Good news: दुनिया में लुप्त हो रहा ये जीव इस नदी में तेजी से बढ़ रहा, ताजा रिपोर्ट में खुलासा

Umesh Mishra

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वन्यजीव प्रेमियों के लिए राजस्थान के धौलपुर (Dholpur news) से अच्छी खबर आई है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा में बहने वाली चंबल नदी में घड़ियालों की संख्या में इजाफा देखा जा रहा है. दुनिया में तेजी से लुप्त हो रहे इस जीव की संख्या भारत में और वो भी राजस्थान की इस नदी में बढ़ रही है. 

वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट की मानें तो चंबल का साफ पानी इन जलीय जीवों के लिए काफी बेहतर है. यहां केवल घड़ियाल नहीं बल्कि डॉल्फिन और मगरमच्छों की संख्या में बड़ा इजाफा देखा गया है. चंबल में नदी में हाई रेज्योलूशन वाले कैमरे की मदद से तीन राज्यों के वन्यजीव विशेषज्ञों ने जलीय जीवों की गिनती की है. गिनती के रिजल्ट उत्साहित करने वाले हैं.

 

13 दिन तक चली गिनती

करीब 13 दिन चंबल (Chambal river) में 435 किलोमीटर दूर पंचनदा तक 11 जलीय जीव विशेषज्ञों की टीम ने गणना पूरी कर दी है. गणना की रिपोर्ट भारत सरकार को भेज दी गई है. एनसीएस प्रोजेक्ट कोर्डिनेटर आमिर खान के मुताबिक चंबल नदी में जलीय जीवों के संरक्षण और संवर्धन के कारण गणना में इस वर्ष दो हजार 456 घड़ियाल मिले हैं. पिछले वर्ष दो हजार 108 घड़ियाल गिने गए थे. इस वर्ष 348 घड़ियाल बढ़ गए हैं. देश में सबसे ज्यादा घडि़याल मध्य प्रदेश की सीमा में बह रही चंबल नदी में देखे गए हैं. इस साल 15 डॉल्फिन बढ़ी हैं, जिनकी संख्या अब 111 हो गई है. मगरमच्छ पचास बढे़ हैं और इनकी संख्या अब 928 हो गई है. चम्बल नदी में घड़ियाल, मगरमच्छ और डॉल्फिन के परिवार में बढ़ोत्तरी होना अच्छी खबर है. 

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ऐसे हुई जलीय जीवों की गिनती

डीएफओ स्वरूप दीक्षित ने बताया कि इस साल चंबल में जलीय जीवों के बेहतर संरक्षण और संवर्धन के चलते घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन और स्किमर की संख्या बढ़ी है. यह ख़ुशी की बात है. इस साल जीव जन्तुओं की गणना में वाइल्ड लाइफ कन्जर्वेशन ट्रस्ट, वाइल्ड इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया, बॉम्बे नेशनल हिस्ट्री सोसाइटी समेत उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के विशेषज्ञ शामिल रहे. विशेषज्ञों के दल ने बाइनाकुलर समेत हाईरिज्योलूशन कैमरों और सीधे आंखों से गणना की है.

इसलिए बढ़ रही घड़ियालों की संख्या

घड़ियाल दिसम्बर और जनवरी में मेटिंग करते हैं. मार्च-अप्रैल में अंडे देते हैं. जून में बच्चे अंडों से बाहर आ जाते हैं. मादा घड़ियाल रेत में 30 से 40 सेमी का गड्ढा खोद कर 40 से लेकर 70 अंडे देती हैं. करीब महीने भर बाद अंडों से बच्चे मदर काल करते हैं, जिसे सुन मादा रेत हटाकर बच्चों को निकालती है और चंबल नदी में ले जाती है. चंबल में अंडों और बच्चों को खतरा बहुत रहता है. दूसरे शिकारी जीव, पक्षी और चंबल की तेज धारा घड़ियालों के अंडे और न्यू बॉर्न बेबी के मौत का कारण बनते हैं. ऐसे में मध्य प्रदेश के देवरी अभ्यारण केंद्र में 200 अंडे प्रति वर्ष चम्बल से कलेक्शन कर कैप्टिविटी हैचरी में रखते हैं. यहां घड़ियालों की लंबाई 1.2 मीटर होने पर चम्बल नदी में छोड़ा जाता है. 

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