मचान विधि से बदल रही है किसानों की तकदीर, बेल वाली सब्जियों के लिए है बेहद कारगर

Pramod Tiwari

• 11:46 AM • 07 Jan 2023

Rajasthan Agriculture News: बेल वाली सब्जियों विशेष रूप से लौकी की खेती में केवल मचान बनाकर सीजन और ऑफ सीजन दोनों में न केवल जमीन पर पैदा होने वाली लौकी से दुगुने दामों की क्वालिटी प्राप्त की बल्कि इसका उत्पादन भी दोगुना कर दिखाया. जी हां, यह करिश्मा कर दिखाया है राजस्थान के भीलवाड़ा जिले […]

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Rajasthan Agriculture News: बेल वाली सब्जियों विशेष रूप से लौकी की खेती में केवल मचान बनाकर सीजन और ऑफ सीजन दोनों में न केवल जमीन पर पैदा होने वाली लौकी से दुगुने दामों की क्वालिटी प्राप्त की बल्कि इसका उत्पादन भी दोगुना कर दिखाया. जी हां, यह करिश्मा कर दिखाया है राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में बीगोद के प्रगतिशील किसान अब्दुल जलील लुहार ने जो खुद कभी स्कूल तो नहीं गए मगर ऐसे नवाचार उनके दिमाग में आते रहते हैं.

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इन दिनों किसानों में मचान विधि काफी प्रचलित है. मचान विधि बेल वाली सब्जियों के लिए बेहद कारगर मानी जा रही है. बीगोद निवासी अब्दुल जलील लोहार पिछले तीन वर्ष से अपने ढाई बीघा खेत में लौकी की खेती मचान विधि से कर रहे हैं और साथ में मिश्रित खेती भी कर रहे है. इस बार लौकी की हजारा की नई किस्म भी लगाई है जिसको भी लोग खूब पसंद कर रहे है. लौकी में हजारा के नाम से नई किस्म आई है जिसमें एक पौधे पर एक हजार से भी अधिक लौकी आती है. इस किस्म की लौकी खाने में भी स्वादिष्ट होने से मंडियों में भी खूब पसंद की जा रही है.

मचान विधि बेल वाली सब्जियों के लिए कारगर सिद्ध
मचान विधि बेल वाली सब्जियों जैसे लौकी, खीरा और करेला के लिए उपयुक्त मानी जाती है. इसमें बांस या तार की मदद से खेत में मचान तैयार करके उस पर सब्जियों की बेल को चढ़ा देते हैं. मचान विधि से फसल कम खराब होती है. बारिश होने पर बेल वाली सब्जियों के खराब होने का अंदेशा बना रहता है. मचान विधि से फसल सुरक्षित रहती है. फसलों में किसी प्रकार रोग या कीट लगने पर दवाइयां छिड़कने में भी बेहद आसानी होती है. मचान के नीचे धनिया, टमाटर, मिर्ची, पालक लगाकर अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है. मचान विधि से फसल की गुणवत्ता और पैदावार दोनों में बढ़ोत्तरी होती है.

3 साल पहले अपने खेत पर लौकी की फसल में मचान तैयार करने वाले किसान अब्दुल जलील लोहार बताते हैं कि जमीन पर लौकी की खेती में उसका रंग और आकार अच्छा नहीं होने से मंडी में उचित दाम नहीं मिलता था. जहां जमीन पर पैदा होने वाली लौकी मंडी में ₹5 प्रति किलो बिकती है वही मचान वाली हमारी लौकी का भाव ₹10 प्रति किलो आसानी से मिल जाता है. यहां तक की हमारे उपज को मंडी में बिकने में 5 मिनट भी नहीं लगते हैं. बस यहीं से मुझे यह आइडिया आया कि लौकी की बेल को क्यों नहीं मचान पर चढ़ाया जाए. एक अन्य किसान अब्दुल रजाक ने बताया कि अब मचान से खेती ने मेरी किस्मत ही बदल दी है.

मचान विधि से मिलता है अच्छा उत्पादन
अब्दुल जलील आगे कहते हैं मचान लगाने से उत्पादन में भी जबरस्त प्रभाव पड़ा है. गर्मी के दिनों में जमीन पर तैयार होने वाली लौकी का 3 से 4 दिन में तोड़ होता है और ठंड के दिनों में 10 दिन में तोड़ होता है. जबकि मचान पर लगाई गई लोकी का गर्मी के दिनों में प्रतिदिन तोड़ होता है और ठंड के दिनों में 4 दिन में तोड़ हो जाता है. डेढ़ बीघा जमीन में गर्मी में जमीन की फसल से 150 किलो लौकी का उत्पादन होता है तो मचान पर मेरा यह उत्पादन 400 किलो तक पहुंच जाता है. अब्दुल जलील बताते हैं कि उनकी डेढ़ बीघा जमीन में 40000 रुपये की मचान के साथ-साथ उन्होंने अब तक कुल 70000 रुपए लौकी की बुवाई खाद और दवाइयों में खर्च किये है और वो डेढ़ लाख रुपए से अधिक लौकी की फसल बेच चुके है. उन्होंने बताया कि अभी वह दो तुड़ाई और करेंगे. कृषि विभाग से उन्हें उराई के लिए ड्रिल मशीन खरीदने में छूट भी मिली है.

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