हाई क्लास तबके से भी आगे है राजस्थान की ये जनजाति, पहले लिव-इन में बढ़ाते हैं परिवार फिर होती है शादी
राजस्थान के कुछ हिस्सों में लिव-इन रिलेशनशिप प्रथा की तरह प्रचलित है. आप यह जानकर दंग रह जाएंगे, लेकिन यह हकीकत है.
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अक्सर लिव-इन रिलेशनशिप को समाज में स्वीकार नहीं किया जाता है. ना ही शादी से पहले किसी तरह के संबंधों को समाज मान्यता देता है. लेकिन लिव-इन में रहकर एक दूसरे को पहले समझने फिर शादी के बंधन में बंधन का चलन हाई सोसाइटी में देखने को मिलता है. बॉलीवुड में इस विषय से जुड़ी कई फिल्में बन चुकी हैं. आज हम आपको बताने जा रहे हैं राजस्थान की एक ऐसी जनजाति के बारे में जो ऐसे हाईक्लास तबके में रहने वालों की आधुनिक सोच से एक कदम आगे है.
आप यह जानकर दंग रह जाएंगे, लेकिन यह हकीकत है. हम बात कर रहे हैं उदयपुर, सिरोही, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ आदि जिलों की. दरअसल, इन जनजाति बाहुल्य इलाकों में आदिवासियों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक अलग सोच है.
इन इलाकों में जनजाति के लोग कई सालों से लिव-इन में रह रहें हैं और बच्चें पैदा होने के बाद शादी करते हैं. आपको बता दें यह परम्परा इस जनजाति में सदियों से निभाई जा रही हैं.
दरअसल, यह गरासिया जनजाति हैं, जो प्रदेश के कई हिस्सों में निवास करती है. जब इस समुदाय की लड़की शादी करती हैं तो वो अपना जीवनसाथी खुद चुनती है और उसके खाथ लिव-इन में रहना शुरू कर देती हैं. हैरान करने वाली बात यह भी है कि इस जनजाति में विवाह से पहले बच्चें भी पैदा कर लिये जाते हैं और उसके बाद शादी करवाई जाती हैं. अगर दोनों के लिव-इन में रहने के बावजूद भी बच्चें नहीं हुए तो अलग-अलग हो जाते हैं और किसी अन्य के साथ लिव-इन में रहकर बच्चें पैदा करने की कोशिश करते हैं.
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गरासिया जनजाति में अनेक परिवार ऐसे भी हैं, जिनके परिवार में कई पीढ़ियों से शादी नहीं हुई है. लेकिन इन परिवारों में शादी नहीं होने के बावजूद भी बच्चें हैं. यह परिवार अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनते हैं और शादी-शुदा जोड़े की भांति रहते हैं.
हर साल लगता है मेला, जहां लड़कियां चुनती है जीवनसाथी
खास बात यह है कि इसके लिए हर साल दो दिवसीय मेला लगता है. जिसमें गरासिया जनजाति की लड़कियां अपने लिए पार्टनर को चुनती हैं. इसके बाद दूल्हें के परिवार को एक धनराशि देनी पड़ती है. बड़ा सवाल यह है कि आखिर इस समाज में इस प्रथा के पीछे की वजह क्या है? दरअसल, गरासिया जनजाति की इस परम्परा को लेकर अनेक धारणाऐं प्रचलित है.
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एक किवदंती के मुताबिक स्थानीय लोगों का कहना है कि बहुत सालों पहले गरासिया समुदाय के चार भाई किसी कारणवश दूसरी जगह जा कर रहने लगे और चार भाइयों में से तीन की शादी हो गई. एक भाई बिना शादी के लिव-इन में रहने लगा. जिन भाईयों की शादी हुई, उनको कोई संतान नहीं हुई.
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लेकिन चौथे भाई को संतान हुई, जिसने अपने वंश को आगे बढ़ाया. इसके बाद से ही इस समुदाय के लोग बिना शादी किए रहने लगे. तभी से इस लिव-इन रिलेशनशिप की परंपरा को आगे बढ़ाया गया, जिसे गरासिया जनजाति की स्थानीय बोल चाल में दापा प्रथा कहा गया.
लिव- इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों में से अधिकांश बार बच्चें पैदा होने के बाद जोड़ें पर परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से शादी को टालते भी रहते हैं. कई बार 50 से 55 या उससे अधिक उम्र में ये इस रिश्ते को अमली जामा पहना जाता है. इस दौरान कई बार जवान बेटे और बेटे भी इनके बारात में शामिल होते हैं. यहां के लोगों का कहना हैं कि कुछ मामलों में तो माता- पिता की शादी के वक्त बच्चें भी लिव- इन रिलेशनशिप में रह रहें होते हैं.
इनपुटः Rajasthan Tak के लिए इंटर्न कर रहे मुकेश कुमार
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