Gehlot vs Pilot: अपने गढ़ में बीजेपी का किया था सूपड़ा साफ, कांग्रेस के लिए क्यों अहम हैं पायलट?

गौरव द्विवेदी

ADVERTISEMENT

Rajasthantak
social share
google news

Gehlot Vs Pilot: राजस्थान में चुनावी बिगुल बजने से पहले ही सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. सूबे के सियासी केंद्र में फिलहाल सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट बने हुए हैं. सूबे में गहलोत वर्सेज पायलट जंग में इस बार सचिन पायलट आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं. सीएम फेस की लड़ाई में बीत चुके कांग्रेस के कार्यकाल के 6 माह बचे हैं. ऐसे में चर्चा है कि पार्टी से नाराज पायलट अलग पार्टी बनाने वाले हैं. वहीं आरएलपी और आम आदमी पार्टी के अलावा बीजेपी से भी उनके लिए दरवाजे खुले होने के संकेत मिल चुके हैं.

इन सबके बीच अब चर्चा इस बात की है कि नाराज पायलट को यदि कांग्रेस आलाकमान मनाने में नाकाम रह जाता है तो विधानसभा चुनाव में वो कांग्रेस को कितना डैमेज करेंगे. यूं कहें तो कांग्रेस से पायलट के तौबा करने पर पार्टी को विधानसभा चुनाव में कोई फर्क नहीं पड़ेगा या भारी नुकसान उठाना पड़ेगा? ऐसे में Rajasthan Tak आपको बता रहा है विधानसभा चुनाव में ‘पायलट समीकरण’ का विश्लेषण…

BJP को 2013 में मिला था इन जातियों का साथ
खास बात यह है कि बीजेपी को जाट, गुर्जर, यादव और अन्य ओबीसी का काफी समर्थन मिलता रहा है. जिसके बूते साल 2013 में वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री भी बनी. वहीं, कांग्रेस की सीटें 21 रह गई थी. जिसके बाद पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा और सत्ता हासिल की. पायलट के समर्थक अपने नेता को सीएम बनाने का यही तर्क देते रहे हैं कि गुर्जर-मीणा बाहुल्य वाले क्षेत्र समेत पूरे राजस्थान में पायलट के चेहरे का फायदा मिला.

ADVERTISEMENT

यह भी पढ़ें...

प्रदेश में कुल 33 में से 14 जिलों यानी 40 फीसदी से भी ज्यादा क्षेत्र में गुर्जरों का प्रभाव है. इन जिलों में 12 लोकसभा क्षेत्र और 40 विधानसभा सीटे आती हैं. भीलवाड़ा, अजमेर, जयपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, झुंझुनूं, कोटा, बारां, झालावाड़, टोंक, करौली और सवाई माधोपुर जिलों में गुर्जरों का दबदबा है. एक्सपर्ट्स की मानें तो यहां किसी भी दल की जीत-हार का फैसला इसी वोट बैंक पर निर्भर करता हैं. जिसमें पायलट की भूमिका निर्णायक हो जाती है.

सुखाड़िया विश्विवद्यालय में राजनीति विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. अरुण चतुर्वेदी का कहना है कि गुर्जर को नाराज करने की बात हो या किसी भी वर्ग के दूर जाने की, प्रदेश में कोई भी दल इस जोखिम नहीं उठाना चाहता. क्योंकि राजस्थान में बहुत ही कम वोट के अंतर से सरकार बनती या बिगड़ती है. ऐसे में 40 फीसदी हिस्से में प्रभाव रखने वाले गुर्जर को नाराज करना कांग्रेस के लिए चुनावी साल में मुश्किलें खड़ी कर सकता है.

पायलट के नेतृत्व में बीजेपी के गढ़ में भी जीती कांग्रेस 
दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा को उसके गढ़ जयपुर संभाग में सबसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा. जयपुर संभाग की 50 सीटों में से कांग्रेस को 25 और बीजेपी को 16 सीटें मिली हैं. प्रदेश भर में भाजपा को 73 सीटें और कांग्रेस को 99 सीटें मिली. बीजेपी को 2013 की तुलना में करीब 90 सीटों का नुकसान हुआ तो कांग्रेस को 78 सीटों का फायदा पहुंचा. उदयपुर और कोटा संभाग में ही चुनावी परिणाम बीजेपी के पक्ष में रहे. जबकि अजमेर में कांग्रेस और भाजपा, दोनों को 13-13 सीटें मिली. वहीं, साल 2013 में बढ़त बनाने वाली बीजेपी का भरतपुर संभाग में तो सूपड़ा ही साफ हो गया. यहां पार्टी को सिर्फ एक सीट से ही संतोष करना पड़ा. देखा जाए तो भरतपुर संभाग के 16 विधानसभा सीटों पर पायलट फैक्टर दिखा और यहां कांग्रेस को जीत मिली. कुल मिलकर देखें तो पायलट का 30-40 सीटों पर सीधा प्रभाव है जिसका फायदा 2018 में कांग्रेस को मिला था. ऐसे में यदि पायलट कांग्रेस पार्टी का हाथ छोड़ते हैं तो सूबे की करीब 40 सीटों पर पार्टी को झाटका लगने का अनुमान है.

ADVERTISEMENT

भारत जोड़ो यात्रा में भी पूर्वी राजस्थान पर था कांग्रेस का फोकस
जब पिछले साल राहुल की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान से गुजरी तब भी फोकस पूर्वी राजस्थान पर ही था. कांग्रेस की यात्रा जिन 18 विधानसभा क्षेत्रों में से गुजरी, इनमें झालरापाटन, रामगंज मंडी, लाडपुरा, कोटा दक्षिण, केशवरायपाटन और अलवर शहर में बीजेपी काबिज है. इसके अलावा बाकी सभी 12 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. राहुल की यात्रा के रूट से जुड़ा ज्यादातर क्षेत्र गुर्जर और मीणा बाहुल्य थे.

ADVERTISEMENT

महज 1 फीसदी से गिर गई थी बीजेपी की सरकार
राजस्थान विधानसभा चुनाव में वोट के अंतर को लेकर हमेशा चर्चा होती है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ समेत कई बीजेपी नेता इस बात को इशारों-इशारों में कह चुके हैं कि महज 1 फीसदी वोट के चलते कांग्रेस को सत्ता में आने का मौका मिल गया था. साल 2018 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो बीजेपी को 38.8 फीसदी वोट के चलते 73 सीटें मिली. जबकि साल 2013 में 163 सीटें थी. वहीं, 39.8 फीसदी वोट मिलने के चलते कांग्रेस की सीटें 21 बढ़कर से 99 तक पहुंच गई.

जाट और ब्राह्मण को नाराज करना पड़ा था भारी
ब्राह्मण समाज से आने वाले घनश्याम तिवारी और जाट समाज में प्रभाव रखने वाले हनुमान बेनीवाल की नाराजगी का वसुंधरा राजे को नुकसान सहना पड़ा. वहीं, पायलट के प्रभाव वाले गुर्जर बाहुल्य क्षेत्रो में बीजेपी का सूपड़ा ही साफ हो गया था. CSDS के प्री पोल सर्वे के मुताबिक साल 2018 में जातियां में 6 फीसदी ब्राह्मण और राजपूत वोट का 16 फीसदी हिस्सा बीजेपी के पक्ष में नहीं था. जबकि गुर्जर के साथ यादव और माली वोट बैंक का बीजेपी को 8 फीसदी तक नुकसान हुआ. जिससे उनका वोट घटकर 47 फीसदी रह गया था. वहीं, कांग्रेस को इस वर्ग ने 10 फीसदी ज्यादा यानी कुल 39 फीसदी वोट किया. जबकि दलित वोट बैंक के मामले में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों को बराबर नुकसान हुआ.

चुनावी साल में अनशन पर मजबूर क्यों हो गए पायलट? जानिए इसके पीछे की ये 3 वजह

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT