot!