राजेंद्र राठौड़ के कोप से दामाद राहुल कस्वां को बचा नहीं पाए उपराष्ट्रपति धनकड़?

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लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी (BJP) की पहली लिस्ट में 15 उम्मीदवारों के नाम शामिल हैं. लेकिन जिस एक नाम की सबसे ज्यादा चर्चा है वो नाम है राहुल कस्वां (Rahul kaswan) का. चूरू के वो मौजूदा सांसद, जो दो बार लोकसभा चुनाव जीते. लेकिन इस बार पार्टी ने उनका टिकट काट दिया है. भले ही इसे हाल के विधानसभा चुनाव के दौरान उनकी ससंदीय क्षेत्र की खराब परफॉर्मेंस से जोड़कर देखा जाए.

अंदरखाने चर्चा उनकी और पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ (Rajendra rathore) की अदावत को लेकर है. जिसके चलते कस्वां का पत्ता साफ हो गया है. क्योंकि चूरू की तारानगर सीट पर जब राठौड़ चुनाव हारे तो उसके पीछे वजह के तौर पर कस्वां का नाम ही उछला था. यह बात तब और भी मजबूत हो गई जब राठौड़ ने जयचंद वाला बयान दिया. जिससे इशारा कस्वां की ओर किया जा रहा था. 

खास बात यह है कि कस्वां भी मजबूत पृष्ठभूमि से आते हैं. उनके पिता रामसिंह कस्वां 4 बार के सांसद हैं और उनकी शादी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के भाई कुलदीप धनखड़ की बेटी से हुई. उपराष्ट्रपति के दामाद राहुल कस्वां को टिकट नहीं मिलने के बाद शेखावाटी की सियासत तेज हो गई है.

राहुल कस्वां का सवाल- आखिर मेरा क्या था...?

मौजूदा सांसद के टिकट कटने के बाद अब विरोध के स्वर भी दिखाई देने लगे हैं. चूरू सांसद राहुल कस्वां टिकट कटने के बाद से लगातार आहत नजर आ रहे हैं. 3 मार्च को लिस्ट का ऐलान होने के बाद उन्होंने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट किया. जिसमें उन्होंने लिखा "आप सभी संयम रखें. आगामी कुछ दिन बाद आपके बीच उपस्थित रहूंगा, जिसकी सूचना आपको दे दी जाएगी." इससे कयास लगाए जाने लगे कि वह भविष्य में कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं.वहीं, आज 4 मार्च को एक और ट्वीट सामने आया है. जिसमें उन्होंने पूछ लिया कि आखिर मेरा गुनाह क्या था...? जाहिर तौर पर वह पार्टी के फैसले से नाखुश हैं. 

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हालांकि उनके टिकट कटने की चर्चाएं पहले ही तेज हो गई थी. क्योंकि चूरू के तारानगर में पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र सिंह राठौड़ (Rajendra rathore) की हार की वजह के बाद से ही स्थानीय तौर पर घमासान तेज हो गया है. राठौड़ के समर्थक उनकी हार के पीछे गुटबाजी को भी बता रहे हैं. जिसमें कहीं ना कहीं राहुल कस्वां की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए थे.

राठौड़ के इस बयान के बाद मची थी हलचल

यह सवाल तब और भी तेजी से उठने लगे जब चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद राठौड़ ने पहली बार तारानगर आकर कृषि उपज मण्डी समिति में विशाल आभार रैली का आयोजन किया. इस दौरान उन्होंने अपनी हार को लेकर कहा था कि इतिहास ने कभी जयचन्दों को माफ नहीं किया. उनको अपने आप सबक मिल जाएगा. हार में कोई ना कोई अच्छाई छुपी है, हार कर भी मोहब्बत बांटने का काम करूंगा.
 

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