कौन होगा BJP का नया प्रदेश अध्यक्ष, क्या वसुंधरा राजे के खास को मिलेगी कुर्सी या पूनिया ही रहेंगे काबिज? जानें

गौरव द्विवेदी

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Rajasthan News: भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 16-17 जनवरी को दिल्ली में होगी. यह बैठक राजस्थान के लिहाज से खास रहने वाली है. क्योंकि संगठन के फैसलों के साथ ही इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति पर भी मंथन होगा. जिसमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश समेत कई अहम राज्यों पर चर्चा होगी. खास बात यह है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का 3 साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है. ऐसे में पूनिया को दोबारा मौका मिलने या नए अध्यक्ष बनाए जाने का फैसला भी इस बैठक में होने की संभावना है.

प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज से प्रदेश अध्यक्ष का फैसला महत्वपूर्ण होगा. क्योंकि कई अहम फैसले लेने के साथ ही चुनाव समिति में भी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी. जिसमें प्रत्याशी के टिकट से लेकर चुनावी कार्यक्रम भी शामिल है. पेंच इसी बात को लेकर फंसेगा कि आलाकमान किसे नया अध्यक्ष नियुक्त करे. क्योंकि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे पार्टी ऑफिस में अपने खास व्यक्ति पर दांव लगाएगी. दूसरी ओर बीजेपी में सीएम के ख्बाव देख रहे कई दिग्गज नेता चाहेंगे कि इस मामले में वसुंधरा राजे मात खा जाए.

यानी सीएम की दावेदारी से पहले प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में अप्रत्यक्ष तौर पर फेस वॉर देखने को मिल सकता है. हालांकि यह पहली बार नहीं होगा जब बीजेपी हाईकमान के सामने प्रदेश अध्यक्ष बनाने को लेकर चुनौती रहेगी. बता दें कि साल 2018 में भी अध्यक्ष पद के लिए 73 दिन की खींचतान चली थी. तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे के करीबी अशोक परनामी ने पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. राजस्थान में उपचुनाव के दौरान 2 लोकसभा और 1 विधानसभा सीट पर मिली हार के बाद परनामी ने इस्तीफा सौंप दिया था.

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तब कयास लगाए कि अमित शाह-मोदी की जोड़ी राजस्थान में वसुंधरा राजे का हल निकालने में सफल होगी. लेकिन हुआ भी वहीं जो महारानी चाहती थी और उनके खास मदनलाल सैनी को अध्यक्ष बना दिया गया. अब पूनिया का कार्यकाल खत्म हुए सप्ताहभर बीत चुका है. ऐसे में सियासी हलचल भी तेज होने के आसार है.

एक दशक तक रहा वसुंधरा राजे का पार्टी ऑफिस पर कब्जा
दिलचस्प बात यह है कि साल 2008 के बाद एक दशक से ज्यादा समय तक पार्टी ऑफिस में वसुंधरा राजे का दबदबा रहा. साल 2008 में अरुण चतुर्वेदी की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति ललित किशोर चतुर्वेदी के कोटे से हुई. जिसके बाद अरुण चतुर्वेदी ने सियासी मिजाज को भांप लिया और धीरे-धीरे वसुंधरा राजे के प्रभाव में आ गए. इसके बाद सालभर के लिए वसुंधरा राजे (2013-14) भी अध्यक्ष बनीं. साल 2014-18 के दौरान अशोक परनामी और फिर मदनलाल सैनी को अध्यक्ष बनाया गया. सैनी के बाद सतीश पूनिया के हाथ में कमान आने से वसुंधरा का विरोधी गुट सक्रिय दिखाई देने लगा.

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पूनिया भले ही अकेले मोर्चे पर लड़ते दिखाई दे लेकिन हाईकमान के चहेते होने का उन्हें फायदा भी मिला. इन चर्चाओं ने जोर पकड़ा जब पार्टी प्रभारी अरुण सिंह ने आमेर में एक सभा के दौरान कह दिया कि प्रदेश के सबसे बड़े नेता पूनिया है और आने वाले समय में बड़ा नेता होने का इशारा कर दिया. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल भी कह चुके हैं कि ‘उगते हुए सूरज’ सतीश पूनिया के नेतृत्व में देखना शुरू करो और डूबता सूरज देखना बंद करो. इस बयान को वसुंधरा राजे के विरोध के लिहाज से काफी अहम माना गया.

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वसुंधरा का कोई खास या न्यूट्रल इमेज वाला नेता होगा अध्यक्ष?
इन सबके बीच सवाल वहीं खड़ा कि आगे क्या होने वाला है. जनवरी में होने वाली इस बैठक में सियासी पारा कितना बढ़ेगा. लेकिन वसुंधरा खेमा चाहेगा कि उनकी पसंद का ही कोई नेता अध्यक्ष बना दिया जाए. मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर में राजनीति विभाग में विभागाध्यक्ष रहे प्रो. अरुण चतुर्वेदी बताते हैं कि अगर सतीश पूनिया को रिपीट नहीं किया गया तो संभव है कि वसुंधरा राजे अपने कोटे से किसी ओबीसी नेता को अध्यक्ष पद पर देखना चाहेंगी. वहीं, वसुंधरा की दूसरी कोशिश यह भी हो सकती है कि उनका करीबी ना सही तो उनका स्पष्ट रूप से विरोधी भी कुर्सी पर काबिज ना हो सके.

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