100 लड़कियों से गैंगरेप, Ajmer 'सेक्स स्कैंडल' की वो कहानी जिसमें रसूखदार परिवारों की बेटियां हुईं थीं शिकार

राजस्थान तक

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तस्वीर: राजस्थान तक.
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कर्नाटक के प्रज्जवल रेवन्ना (prajwal revanna video) के कथित सेक्स वीडियो से देशभर चर्चा जोरों पर है. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा (hd deve gowda Prajwal revanna) के पोते और पूर्व मुख्यमंत्री एसडी कुमारस्वामी के भतीजे प्रज्जवल रेवन्ना पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया, उनके वीडियो बनाए और ब्लैकमेल किया. आरोप है कि प्रज्जवल रेवन्ना के ऐसे 2900 से ज्यादा अश्लील वीडियो एक पेन ड्राइव (prajwal revanna 2900 videos) में मिले हैं जो अब वायरल हो रहे हैं. इधर ये सब होते ही रेवन्ना 26 अप्रैल को यूरोप दौरे पर निकल गए. 

ऐसा ही कुछ अजमेर (Ajmer 1992 sex scandal Full story) में साल 1992 में हुआ जिसे जानकर पूरा देश हिल गया. शहर के सबसे बड़े स्कूल जिसमें रइस घरों की लड़कियां पढ़ती थीं. उसी स्कूल की करीब 100 से ज्यादा लड़कियों की अश्लील तस्वीरें खींची गईं, एक फॉर्म हाउस में उनका गैंगरेप (Big gangrape case of rajasthan) हुआ. लड़कियों के साथ रेप की तस्वीरों का प्रिंट शहर में बंट रहा था. जिसने तस्वीरें पाईं उसने ब्लैकमेल करना शुरू किया और फिर रेप...प्रशासन तक तस्वीरें पहुंची फिर भी एक्शन होने की बजाय मुंह पर ताले लगा लिए गए.

फिर एक अखबार में छपी खबर ने तहलका मचा दिया. इस पूरे मामले का खुलासा होते ही पूरा देश दहल गया. इस लड़कियों ने तो मौत चुन लिया और दुनिया छोड़ गईं. इस जघन्य अपराध पर फिल्म ‘अजमेर 92’  (film Ajmer 92) बनी है जो तमाम विरोधों और विवादों के बावजूद 21 जुलाई को रिलीज हो चुकी है. 

इतिहास में वर्ष 1992 काला अध्याय बना

ये कहानी साल 1992 में वहां से शुरू होती है जब कुछ युवा नेताओं ने एक बिजनेसमैन के बेटे से दोस्ती की. उस युवक को झांसे में लेकर एक पोल्ट्री फॉर्म पर ले जाकर कुकर्म किया. इसकी अश्लील तस्वीरें खींचकर ब्लैकमेल करने लगे. आरोपियों ने युवक को अपनी गर्लफ्रेंड को लाने को कहा. वो गर्लफ्रेंड एक नामी कॉलेज में पढ़ती थी. युवक दबाव में आ गया और फायसागर स्थित फरुख चिश्ती के पॉल्ट्री फॉर्महाउस पर लेकर आया. इस लड़की के साथ भी आरोपियों ने गैंगरेप किया. फिर इसकी न्यूड तस्वीरें क्लिक कर ब्लैकमेल किया. लड़की पर दबाव बनाया कि वो अपनी फ्रेंड्स को लेकर आए. ऐसे एक के बाद एक 100 से ज्यादा लड़किया से पोल्ट्री फॉर्म पर सामूहिक बलात्कार हुआ. ये सभी लड़कियां 17-20 साल एज ग्रुप की थीं.  

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न्यूड तस्वीरों की कॉपियां बंटने लगीं

इधर अश्लील तस्वीरों की रील साफ करने के लिए आरोपियों ने जिस फोटो लैब में दी वहां के एक कर्मचारी ने इनकी और कॉपियां बनाकर दूसरों को दे दी. अब ये तस्वीरें बाजार में हाथों-हाथ बंटने लगीं. जिनके पास ये तस्वीरें पहुंचीं उन्होंने ही लड़कियों को ब्लैकमेल किया. फिर अलग-अलग स्थानों पर बुलाकर जबरन रेप किया. ये सब होता देख 6 लड़कियों ने सुसाइड कर लिया. बाकी लड़कियों में से अधिकांश के परिवार वालों ने मुंह मोड़ लिया. आज भी वो लड़कियां जो अब दादी-नानी तक बन चुकी हैं छिप-छिपाकर केस की तारीखों पर कोर्ट जाती हैं. 

पुलिस तक ऐसे पहुंची खबर

जब तस्वीरें शहर में बंटने लगीं तो कुछ लड़कियां थाने पहुंच गईं. पुलिस के सामने जो बात आई उससे उसके होश उड़ गए. दरअसल ये सारी लड़कियां शहर के बड़े-बड़े अफसरों, रइसों की बेटियां थीं और आरोपी अजमेर शहर यूथ कांग्रेस प्रेसिडेंट, वॉइस प्रेसिडेंट और जॉइंड सेक्रेटरी के साथ-साथ शहर के कुछ रईसजादे थे. केस के मुख्य अभियुक्तों में अजमेर यूथ कांग्रेस अध्यक्ष फारुख चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती के नाम सामने आते ही पुलिस भी घबरा गई और केस को दबाने की कोशिश करने लगी. ध्यान देने वाली बात है कि अजमेर जिला पुलिस प्रशासन ने गोपनीय जांच में यह जान लिया था कि गिरोह में दरगाह के खादिम परिवारों के कई युवा रईसजादे शामिल हैं. ये राजनीतिक और आर्थिक रूप से काफी प्रभावशाली हैं. 

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एक अखबार से पूरे शहर ने जाना, फिर मचा बवाल

अभी पीड़िताएं पुलिस से न्याय की उम्मीद लगा रही थीं. पुलिस केस दबा रही थी और उनकी उम्मीदें टूटती जा रही थीं. ऐसे में दैनिक नवज्योति दैनिक अखबार में छपी खबर ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया. युवा रिपोर्टर संतोष गुप्ता ने खबर लिखी-'बड़े लोगों की पुत्रियां ब्लैकमेलिंग का शिकार'. इस खबर के साथ अखबार शहर में बंटा और लोग सिहर गए. पूरा शहर क्रोध और पछतावे की आग में जलने लगा. क्रोध उन आरोपियों पर और पछतावा इस बात का कि काश अपने दोस्तों की बात मान उस पोल्टी फॉर्म पर न जातीं बेटियां. इन सबके बीच आरोपी सबूत मिटाने में और ओहदेदार उन्हें बचाने में लग गए. 

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शहर छोड़कर जाने लगा पीड़िताओं का परिवार?

शहर में खबर फैलते ही कई लोग रातों-रात शहर छोड़कर परिवार के साथ जाने लगे. पीड़िताओं का मानसिक दशा दयनीय थी. परिवार भीतर ही भीतर घुट रहा था. उनके घरों की दीवारें सिमटती जा रही थीं. चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था. न्याय के दरवाजे तब बंद थे. इन सबके बीच कुछ प्रशासनिक अधिकारी शासन के आदेश का पालन करने में व्यस्त थे और शासन अपनी कुर्सी बचाने में लगा था.  

मुख्यमंत्री भैरोंसिंह ने कार्रवाई का आदेश दिया

इधर जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन को लगा रहा था कि पीड़िताओं के सामने आए बिना यदि किसी पर भी हाथ डाला जाएगा तो शांति और कानून व्यवस्था को सामान्य बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा. साथ मामले में कई प्रभावशाली परिवारों की बेटियों के शामिल होने से पुलिस के लिए ये भी बड़ी चुनौती थी. लिहाजा पुलिस प्रशासन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भाजपा के भैरोंसिंह शेखावत को घटना की पूरी जानकारी दी.

कहा जाता है कि तब सीएम भैरोसिंह शेखावत ने शांति और कानून व्यवस्था बिगड़ने नहीं देने और अपराधियों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ने की बात कहते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करने को कहा. इधर पुलिस और प्रशासन कार्रवाई कैसे किया जाए पर विचार कर रहा था, उधर आरोपियों को साक्ष्य मिटाने और फरार होने का मौका मिल गया.

कार्रवाई न होता देख अखबार में छप गईं तस्वीरें

दैनिक अखबार में पहली खबर छपे करीब 15 दिन बीत चुका था.बावजूद इसके कोई कार्रवाई नहीं होते देख दूसरी खबर छपी. इसबार तो पत्रकार संतोष गुप्ता ने दूसरी खबर ‘छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आजाद कैसे रहे गए?’ शीर्षक से प्रकाशित की और आरोपियों की शर्मसार कर देने वाली फोटो भी छाप दी. इन तस्वीरों में वे लड़कियों के साथ अपत्तिजनक अवस्था में थे. ये खबर फोटो के साथ आते ही पूरे राजस्थान में बवाल मच गया. 

गृह मंत्री ने डेढ़ महीने पहले ही देख ली थी तस्वीरें?

इधर अखबार में तीसरी खबर ‘सीआईडी ने पांच माह पहले ही दे दी थी सूचना!’ शीर्षक से छप गई. जब चौथी खबर गृहमंत्री के बयान के साथ छपी तो लोग के होश फाख्ता हो गए. गृहमंत्री भाजपा के दिग्विजय सिंह का बयान छपा जिसमें उन्होंने कहा कि ‘डेढ़ महीने पहले ही ये तस्वीरें देख लिया था’ . इसके बाद तो लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. लोग सड़कों पर आ गए और अजमेर बंद का ऐलान कर दिया गया. इधर विश्वहिंदू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे संगठनों भी आग बबूला हो गए. 

मामले में शहर के वकीलों आए सामने

इधर अजमेर जिला बार एसोसिएशन ने मीटिंग कर शहर के बिगड़ते हालात पर चर्चा की और पीड़िताओं के अभाव में अपराधियों को सजा दिलाने के तरीकों पर विचार करने लगे. वकीलों की एक टीम तत्कालीन जिला कलक्टर अदिति मेहता से मिली और पुलिस अधीक्षक एमएन धवन की मौजूदगी में बातकर रास्ता निकाल लिया. वकीलों ने सुझाव दिया कि जिन भी आरोपियों को पहचाना जा चुका है उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल में डाल दिया जाए, जिससे लोगों का गुस्सा शांत हो सकेगा.  साथ ही साम्प्रदायिक माहौल नहीं बन पाएगा. 

वकीलों की बैठक में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

वकीलों की बैठक में ऐसा खुलासा हुआ कि जिसने शर्मसार कर दिया. जिला पुलिस प्रशासन को सबसे पहले अजमेर के युवा भाजपा नेता और पेशे से वकील वीर कुमार ने ये अश्लील फोटो दिखाकर षडयंत्र पूर्वक हिन्दू लड़कियों का मुस्लिम युवकों द्वारा यौन शोषण किए जाने की पूरी जानकारी दी. वीर कुमार ने यह भी कहा गया था कि यदि कानूनन अपराधियों को नहीं पकड़ेगा तो हिन्दू संगठन कानून अपने हाथ में लेने से नहीं चूकेगा और सड़कों पर बवाल मच जाएगा जिसे रोकना मुश्किल होगा.

मामले में पहले गोपनीय जांच करने की कही गई बात

इधर पुलिस ने देखा कि भाजपा और हिन्दूवादी संगठन चेतावनी दे रहे हैं तो पुलिस सक्रिय हुई. तत्कालीन उपाधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा को पहले मौखिक आदेश देकर मामले की गोपनीय जांच करने का निर्देश दिया गया. गोपनीय जांच में जो बात सामने आई उससे पुलिस प्रशासन के स्तब्ध रह गई. बावजूद इसके मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कवायद शुरू कर दी गई. 

तत्कालीन DIG ने कह दी आपत्तिजानक बात, मचा बवाल

इधर पुलिस ने मामले की लीपापोती शुरू कर दी और तत्कालीन पुलिस उपमहानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने बाकायदा प्रेस कॉफ्रेस कर कहा कि मामला जैसा प्रचारित किया जा रहा है वैसा नहीं है. छात्राओं के साथ किसी तरह का यौन शोषण नहीं किया गया है. मामले में जिन चार लड़कियों के साथ यौन शोषण होने के फोटो मिले हैं, उनका चरित्र ही संदिग्ध है.

DIG के बयान से शुरू हो गए आंदोलन

इधर DIG का ये बयान अखबारों में जैसे ही छपा तो अजमेर ही नहीं राजस्थान में आन्दोलन शुरू हो गए. जगह-जगह आरोपियों को गिरफ्तार किए जाने की मांगें उठने लगीं. पीड़िताओं को न्याय देने की आवाज बुलंद होने लगी. कस्बे-शहर बंद होने की खबरें आने लगीं. जगह-जगह विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. 

सरकार पर मामले को दबाने के आरोप लगे

इधर उस वक्त की BJP सरकार पर मामले को दबाने के आरोप लगने शुरू हो गए. इधर कांग्रेस नेता अशोक गहलोत, डॉ. रघु शर्मा सहित दूसरे नेताओं ने ही अजमेर में स्कूली छात्राओं के साथ हुए यौन शोषण की निंदा करते हुए अपराधियों को सजा दिए जाने की मांग उठानी शुरू कर दी. कांग्रेस नेताओं ने मामले की जांच सीआईडी से कराए जाने का भी भाजपा सरकार पर दवाब बनाया.

30 मई 1992 को जांच CID CB के पास गई

आखिरकार 30 मई 1992 को मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंप दिया. इधर इसकी सूचना अजमेर पुलिस को मिली तो उन्होंने सीआईडी सीबी के हाथों जांच शुरू होने से पहले तत्कालीन उपअधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा के हाथों एक सादे पेपर पर मामला दर्ज कर लिया. इससे जिला पुलिस की बुरी तरह से भद पिटने से बच गई. पहली रिपोर्ट में गोपनीय अनुसंधान अधिकारी हरि प्रसाद शर्मा ने उन चारों अश्लील फोटो पर रिपोर्ट दी.

रिपोर्ट के मुताबिक अजमेर में स्कूली छात्राओं को किसी तरह अपने जाल में फंसाकर उनके अश्लील फोटो खींचकर ब्लैकमेल किया गया फिर यौन शोषण हुआ. साथ ही दूसरी लड़कियों को लेकर आने का दवाब बनाने वाला गिरोह के सक्रिय होने की जानकारी सामने आई. फोटो के आधार पर अनुसंधान अधिकारी ने दो तीन पीड़िताओं की पहचान होने का भी प्राथमिकी में जिक्र किया. मामले की आगे जांच होने पर अन्य अपराधियों के नाम भी सामने आने की संभावना बताई गई.

मामले में इनके नाम सामने आए

अजमेर जिला पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज होने के अगले ही दिन सीनियर IPS अधिकारी एनके पाटनी अपनी पूरी टीम के साथ अजमेर पहुंच और जांच अपने हाथों में लेकर तफ्तीश शुरू कर दी. जांच में युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी , महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना एवं हरीश तोलानी के नाम सामने आए.

कलर लैब का मैनेजर था हरीश जहां प्रिंट होते थे फोटो

आरोपियों में हरीश तोलानी अजमेर कलर लैब का मैनेजर था. यहीं पर नफीस चिश्ती और सोहेलगनी छात्राओं के साथ यौन शोषण की नग्न रील धुलवाने और प्रिंट बनवाने के लिए लाते थे. फोटो प्रिंट के लिए कलर लैब के मालिक घनश्याम भूरानी के माध्यम से लैब पर आती थी. 

पुरुषोत्तम को ये सब गुजरा नागवार

पुरुषोत्तम उर्फ बबना रील से प्रिंट बनाया करता था. यही वो व्यक्ति है जिसके जरिए सबसे पहले स्कूली छात्राओं की न्यूड फोटो अपराधियों को सबक सिखाने और मुस्लिम युवकों द्वारा छात्राओं का यौनाचार बंद कराए जाने के उद्देश्य से कलर लैब से बाहर निकलकर एक आर्किटेक्ट के पास पहुंचा. यहां से वकील के माध्यम से भाजपा नेता वीर कुमार के पास पहुंचा. इससे अपराधी सजग हो गए और उन्होंने साक्ष्य लीक करने वाली कलर लैब के मालिक धनश्याम भूरानी का गला पकड़ लिया. फिर क्या था मामला परत दर परत खुलने लगा. 

पुरुषोत्तम ने पत्नी समेत कर ली आत्महत्या

पुरुषोषत्तम पकड़े जाने के बाद जमानत पर रिहा हुआ. रिहा होने के दो दिन बाद ही पत्नी के साथ घर में ही आत्महत्या कर ली. एक और दुखद खबर सामने आई. जिन लड़कियों की फोटोज खींची गई थी उनमें से करीब 6 ने आत्महत्या कर ली. हालांकि इन आत्महत्याओं की पुलिस ने जांच नहीं की. इस घटना में सबसे दर्दनाक सत्य ये था कि पीड़िताओं के लिए न ही परिवार और न ही समाज होई आगे नहीं आया. आरोपियों के रसूख के चलते सभी ने चुप्पी साध ली. 

इधर बदनामी के डर से पीड़िताएं पीछे हटने लगीं

पुलिस ने फोटो के आधार पर लड़कियों की पहचान की. इनसे बात करने की कोशिश की गई, लेकिन समाज में बदनामी के डर से कोई आगे आने को तैयार नहीं हुआ. समझाइश के बाद लड़कियों ने मामला दर्ज करवाया, लेकिन धमकियां मिलने के बाद सिर्फ कुछ ही लड़कियां डटी रहीं. शुरुआत में 17 लड़कियों ने अपने बयान दर्ज करवाए, लेकिन बाद में ज्यादातर गवाही देने से मुकर गईं. फिलहाल कोर्ट के रिकॉर्ड में महज 16 पीड़िताएं हैं जबकि इनकी संख्या 100 के पार थी.

कोर्ट में मुकर गईं पीड़िताएं

अदालत में जब बयान होने लगे तो कुछ पीड़िताएं मुकर गईं. वजह बताया गया पारिवारिक और सामाजिक दबाव. इसके बाद अदालत ने कहा कि केस की गंभीरता को देखते हुए जो बयान दर्ज हुए हैं उन्हें ही उन पीड़िताओं का बयान माना जाए. साथ अदालत ने DIG आमेंद्र भारद्वाज के बयान पर कहा कि जांच से पहले ही मीडिया को ये बयान कैसे दे गए कि इन लड़कियों का चरित्र उचित नहीं है. कोर्ट ने राज्य सरकार को इसकी जांच कराने के निर्देश दिए.

8 को आजीवन कारावास, हाईकोर्ट में 4 हुए बरी

वर्ष 1998 में अजमेर की एक कोर्ट ने 12 में से 8 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाया. इधर मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत से सजा पाए 4 दोषियों को बरी कर दिया. साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी 4 की सजा को आजीवन कारावास से बदलकर 10 साल कर दिया. इनमें इनमें मोइजुल्ला उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, इशरत, अनवर चिश्ती और शम्शुद्दीन उर्फ माराडोना शामिल था.

एक दिमागी रूप से पागल घोषित हो गया

वर्ष 2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मुख्य फारूक चिश्ती को भी दोषी ठहराया. इसको सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी के बाद पागल घोषित कर दिया गया. 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने फारूक चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटाते हुए कहा कि वो जेल में पर्याप्त समय सजा काट चुका है. 2012 में सरेंडर करने वाला सलीम चिश्ती 2018 तक जेल में रहा और जमानत पर रिहा हो गया. अन्य आरोपियों को भी जमानत मिल गई थी. उधर, पीड़िताएं हैं जो अदालत से मिल रहे समन से परेशान होकर अब कोर्ट में हाजिर पेशी पर बयानों के लिए आना बंद कर दिया है.

सालों बाद पकड़ में आए आरोपी

मामले में 3 मास्टरमाइंड समेत 12 के खिलाफ चार्जशीट पेश की गई. एक आरोपी नसीम ऊर्फ टारजन अंतरिम जमानत पर फरार हो गया और बाद में 18 साल बाद 2010 में पुलिस के हत्थे चढ़ा. मुख्य आरोपी फरुख चिश्ती को वर्ष 2007 में सजा मिली. बाद में उसे भी पागल घोषित हो गया. नफीस को 11 साल बाद 2003 में पकड़ा गया जो जमानत पर छूट गया. इकबाल भाटी को 13 साल बाद 2005 में पकड़ा गया. वो भी जमानत पर छूट गया. सलीम चिश्ती को करीब 20 साल बाद साल 2012 में बुर्के में पकड़ा गया. वो भी जमान पर बाहर आ गया. जमीर हुसैन को अंतरिम जमानत मिल गई. सोहेल गनी चिश्ती 26 साल बाद 2018 को सरेंडर किया और वो भी बेल पर है. मामले में एक आरोपी अलमास महाराज आज तक फरार

पीड़ित लडकियों के बयान के आधार पर करीब 16-17 आरोपियों की पहचान हुई . इनमे से अलमास महाराज विदेश में अमेरिका न्यूजर्सी में होना बताया जाता है. मामले में वर्तमान में पांच आरोपी सोहेल गनी, इकबाल, जमीर, सलीम को छोड़ कर सभी की सजाएं पूरी हो गई हैं. जिनकी सजाएं पूरी नहीं हुई हैं वे जमानत पर हैं.

50-54 साल की हो गईं पीड़िताएं, इंसाफ का इंतजार

मामले में अधिकतर पीड़िताएं अब दादी-नानी बन चुकी हैं. वो कोर्ट के समन से परेशान हैं और पेशी पर आने से कतराती हैं. पिछले दिनों एक पीड़िता ने कोर्ट को बताया था कि पेशी पर आने से पहले वो अपने परिवार से झूठ बोलती हैं क्योंकि उनके साथ जो हुआ वो घर पर बताने से बचती हैं.

इनपुट: चंद्रशेखर शर्मा.

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