सियासी किस्सेः इंदिरा गांधी से बगावत करने वाले हरिदेव जोशी को कैसे मिली सूबे की कमान? जानें

गौरव द्विवेदी

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Siasi Kisse: राजस्थान के सियासी इतिहास में 25 सितंबर 2022 की तारीख कई मायनों में खास होने के चलते यह तारीख सियासी इतिहास में भी दर्ज हो गई. जब राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा तब गहलोत गुट के विधायकों ने आलाकमान को ही चुनौती दे डाली. आलाकमान की बैठक का बहिष्कार कर दूसरी बैठक बुलाई गई और सामूहिक इस्तीफे दिए गए. हालांकि यह अध्याय अब थम चुका है.

यह पहली बार नहीं था जब कांग्रेस के आलाकमान को विधायक दल ने इस तरह चुनौती दी हो. ऐसा ही कुछ हुआ 70 और 80 के दशक में. 70 के दशक में जब इंदिरा को हरिदेव जोशी ने चैलेंज किया तो आलाकमान खफा हो गया. वो नहीं चाहता था कि हरिदेव जोशी राजस्थान के सीएम बने. हालांकि 80 के दशक में एक मौका आया, जब ना सिर्फ हरिदेव ने इंदिरा गांधी को दोबारा चुनौती दी, बल्कि उनकी पसंद रामनिवास मिर्धा को मात देकर सूबे की सत्ता हासिल की.

इस दौरान 11 अक्टूबर 1973 से 29 अप्रैल 1977 तक ही राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे. दूसरी बार 10 मार्च 1985 से 20 जनवरी 1988 तक और फिर 4 दिसम्बर 1989 से 4 मार्च 1990 तक उनका कार्यकाल रहा. जब सितंबर 1985 में अशोक गहलोत कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बने तो सत्ता-संगठन के बीच संघर्ष शुरू हुआ. प्रदेश में सती कांड प्रकरण सहित कई खामियों को प्रदेश के नेताओं ने दिल्ली तक पहुंचाया. इसी सत्ता संघर्ष के चलते राजीव गांधी ने हरिदेव जोशी को हटा कर शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री बना दिया.

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पहली बार ऐसे दी थी चुनौती
अब हम बात करते है 70 के दशक की. यह किस्सा है साल 1969 का, जब राष्ट्रपति चुनाव से पहले कांग्रेस दो फाड़ हो गई थी. तब राष्ट्रपति पद के लिए गांधी की पसंद वीवी गिरी थे. लेकिन सिंडिकेट कांग्रेस ने अधिकृत प्रत्याशी के रूप में नीलम संजीव रेड्डी को मैदान में उतार दिया. इसी सिंडिकेट कांग्रेस के प्रत्याशी रेड्डी को राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया ने भी समर्थन किया. उस दौरान सुखाड़िया के खेमे में हरिदेव जोशी भी थे. जाहिर तौर पर जोशी ने भी सुखाड़िया के साथ सिंडिकेट कांग्रेस के प्रत्याशी का समर्थन किया. यही किस्सा बाद में जोशी की ताजपोशी में दिक्कतें पैदा कर रहा था. दिल्ली दरबार नहीं चाहता था कि जयपुर की गद्दी पर सिंडिकेट कांग्रेस का साथ देने वाला कोई कांग्रेसी सदस्य सीएम बने.

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बरकतुल्लाह खां के सीएम के बाद इंदिरा को मिला मौका
दरअसल, 1973 में हार्ट अटैक के चलते सीएम बरकतुल्लाह खां का निधन हो गया था. 2 साल तक सीएम रहने के बाद यह कुर्सी खाली हो गई. जिसके चलते कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर हरिदेव जोशी को कमान सौंपी गई. क्योंकि जोशी वरिष्ठ थे, लेकिन कार्यवाहक से पूर्णकालिक सीएम होने के लिए इंदिरा गांधी की मुहर जरूरी थी. इन सबके बीच आड़े आ गया उनका सियासी इतिहास. जिसमें उन्होंने इंदिरा के खिलाफ कभी सिंडिकेंट कांग्रेस का साथ दिया था. इंदिरा के पास यही मौका था हरिदेव जोशी की खिलाफत का जवाब देने का.

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जोशी ने फिर दी चुनौती और बाजी भी पटली 
ये वो दौर था जब इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा. दरअसल, दिग्गज जाट नेता और केंद्र में गृह राज्य मंत्री रामनिवास मिर्धा को इंदिरा गांधी राजस्थान का सीएम बनाना चाहती थीं. जब बारी आई राजस्थान के सीएम चुने जाने की तो इंदिरा गांधी ने कहा कि विधायक दल खुद ही अपना नेता चुनें. मिर्धा को भी उम्मीद थी कि सूबे के जाट नेता उन्हें वोट करेंगे. लेकिन मुख्यमंत्री चुनने के दौरान ऐसा नहीं हुआ. विधायक दल की वोटिंग हुई. इस बार उम्मीद टूटी और मिर्धा को बड़ा झटका मिला. क्योंकि जाट विधायकों का एक हिस्सा मिर्धा के पाले से खिसककर जोशी खेमे में चला गया. यही निर्णायक मोड़ था, जिसके चलते हरिदेव जोशी को गद्दी मिली.

संभवतः प्रदेश की सियासत में यह आखिरी मौका था, जब विधायक दल की वोटिंग हुई. उस दौरान 13 वोटों के अंतर से जोशी जीते और सत्ता पर काबिज हुए. ऐसा माना जाता है कि यह आखिरी बार था जब विधायक दल की वोटिंग से सीएम की ताजपोशी हुई. इसके बाद से विधायकों से एक लाइन का प्रस्ताव पारित कर आलाकमान की पसंद पर मुख्यमंत्री चुने जाने लगे.

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3 बार रहे सीएम, कभी पूरा नहीं कर पाए कार्यकाल 
हरिदेव जोशी का जन्म राजस्थान के बांसवाड़ा में हुआ. इसी बांसवाड़ा में माही बांध के निर्माण में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. दरअसल, बांध बनने से पहले माही नदी की डूब क्षेत्र में होने के चलते यह इलाका काफी प्रभावित रहा था. इसी क्षेत्र के खांदू गांव में 14 दिसंबर, 1921 को हरिदेव जोशी का जन्म हुआ. वह महज 10 साल के थे, जब उनका बांया हाथ टूट गया. गांव के आस-पास चिकित्सकीय सुविधा नहीं होने के चलते उनका इलाज देशी तरीके से किया गया. बांस की मदद से हाथ सीधा करवा दिया, जिससे बाद में परेशानी हुई और हाथ में जहर फैल गया. घरवाले शहर इलाज के लिए लेकर गए तो डॉक्टर ने हाथ काटने की बात कही. हाथ गंवाने के बावजूद भी उन्होंने हौंसला नहीं खोया. लगातार संघर्ष करते हुए हरिदेव जोशी राज्य की सत्ता पर काबिज हुए. तीन बार सीएम तो रहे, लेकिन कभी भी मुख्यमंत्री कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.

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