जमवारामगढ़ विधानसभा सीट: क्या कांग्रेस फिर मारेगी बाजी? जानें इस सीट का सियासी समीकरण

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जमवारामगढ़ विधानसभा सीट: क्या कांग्रेस फिर मारेगी बाजी? जानें इस सीट पर कैसा रहा अब तक का इतिहास
जमवारामगढ़ विधानसभा सीट: क्या कांग्रेस फिर मारेगी बाजी? जानें इस सीट पर कैसा रहा अब तक का इतिहास
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Jamwaramgarh Vidhansabha Seat Details: राजस्थान विधानसभा चुनाव में अब करीब 6 महीनों का ही समय बचा है. ऐसे में ‘राजस्थान तक’ आपके लिए लेकर आ रहा है विधानसभा वार हर सीट का विस्तृत कवरेज. इसमें हम आपको बताएंगे प्रत्येक विधानसभा की भौगोलिक स्थिति, वहां का जातिगत समीकरण, पिछले 25 सालों के विधानसभा चुनाव में जीत-हार का इतिहास, वहां के विजेता-उपविजेता, जनता का मूड, वोट शेयर और भी बहुत कुछ. इस कड़ी में आज हम जयपुर की जमवारामगढ़ सीट के बारे में आपको बताने जा रहे हैं.

जमवारामगढ़ विधानसभा सीट जयपुर जिले के अंतर्गत आने वाली 19 विधानसभा सीटों में से एक है. जयपुर के उत्तर-पूर्व में स्थित इस विधानसभा क्षेत्र में किसी भी राजनीतिक दल को जिताने में SC-ST वर्ग के वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. क्योंकि इस सीट पर कुल जनसंख्या में से करीब 15.49 फीसदी एससी और 30.86 फीसदी एसटी वर्ग के वोटर हैं. एससी और एसटी के बाद इस क्षेत्र में ब्राह्मण और गुर्जर मतदाता भी अपना अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं. वर्ष 2008 से यह विधानसभा सीट ST वर्ग के लिए आरक्षित है.

जमवारामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गोपाल मीणा ने बीजेपी के महेंद्र पाल मीणा को 21684 वोटों से हराया था. इसमें गोपाल मीणा को 89,165 और महेंद्र पाल मीणा को 67,481 वोट मिले थे. अगर पिछले 5 बार हुए विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो यहां से 3 बार कांग्रेस जबकि 2 बार बीजेपी जीती है.

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पिछले 25 सालों में इस सीट पर ऐसा रहा जीत-हार का इतिहास
अगर 2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो यहां से बीजेपी के जगदीश नारायण मीणा (64,162) ने कांग्रेस के शंकर लाल (32,261) से 31,901 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गोपाल मीणा (36,451) ने करीबी मुकाबले में मात्र 1553 मतों के अंतर से बीजेपी के जगदीश नारायण मीणा (34,898) को हराया. 2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लक्ष्मी नरेन बैरवा (35,402) ने निर्दलीय अशोक तंवर (30,446) को 4,956 वोटों के अंतर से शिकस्त दी. वहीं अगर 1998 के विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो कांग्रेस के अशोक तंवर (46,392) ने बीजेपी के लक्ष्मी नारायण बैरवा (31,826) को 14566 वोटों के बड़े अंतर से हराया.

जिस पार्टी की सरकार बनी उसी पार्टी के उम्मीदवार ने की जीत दर्ज
इस सीट के समीकरणों पर गौर करें तो ये बात काफी दिलचस्प है कि जिस तरह प्रदेश में एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की सरकार बनाने की परंपरा रही है. यहां भी उसी तरह जनता विधायक का चुनाव करती हैं. यानी 1998 से जिस भी पार्टी की प्रदेश में सरकार बनी उसी पार्टी का उम्मीदवार यहां से जीता है.

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पिछले 25 सालों में इस सीट पर 3 बार कांग्रेस जबकि 2 बार बीजेपी जीती है. अब 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र से जनता किस पार्टी के नेता को अपना विधायक चुनेगी यह तो समय ही बताएगा. लेकिन यह बात तो तय है कि इस विधानसभा सीट पर एसटी, एससी का मतदाता निर्णायक है. जो भी नेता इन दोनों वर्गों को साधने में कामयाब हो जाएगा उसका यहां से जीतना लगभग तय है.

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