जब लगे मुर्दाबाद के नारे तो कहा इससे बढ़ती है उम्र, अटल बिहारी को इस नेता ने दिया था जवाब

गौरव द्विवेदी

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Siasi Kisse: राजस्थान के कद्दावर नेता रहे मोहनलाल सुखाड़िया के व्यवहार और सादगी का हर कोई कायल था. उनकी भाषण शैली ने प्रदेश ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी छोप छोड़ी. उस दौर में जादूई वक्ता माने जाने वाले सुखाड़िया ने अटल बिहारी वाजपेयी को भी सदन में जवाब दिया. जिसके भाषण से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें चिठ्ठी भेजकर बधाई दी.

वाकया है सातवीं लोकसभा में 5वें सत्र में 25 फरवरी का जब 1981 को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सांसद बतौर उनका भाषण हुआ. जिसे प्रसिद्ध भाषण के तौर पर याद भी किया जाता है. दरअसल, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव प्रक्रिया चल रही थी. उस दिन सुखाड़ियाजी से पहले बाबू जगजीवनराम बोल चुके थे.

सन् 1977 में कांग्रेस छोड़ चुके बाबू जगजीवन राम ने मुस्लिमों, अनुसूचित जातियों पर हो रहे अत्याचारों, महंगाई और कानून-व्यवस्था की स्थिति पर इंदिरा सरकार को जमकर घेरा. जवाब में सुखाड़िया ने लंच से पहले और बाद में दो सत्र में अपना वक्तव्य दिया था. जिसकी राजनीतिक गलियारों में बार-बार चर्चा होती है. इसी भाषण के बाद इन्दिरा गांधी ने उन्हें पर्ची भेज लिखा था कि आपके भाषण पर बधाई. मैं अपने कमरे से सुन रही थी. 

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साल 1977 प्रसिद्ध भाषण, जब जनता दल को दिया जवाब
जब सुखाड़िया का भाषण चल रहा था तो अटल बिहारी वाजपेयी बोलने लगे कि कमलापति त्रिपाठी, जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने इतना कहा ही था कि तभी मोहनलाल सुखाड़िया ने कहा मुझे समाप्त करने दीजिए. मैं बीच में भी नहीं बोलता. जिसके बाद उन्होंने तमाम सवालों पर अपने अंदाज में वार किया. उन्होंने कहा कि कई माननीय सदस्यों के भाषणों को मैंने सुना और पढ़ा भी. मुझ से पहले हमारे देश के वयोवृद्ध नेता, जिनको सबसे ज्यादा वक्त तक शासन के अन्दर रहने और नीतियां बनाने का मौका मिला, बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि देश के अन्दर शेडयूल्ड कास्ट्स के लोगों के लिये, माइनारिटीज के बारे में, जो परिवर्तन होना चाहिये था, वह अभी तक नहीं हुआ है और अभी भी कई जगहों से अत्याचारों के समाचार समय-समय पर हमारे सामने आते हैं.

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उन्होंने एक बात ठीक ही कही कि आज जो कुछ भी कमियां हैं, उन कमियों के लिए किसी एक दल-विशेष पर आक्षेप करने के बजाय जो सामाजिक परिस्थितियां हैं, उन परिस्थितियों को ठीक करने के लिए सभी को मिलकर प्रयत्न करना होगा. इस प्रकार के अत्याचार न हों इस बात से किसी को भी मतभेद नहीं हो सकता है, सभी चाहेंगे कि अत्याचारों को रोकना चाहिए. मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूँ कि क्या यह सत्य नहीं है कि जनता पार्टी के जमाने के अन्दर जगह-जगह पुलिस के आन्दोलन हुए, यहां तक कि गोली चलाने की नौबत भी पेश आई और कई जगहों पर बहुत से लोग भी मारे गए. इस बात से इंकार नहीं कर सकते. एक मिनट के लिए यह बात मान भी लें कि यूपी के अन्दर वह घटना हुई थी.

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इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जनता पार्टी के जमाने में अखिल भारतीय स्तर पर सारे का सारा पुलिस डिसिप्लिन टूटने की बात आकर खड़ी हुई थी. आज इस शासन को आए हुए एक वर्ष हुआ है और यह कहा जाता है कि ये कमियां हैं और वे कमियां हैं. हम भी यह दावा करके नहीं चलते कि स्थिति बिल्कुल ठीक हो गई है और कहीं कोई कमी नहीं है. जो कमियां हैं, उनको ठीक करने की आवश्यकता है लेकिन यहाँ पर कभी कोई आंकड़े पेश किए जाते हैं और कभी कहीं के आँकड़े पेश किए जाते हैं.

कांग्रेस के पोस्टर पर विरोधियों ने फेंका पत्थर तो बोले- ऐसे ही चुनाव में लगाना मुहर
जब सन् 1967 में आम चुनावों में सुखाड़िया भरतपुर के गांधी पार्क में पार्टी प्रत्याशी राजबहादुर के समर्थन में सभा कर रहे थे तो कुछ विरोधी लोग ‘सुखाड़िया मुर्दाबाद’ के नारे लगारहे थे. ऐसे में सुखाड़िया विचलित नहीं हुए, बल्कि बोलते हुए थोड़ा सा रुके और फिर बोले कि- आप लोगों ने मुर्दाबाद कह के मेरी उम्र बढ़ा दी है. इतना सुनते ही नारे लगाने वाले विरोधी शर्मिन्दा हो मैदान छोड़ गए. ऐसे ही जब सन् 1980 के मध्यावधि लोकसभा चुनावों में सुखाड़िया जयपुर में चौपड़ पर भाषण दे रहे थे कि सभा में अव्यवस्था उत्पन्न करने के लिए किसी ने एक-दो पत्थर फेंके. उनमें से एक पत्थर मंच पर लगे कांग्रेस के पोस्टर पर लगा और उससे पोस्टर में छेद हो गया.

इस पर सभा में थोड़ी भगदड़ तो हुई. लेकिन मंच से ही सुखाड़िया ने तत्काल स्थिति संभाल ली और अपनी आवाज बुलन्द करते हुए कहा कि हमारे कुछ मित्रगण आपको बता रहे हैं कि हाथ पर निशान लगाना है. यही बात मैं आपको बताना चाह रहा था कि घबराए हुए हमारे विरोधी मित्रों ने आपको अवगत करा दी है. आप लोग बैठ जाए. इसी बात से माहौल शांत हो गया.

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