अपनी ही सीट पर बुरे फंसे बीजेपी के मंत्री! भाटी ने मुकाबले को बनाया रोचक, इधर उम्मेदराम से कांग्रेस को 'उम्मीद'
देश की दूसरी बड़ी संसदीय सीट बाड़मेर-जैसलमेर पर इस बार मिजाज कुछ ज्यादा गर्म है. देश के तीसरे और पांचवें सबसे बड़े दो जिले वाला यह इलाका राजस्थान की हॉट सीट में से एक है.
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लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. तीसरी बार बीजेपी (BJP) सरकार बनने के दावों के बीच सत्तारूढ़ दल को चुनौती इंडिया गठबंधन से मिल रही है. इस बीच चर्चा में देश की दूसरी बड़ी संसदीय सीट भी है. जहां रेगिस्तान होने के चलते हवाएं अक्सर गर्म ही रहती है. लेकिन बाड़मेर-जैसलमेर (Barmer-Jaisalmer) सीट पर इस बार मिजाज कुछ ज्यादा गर्म है. देश के तीसरे और पांचवें सबसे बड़े दो जिले वाला यह इलाका राजस्थान की हॉट सीट में से एक है.
वजह है 26 साल का नौजवान, जो बगावत के बूते विधानसभा चुनाव जीता और अब लोकसभा चुनाव में दमखम लगाए हुए हैं. इस सीट की चर्चा इसलिए भी क्योंकि केंद्र में मंत्री कैलाश चौधरी यहां से मौजूदा सांसद हैं और उनके सामने चुनौती है सीट बचाने की. सीट बचाने के लिए उन्हें त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस प्रत्याशी उम्मेदाराम बेनीवाल से भी पार पाना है.
क्या है इस सीट का जातीय समीकरण?
इस सीट पर जाट वोटर 4 से 4.50 लाख, एससी-एसटी 4 लाख और मुसलमान 2.50 लाख के करीब है. जबकि यहां 6 लाख मूल ओबीसी, 2.50 लाख राजपूत और वैश्य-ब्राह्मण 1.50 लाख हैं. श्री क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक तन सिंह ने भी इसी सीट से चुनाव जीता. साल 1962 में राम राज्य परिषद और 1977 में जनता पार्टी से चुनाव जीतकर वह संसद पहुंचे. यहां से जनता दल के कल्याण सिंह कालवी भी चुनाव जीत चुके हैं. इसके अलावा कांग्रेस के दिग्गज नेता रामनिवास मिर्धा भी 1991 में चुनाव जीते थे.
साल 1952 से अब तक के परिणाम पर नजर डालें तो यहां जाट और राजपूत वोटर्स काफी अहम साबित होते हैं. जबकि मूल ओबीसी, राजपूत आदि मतदाताओं की भी निर्णायक भूमिका रहती है.
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साल 2014 में निर्दलीय बतौर जसवंत सिंह ने दी कड़ी टक्कर
जानकारों की मानें तो पिछले दो लोकसभा चुनाव में जाट और मूल ओबीसी का वोट मोदी लहर के चलते बीजेपी को ही मिला. साल 2014 की बात करें तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हनुमान कहे जाने वाले उनके विश्वासपात्र रहे जसवंत सिंह को मैदान में थे. उन्हें साल 2009 में निष्कासित कर दिया गया था, लेकिन उन्होंने 2014 में पार्टी से टिकट मांगा था. हालांकि टिकट नहीं मिलने के चलते बतौर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे और बीजेपी के कर्नल सोनाराम ने उन्हें मात दी. इस चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री की 87 हजार वोटों के अंतर से हार हुई. जबकि कांग्रेस के हरीश चौधरी को महज 18.36 फीसदी वोट मिले थे. उनके बेटे मानवेंद्र सिंह ने साल 2019 में कांग्रेस से चुनाव लड़ा और 36.75 फीसदी वोट मिले थे. हालांकि कैलाश चौधरी 59.52 वोट प्रतिशत के चलते 3 लाख से भी ज्यादा अंतर से इस सीट को जीतने में कामयाब रहे.
कैलाश चौधरी का संघ से नाता, तीसरी बार निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे भाटी
बता दें कि कैलाश चौधरी केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्यमंत्री हैं. बायतु से विधायक चौधरी लम्बे समय से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी जुड़े हुए हैं. साथ ही बीजेपी किसान मोर्चा राजस्थान के अध्यक्ष रहे. बेनीवाल की बात करें तो सीमावर्ती जिले बाड़मेर में RLP को मजबूत करने में उनकी बड़ी अहम भूमिका रही है. उन्हें 2018 और 2023 के विधानसभा चुनाव में हार मिली. हालांकि इस बार के चुनाव में कांग्रेस के हरीश चौधरी को कड़ी टक्कर दी और महज 910 वोट से हार गए थे. भाटी ने जेएनवीयू में छात्र राजनीति के माध्यम से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. हालांकि उन्होंने अपने जीवन का पहला चुनाव भी निर्दलीय ही लड़ा. एबीवीपी के टिकट से इनकार के बाद उन्होंने बागी होकर ताल ठोंकी थी और जेएनवीयू के 57 साल के इतिहास में पहले स्वतंत्र छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में जीत हासिल की.
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वोट विभाजन से कांग्रेस को उम्मीद
इन सबके बीच कांग्रेस को उम्मीद उम्मेदाराम बेनीवाल से हैं. वो नेता जो राष्ट्र्रीय लोकतांत्रिक पार्टी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल के करीबी रहें और अब आरएलपी को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस को उम्मीद इसलिए क्योंकि जाट समाज में पकड़ रखने वाले उम्मेदाराम बेनीवाल को मेघवाल और मुस्लिम समाज का वोट मिल सकता है.
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खास बात यह है रविंद्र सिंह भाटी के मैदान में उतरने से कांग्रेस की उम्मीद को पंख लग गए हैं. क्योंकि भाटी जितनी मजबूती से बीजेपी प्रत्याशी कैलाश चौधरी के वोट काटेंगे, उम्मेदाराम के लिए जीत का रास्ता उतना आसान हो सकता है.
बीजेपी-कांग्रेस पर भारी पड़ेंगे रविंद्र सिंह भाटी!
दरअसल, बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट में शामिल 8 विधानसभाओं में से 5 पर भाजपा, 1 पर कांग्रेस और 2 पर निर्दलीयों का कब्जा है. शिव पर रविंद्र सिंह भाटी और बाड़मेर में प्रियंका चौधरी विधायक हैं. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस की स्थिति कुछ खास मजबूत नहीं है. वहीं, जैसलमेर, पचपदरा, गुड़ामालानी, चौहटन और सिवाना सीट पर भाजपा विजयी हुई, जबकि कांग्रेस को सिर्फ बायतु सीट पर जीत मिल सकी.
इस क्षेत्र में युवा वोटर्स को साधने के लिए रविंद्र सिंह भाटी पूरा प्रयास कर रहे हैं. जबकि राजपूत वोट बैंक के लिहाज से भी उनका पलड़ा भारी नजर आ रहा है. खास बात यह है कि इस क्षेत्र में उनकी तुलना अब कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट से होने लगी है. इसके अलावा रेगिस्तानी इलाकों की मूलभूत समस्याओं की ओर बार-बार इशारा करके भाटी इस क्षेत्र की जनता को भावनात्मक तौर पर भी जोड़ने में लगे हैं.
कैलाश चौधरी बचा पाएंगे सीट?
दो मजबूत प्रतिद्वंदी की टक्कर के चलते बीजेपी प्रत्याशी कैलाश चौधरी के लिए इस बार मुश्किल नजर आ रही है. जाट समाज में पकड़ रखने वाले चौधरी के वोट बैंक में बेनीवाल भी सेंधमारी की कोशिश में हैं. बावजूद इसके एक बात जो उनके पक्ष में हैं या यूं कहें कि पूरे देश में हर बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में है, वो है मोदी फैक्टर. रेतीले धोरों पर भंवरजाल में फंस चुके कैलाश चौधरी के समर्थकों को उम्मीद है पीएम नरेंद्र मोदी की सभाओं के जरिए इस क्षेत्र में एक बार फिर कमल खिल सकता है. हालांकि खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के साथ बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री के यहां आने के बाद सियासी चर्चाएं जोर पकड़ चुकी है.
इनपुटः दिनेश बोहरा
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