झोले में चूरमा और ड्रेस लेकर निकले बालकनाथ, महज इतनी उम्र में बने सन्यासी, जानकर रह जाएंगे हैरान

राजस्थान तक

ADVERTISEMENT

बालकनाथ ने राहुल गांधी पर यात्रा के बहाने चंदा मांगकर ये सब करने का लगाया गंभीर आरोप
बालकनाथ ने राहुल गांधी पर यात्रा के बहाने चंदा मांगकर ये सब करने का लगाया गंभीर आरोप
social share
google news

Baba Balaknath: तिजारा सीट से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद बाबा बालकनाथ (Baba Balaknath) ने भी अन्य सांसदों की तरह अलवर संसदीय क्षेत्र से इस्तीफा दे दिया है. इन सबके बीच मुख्यमंत्री पद के लिए बालकनाथ को भी दावेदार माना जा रहा है. सन्यासी जीवन के बाद राजनैतिक सफर का रास्ता तय करने वाले बालकनाथ 6 साल की उम्र में घर से निकल गए थे. अपने झोले में चूरमा और एक ड्रेस लेकर घर से निकले बालकनाथ की चर्चा देशभर में है. बालकनाथ एक सामान्य परिवार से हैं. उनके पिता ने बाबा खेतानाथ को अपना बेटा दान दे दिया था. बालकनाथ की जीत के बाद पूरा परिवार और गांव बालकनाथ को मुख्यमंत्री बनता हुआ देखना चाहता है. पूरे गांव में दिवाली जैसा माहौल है.

बहरोड के पास कोहराना गांव में रहने वाले सुभाष यादव शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति के रहे हैं. वो महाराज खेतानाथ की सेवा करते थे. कामकाज छोड़कर उनकी सेवा में लगे रहते थे. महाराज खेतानाथ ने सुभाष यादव को अपना शिष्य बनने की बात कही. लेकिन सुभाष यादव की शादी हो चुकी थी और उनके दो बच्चे थे. ऐसे में महाराज खेतानाथ ने सुभाष यादव से उनका बड़ा बच्चा मांग लिया.

ऐसे पड़ा ‘बालकनाथ’ नाम

खेतनाथ के समाधि लेने के बाद सुभाष यादव ने 6 साल की उम्र में अपने बड़े बेटा दान कर दिया. जिसको बालकनाथ नाम दिया गया. बालकनाथ रोहतक स्थित अस्थल बोहर के महंत बने, उसके बाद अलवर से सांसद बने. अब तिजारा विधानसभा सीट से विधायक का चुनाव लड़ा तो विधायक का चुनाव भी जीत गए.

राजस्थान तक से खास बातचीत में बालक नाथ के माता-पिता और परिवार के सदस्यों ने कहा कि उन्होंने अपना बेटा देश सेवा के लिए दान किया और अब उनको खुशी है कि उनका बेटा देश की सेवा कर रहा है. बालकनाथ की मां उर्मिला ने कहा कि उनको कोई गम नहीं है, उलटा खुशी है कि उनका बेटा देश की सेवा में लगा है और रात दिन यही प्रार्थना करती हैं कि बालक नाथ सीएम बने. पिता सुभाष यादव ने पूरे बचपन का वाकया सुनाते हुए कहा की शुरुआत में जब वो अपना बच्चा दान कर रहे थे. साधु सन्यासी बनने के लिए भेज रहे थे. उस समय मन में कई सवाल थे, लेकिन शायद विधाता को यही मंजूर था.

ADVERTISEMENT

यह भी पढ़ें...

परिवार ने दिया न्यौता, लेकिन बालकनाथ कभी नहीं लौटे

बालकनाथ बचपन से ही खुश थे. उनके मन में कोई संशय नहीं था. साधु सन्यासी बनने के बाद वो लौटकर कभी घर नहीं आए. परिवार ने कई बार शादी समारोह में उनको बुलाने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने आने से मना कर दिया. 2 साल पहले जब बालकनाथ की दादी का निधन हुआ. बालक नाथ की जीत की खुशी में उनके छोटे भाई के बच्चे भी खासे खुश दिखाई दिए.

Video: लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफे पर बाबा बालकनाथ ने नहीं दिया कोई जवाब

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT