ओपिनियन: कांग्रेस चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने राज्यसभा में जाने के लिए इस वजह से चुना ‘राजस्थान’

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राजस्थान से राज्यसभा में जाने को तैयार कांग्रेस पर्सन सोनिया गांधी के इस निर्णय को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. ये सवाल पर सियासी गलियारों में है कि आखिर सोनिया गांधी ने राजस्थान को ही क्यों चुना. इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक राशिद किदवई ने बताया कि सोनिया गांधी ने उत्तर-दक्षिण का आंतरिक संतुलन बनाए रखने के लिए राजस्थान को चुना है.

राशिद किदवई के मुताबिक- जुलाई 2023 में प्रकाशित मेरे एक रिपोर्ट के मुताबिक ही सोनिया गांधी ने उच्च सदन (Rajya sabha) में पहुंचने के लिए राज्यसभा का रास्ता अपनाया है. जानकार सूत्रों ने कहा कि जबकि सोनिया गांधी सिद्धारमैया के हावभाव से बहुत प्रभावित हुईं हैं. उन्होंने उत्तर-दक्षिण का आंतरिक संतुलन बनाए रखने के लिए राजस्थान को चुना है. एआईसीसी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से राज्यसभा सांसद हैं जबकि राहुल गांधी केरल के वायनाड से लोकसभा सांसद हैं.

सिद्धारमैया ने की थी ये पेशकश

आठ महीने पहले, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक सीट की पेशकश की थी. सोनिया गांधी को उन्हें यह गौरव भी हासिल है कि वह कभी कोई चुनावी मुकाबला हारी नहीं हैं. वर्ष 1999 में औपचारिक रूप से राजनीति में शामिल होने और कांग्रेस की कमान संभालने के लगभग एक साल बाद सोनिया ने अमेठी और बेल्लारी (कर्नाटक) दोनों लोकसभा सीटें जीतीं. 2004, 2009, 2014 और 2019 में उन्होंने रायबरेली से जीत हासिल की.

सबकी निगाहें प्रियंका गांधी पर

इधर सबकी निगाहें अब प्रियंका गांधी पर हैं. क्या गांधी परिवार की सहसी और मुखर प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनावी शुरूआत करेंगी? कथित तौर पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी चाहते हैं कि प्रियंका उनके राज्य से लोकसभा चुनाव लड़ें.

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राशिद किदवई के मुताबिक कांग्रेस के एक अन्य दिग्गज नेता आनंद शर्मा को हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा नामांकन मिलने की संभावना थी, लेकिन उनकी जगह अभिषेक मनु सिंघवी को मौका दिया गया. किसी गैर-हिमाचली को पहाड़ी राज्य से राज्यसभा नामांकन मिलने का यह पहला मामला है. हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कथित तौर पर शर्मा के नाम की सिफारिश की थी.

सैयद नासीर हुसैन, जो कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य और कांग्रेस अध्यक्ष कार्यालय के प्रभारी हैं, उनको अपने गृह राज्य से उच्च सदन में फिर से नामांकन मिलने की संभावना है. अखिलेश प्रताप सिंह और एआईसीसी कोषाध्यक्ष अजय माकन राज्यसभा का नामांकन पाने के लिए तैयार बैठे हैं.

राज्यसभा में राजस्थान से कांग्रेस में ‘बाहरी’ लोगों का दबदबा और वर्चस्व बरकरार रहेगा. राज्य के छह कांग्रेस सांसदों में से पांच पर ‘बाहरी’ का टैग लगा हुआ है, जैसे कि रणदीप सिंह सुरजेवाला, मुकुल वासनिक, प्रमोद तिवारी, केसी वेणुगोपाल और सोनिया गांधी. राज्य से कांग्रेस के राज्यसभा सांसदों की सूची में केवल राजस्थान के मेघवाल समुदाय से आने वाले नीरज डांगी ही ‘स्थानीय’ हैं.

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10 जनपथ को बरकरार रखने के लिए ये फैसला

जानकार सूत्रों का कहना है कि सोनिया ने राज्यसभा सीट चुनने का फैसला 10, जनपथ को बरकरार रखने के लिए किया था, जो 1989 से उनका निवास स्थान रहा है. वर्ष 1989 में ही राजीव गांधी सत्ता हाथ से जाने के बाद यहां से चले गए थे.

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2019 के बाद, अपने स्वास्थ्य और कई अन्य कारणों से सोनिया अपने रायबरेली लोकसभा क्षेत्र की उतनी देखभाल नहीं कर पाईं जितनी वह चाहती थीं. प्रियंका गांधी के 2024 में चुनाव लड़ने या रायबरेली जीतने की संभावना से 10, जनपथ को बरकरार रखने का मुद्दा हल नहीं होगा. पहली बार सांसद बनने के बाद प्रियंका 10 जनपथ पाने की हकदार नहीं होंगी.

10 जनपथ में भूत?

दिलचस्प बात यह है कि 1989 में राजीव गांधी को लुटियंस दिल्ली के बंगलों की देखभाल करने वाले केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों ने वहां न जाने की सलाह दी थी. प्रतिभाशाली राजनेता ने यह कहते हुए इसे हंसी में उड़ा दिया था- “जब वो भूत इस भूत को देखेगा, तो वो भाग जाएगा.” 10 जनपथ को लेकर कई तरह के अंधविश्वास थे. ऐसा कहा जाता था कि अंदर दो कब्रें थीं.माना जाता है कि संजय गांधी का हादसा जैसे दुर्भाग्य लाने की वजह भी ये घर ही था.

ये है 10 जनपथ की कहानी

10, जनपथ 1975 के आपातकाल के दौरान भारतीय युवा कांग्रेस का कार्यालय हुआ करता था, जब अंबिका सोनी इसकी अध्यक्ष थीं और संजय गांधी इसके संरक्षक थे. 1977 की हार की गंभीरता बहुत बड़ी थी. इसके बाद राजेंद्र प्रसाद रोड पर कई वर्षों के बाद युवा कांग्रेस का कार्यालय खोला गया.

खून के निशान होने की अफवाहें भी

अफवाहें हैं कि जब राजीव गांधी 1989 में 10 जनपथ में गए, तो उन्होंने कुछ क्षेत्रों में खून के निशान देखे. 1977 और 1989 के बीच भारतीय प्रेस परिषद का कार्यालय था, लेकिन उन्हें भी यहां से बाहर जाना पड़ा. बक्सर के एक मुखर कांग्रेस नेता केके तिवारी यहां रहे और राजीव गांधी को घर आवंटित होने के बाद यहां से चले गए. तिवारी आज तक राजनीतिक जंगल में हैं.

लाल बहादुर शास्त्री भी यहीं रहे

पुराने लोग याद करते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री भी 10, जनपथ (प्रधान मंत्री के रूप में उनके आवासीय परिसर में वे हिस्से शामिल थे जो वर्तमान में 10, जनपथ में हैं) में रुके थे. प्रधानमंत्री पद पर रहने के 18 महीने के भीतर ही शास्त्री की मृत्यु हो गई.

…जैसा कि इंडिया टुडे के लिए राशिद किदवई ने लिखा है.

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