वसुंधरा-पूनिया को बड़ा संदेश! चुनावी साल में सीपी जोशी को कमान मिलने के क्या हैं मायने? जानें

गौरव द्विवेदी

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BJP President CP Joshi: संघ से अपने सफर की शुरुआत करने वाले चितौड़गढ से लोकसभा सांसद सीपी जोशी को बीजेपी ने कमान सौंप दी है. इसी साल विधानसभा चुनाव भी है, इससे पहले पूनिया और वसुंधरा की गुटबाजी के बीच पार्टी ने नया चेहरा सामने लाकर सबको चौंका दिया हैं. ब्राह्मण कार्ड, मेवाड़ में दबदबा जैसे कई महत्वपूर्ण तथ्यों से अलग भी खास बात यह है कि चुनावी साल में पार्टी गुटबाजी को दूर करने के लिए हर मुमकिन दांव खेलना चाहती है. इसी के चलते कभी युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे जोशी पार्टी में 7वें ब्राह्मण अध्यक्ष के तौर पर जिम्मेदारी संभालेंगे.

आलाकमान के इस फैसले के पीछे कई वजहें बताई जा रही हैं. सबसे बड़ी वजह तो यह है कि सीपी जोशी निर्विवाद नेता होने के साथ ही किसी खेमे से ताल्लुक नहीं रखते हैं. ऐसे में उनके पार्टी के दिग्गजों के साथ भी अच्छे संबंध हैं. शायद इसलिए पार्टी ने भी उन्हें जिम्मेदारी थमाकर घमासान शांत करने की कोशिश की हैं. ताकि राजस्थान के रण में बीजेपी एकजुट होकर लड़ सके. उनके अध्यक्ष चुने जाने के बाद पूनिया ने भी बधाई दी. जबकि वसुंधरा राजे ने भी आगामी कार्यकाल की सफलता के लिए शुभकामनाएं देते हुए ट्वीट किया.

बाबा भी थे खफा, पूनिया के खिलाफ किरोड़ी समर्थकों ने की थी नारेबाजी
पिछले महीने जयपुर में पेपर लीक के मामले में किरोड़ी लाल मीणा ने खुद सतीश पूनिया पर निशाना साधा था. आंदोलन के दौरान मीणा ने दर्द बयां किया था कि उन्हें पूनिया का साथ नहीं मिल रहा. जब पूनिया समेत पूरी बीजेपी सांसद किरोड़ी के समर्थन में भाजपा सड़क पर उतरी तो मीणा समर्थकों ने लगाए पूनिया के खिलाफ नारे किरोड़ी समर्थकों ने जमकर नारेबाजी की.

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महारानी का विरोध पड़ा भारी
इसी महीने ताजा विवाद तब सामने आया, जब 4 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के जन्मदिन के उपलक्ष्य में चूरू जिले के सालासर में बड़ा कार्यक्रम हुआ. ठीक उसी दिन युवा मोर्चा ने शनिवार ही विभिन्न मुददों को लेकर विधानसभा का घेराव करने की घोषणा कर दी. एक साथ होने वाले दो अलग-अलग कार्यक्रमों को देखकर गुटबाजी की तस्वीर भी साफ नजर आ गई थी. जिसके चलते प्रदेश प्रभारी अरूण सिंह ने मोर्चा संभालते हुए दोनों कार्यक्रम में उपस्थिति दी.

एकला चलो की रणनीति ले डूबी!
किरोड़ी और वसुंधरा राजे से अलग भी पूनिया के खिलाफ एक बात और रही, जिससे संगठन के लोग परेशान थे. संभवतः वह बात संगठन नियुक्ति को लेकर थी. दरअसल, उनके तमाम प्रकोष्ठ और मोर्चे की कमान पूनिया के करीबी लोगों को दे दी गई. जिसके बाद कहीं ना कहीं पूनिया की एकला चालो की रणनीति को लेकर ही दिल्ली नेतृत्व तक विरोध पहुंच चुका था. पिछले साल 11 सितंबर 2022 को प्रदेश अध्यक्ष पोकरण से रामदेवरा तक पदयात्रा पर अकेले ही निकल पड़े थे. कोई भी बड़ा नेता उनके साथ इस पदयात्रा में शामिल नहीं था.

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तब सतीश पूनिया ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लिखा था, “सफर में धूप तो होगी, जो चल सको चलो. सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो. किसी के वास्ते राहें कहां बदलती है. तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो.”

जाट हो चुके हैं लामबंद, पूनिया को साइडलाइन करना होगा भारी
बड़ा सवाल यह भी पूनिया के भविष्य को लेकर भी है. क्योंकि जाट महाकुंभ जैसी कवायद के जरिए राजस्थान में जाट लामबंद होते दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में हनुमान बेनीवाल जैसे अहम नेता को चुनौती देना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. ऐसे में नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए भी पूनिया की संभावना बची रह सकती है. क्योंकि वसुंधरा राजे के करीबी सूत्रों की मानें तो पूर्व मुख्यमंत्री का कभी भी इस पद को लकेर खासा दिलचस्पी नहीं रही.

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