Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव में दांव पर लगी 4 विधायकों की प्रतिष्ठा, चुनाव जीतने के लिए झोंकी पूरी ताकत

Himanshu Sharma

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Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव में दांव पर लगी 4 विधायकों की प्रतिष्ठा, चुनाव जीतने के लिए झोंकी पूरी ताकत
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Lok Sabha Election: विधानसभा चुनाव में पार्टियों ने सांसदों को चुनाव मैदान में उतारा था. तो लोकसभा चुनाव में चार विधायक अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. सबसे ज्यादा चर्चा में रहे इन विधायकों ने लोकसभा चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. तो पार्टी ने भी इनको प्रमोट किया है. ऐसे में देखना होगा की जनता इनको कितना पसंद करती है. 

प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 7 सांसदों को चुनाव मैदान में उतारा था. तो अब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने चार विधा यकों को चुनावी रण में उतारा है. इसमें दो क्षेत्रीय दलों के साथ ही एक निर्दलीय विधायक भी लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. कांग्रेस ने अलवर की मुंडावर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए ललित यादव को अलवर लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है. मुरारी लाल मीणा को दौसा से बृजेंद्र ओला को झुंझुनू से और हरीश मीणा को टोक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी रालोपा विधायक हनुमान बेनीवाल नागौर से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा विधायक राजकुमार डूंगरपुर-बांसवाड़ा और निर्दलीय विधायक रविंद्र भाटी जैसलमेर बाड़मेर से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 

इनको मिला था मौका

भाजपा ने राज्यसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को अलवर लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है. यादव का राज्यसभा कार्यकाल इस वर्ष अप्रैल में समाप्त हो रहा था. लेकिन पार्टी ने उन्हें उससे पहले ही लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी बना दिया. ऐसे में सभी की निगाहें इन पर टिकी हुई है. 7 सांसद ने विधानसभा चुनाव लड़ा. इनमें भाजपा के 6 सांसद थे. जबकि एक रालोपा के सांसद हनुमान बेनीवाल थे. इनमें पांच लोकसभा और एक राज्यसभा सांसद थे. हालांकि दो सांसद चुनाव हार गए. वहीं तीन को प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री और मंत्री बनाया गया. इनमें से राज्यसभा सांसद की किरोड़ी लाल मीणा ने विधायक बनने के बाद सांसद पद से इस्तीफा दिया. इसके अलावा बाबा बालक नाथ, राजवर्धन सिंह राठौड़ व दिया कुमारी सांसद से विधायक बनी.

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आम जनता का बर्बाद होता है पैसा

सांसद विधानसभा चुनाव लड़कर विधायक बन जाते हैं तो उनकी सीट खाली हो जाती है. जिस पर उपचुनाव होता है. इसी तरह से विधायक जब सांसद का चुनाव लड़ता है और वो चुनाव जीतते है. तो उपचुनाव होता है. ऐसी स्थिति में जनता सरकारी मशीनरी की बर्बादी होती है. क्योंकि बार-बार आचार संहिता लगती हैं. साथ ही चुनाव कराने में लाखों करोड़ों रुपए खर्च होते हैं.
 

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