करीब 40% सीटों पर MBC बदलेगा सत्ता का गणित! लेकिन एमबीसी की 3 जातियों से नहीं चुना गया 1 भी विधायक

गौरव द्विवेदी

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Vijay Bainsla demand for MBC Assembly Election 2023: राजस्थान (rajasthan news) में विधानसभा चुनाव (assembly election) की तैयारियों के बीच जातिगत समीकरण को साधने की पुरजोर कोशिश शुरू हो गई है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (ashok gehlot) ने सोशल इंजीनियरिंग के लिहाज से कई नए बोर्ड के गठन की घोषणा की, तो वहीं बीजेपी की हाल की गठित चुनाव प्रबंधन समिति हो या संकल्प समिति. हर कमेटी में जातियों को साधने की कवायद नजर आई.

इन सबके बीच गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष विजय बैंसला भी अब खुलकर बीजेपी के साथ मैदान में नजर आने लगे हैं. हाल ही में एक जयपुर के कार्यक्रम के दौरान उन्होंने एमबीसी समाज की ताकत बताते हुए इशारों ही इशारों में 72 विधानसभाओं और 2 लोकसभा सीटों पर समाज के लिए हक मांगा.

भले ही एमबीसी में शामिल गुर्जर समाज का प्रतिनिधित्व कही ना कही राजनैतिक क्षेत्र में दिखता हो, लेकिन इसी वर्ग की ऐसी भी जातियां है, जिनका आज तक भी एक विधायक नहीं चुना गया. आज हम आपको बता रहे हैं एमबीसी की उन जातियों के बारें में. साल 2019 में राजस्थान में गुर्जर समुदाय को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 5 फीसदी आरक्षण देने के लिए विधेयक पारित हुआ. राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन विधेयक, 2019 के तहत राज्य में 5 अति पिछड़ी जातियों बंजारा, गाड़िया लोहार, गुर्जर, गडरिया और रेबारी (देवासी और रायका समेत) को शामिल किया गया.

लेकिन इनमें 3 जातियां ऐसी है, जिनके समाज को अभी तक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है. लोहार, बंजारा और गड़रिया जाति से अब तक कोई भी विधायक नहीं चुना गया. इन सबके बीच पूरे प्रदेश में विधायक या सांसद तो छोड़िए, गडरिया समाज से कोई निर्वाचित पार्षद नहीं चुना गया. भरतपुर नगर निगम से राकेश होल्कर गडरिया समाज से एकमात्र मनोनीत पार्षद है.

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इस विधानसभा में रेबारी समाज का प्रतिनिधित्व नहीं
वहीं, वर्तमान विधानसभा में रेबारी समाज से भी विधायक नहीं है. साल 2018 विधानसभा चुनाव में रानीवाड़ा से कांग्रेस के पूर्व विधायक रतन देवासी चुनाव लड़े. लेकिन सीट पर जीत बीजेपी के नारायण सिंह देवल की हुई. जबकि सिरोही विधानसभा की सामान्य सीट से बीजेपी की ओर से ओटाराम देवासी लगातार तीसरी बार मैदान में थे. ओटाराम देवासी पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आते है. जबकि जीत निर्दलीय उम्मीदवार संयम लोढ़ा की हुई जो वर्तमान में गहलोत के सलाहकार भी हैं.

पूर्वी राजस्थान ही नहीं, पश्चिमी राजस्थान में भी निर्णायक हो जाती है भूमिका
जिसके चलते अब एमबीसी समाज को एकजुट करने के लिए विजय सिंह बैंसला भी सक्रिय हो चुके हैं. दरअसल, इसके पीछे एक खास वजह है. प्रदेश की 200 में से करीब 75 विधानसभा सीटों पर एमबीसी समाज निर्णायक भूमिका में हैं. पूर्वी राजस्थान के धौलपुर से बाड़मेर बॉर्डर तक लगते जिलों में 37 फीसदी सीटें ऐसी है, जहां भले ही उम्मीदवार किसी भी समाज से हो, एमबीसी समाज का वोट बेहद जरूरी हो जाता है. गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति का दावा है कि इन 75 सीटों पर समाज के 37 हजार से 78 हजार वोट है. ये वोट जिनके खाते में जाए, उनके लिए राह आसान हो सकती है.

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बीजेपी-कांग्रेस दोनों का सोशल इंजीनियरिंंग पर रहता है जोर  
वहीं, लोकसभा सीटों की बात करें तो कुल 25 में से करीब 12 सीटों पर प्रभाव है. जिसमें अलवर, जयपुर ग्रामीण, दौसा, भरतपुर, अजमेर, करौली-धौलपुर, झालावाड़, कोटा, भीलवाड़ा, बाड़मेर के अलावा राजसमंद और उदयपुर सीटों पर भी एमबीसी समाज की अहम भूमिका हो जाती है. जबकि गुर्जर समाज से महज एक सांसद टोंक सुखबीर सिंह जौनपुरिया है. जबकि कांग्रेस ने सचिन पायलट को सीडब्ल्यूसी मेंबर बनाकर समाज को साधने की कोशिश की है. लेकिन बीजेपी में कहीं ना कहीं इस समाज को साधने के लिए खास तौर पर किसी को जिम्मेदारी नहीं दी है. ऐसे में विजय सिंह बैंसला एमबीसी समाज के जरिए अपनी ताकत दिखा रहे हैं.

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हकीकत यह भी है कि बीजेपी-कांग्रेस हो या कोई ओर दल, राजस्थान की राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग को लेकर अक्सर ही कवायद दिखती है. खुद को ‘राजपूत की बेटी, जाटों की बहू और गुर्जरों की समधन’ बताने वाली पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी जातिगत समीकरण से सरकार चलाती रही हैं. दूसरी ओर, सीएम अशोक गहलोत का जादू भी इस मामले में जमकर चलता है.

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