Holi 2023: शेखावाटी में चढ़ा होली का रंग, फेमस गीदड़ नृत्य के साथ ऐसे मनाया जाता है ये फेस्टिवल, जानें

Rakesh Gurjar

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Holi 2023:फतेहपुर का चंग-ढप व बांसुरी की धुन पर धमाल व गिदड़ नृत्य का आनंद फागुन के मौसम में रस घोल रहा है. चंग की थाप पर थिरकते लोग देर रात तक एंजॉय कर रहे हैं. होली के मौके पर फतेहपुर में मस्ताना चौक सहित दर्जनों जगह कार्यक्रम होते हैं.

फाल्गुन शुरू होते ही राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में होली का हुड़दंग शुरू हो जाता है. हर मोहल्ले में अपनी चंग पार्टी होती है. चंग शेखावाटी क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है. इसमें प्रत्येक पुरूष चंग बजाते हुये नृत्य करते हैं. यह होली के दिनों में ही किया जाता है. चंग को प्रत्येक पुरूष अपने एक हाथ से थाम कर और दूसरे हाथ से कटरवे का ठेका बजाते हुए वृत्ताकार घेरे में नृत्य करते हैं. घेरे के मध्य में एकत्रित होकर धमाल और होली के गीत गाते हैं.

ये परंपरा भी
होली के एक पखवाड़े पहले गीदड़ नृत्य शुरू हो जाता है. जगह-जगह भांग घुटती है. हालांकि अब ये नजारे कम ही देखने को मिलते हैं. जबकि, शेखावाटी में ढूंढ का चलन अभी है. परिवार में बच्चे का जन्म होने पर उसका ननिहाल पक्ष और बुआ कपड़े और खिलौने होली पर बच्चे को देते हैं.

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बसंती पंचमी से होती है शुरूआत
फतेहपुर शेखावाटी शेखावाटी अंचल के हर गांव कस्बे में रात्रि में लोग एकत्रित होकर चंग की मधुर धुन पर देर रात्रि तक धमाल (लोक गीत) गाते हुए मोहल्लों में घूमते रहते हैं. होली के अवसर पर बजाया जाने वाला ढप भी इसी क्षेत्र में ही विशेष रूप से बनाया जाता है. ढप की आवाज तो ढोलक की माफिक ही होती है, मगर बनावट ढोलक से सर्वथा भिन्न होती है. डप ढोलक से काफी बड़ा व गोल घेरे नुमा होता है. होली के प्रारम्भ होते ही गांवों में लोग अपने-अपने चंग (ढप) संभालने लगते हैं. होली चूंकि बसंत ऋतु का प्रमुख पर्व है और बसंत पंचमी से प्रारम्भ होने की द्योतक है. इसलिए इस अंचल में बसंत पंचमी के दिन से चंग (ढप) बजाकर होली के पर्व की विधिवत शुरुआत कर दी जाती है.

लोकगीतों में होता है ये सुंदर संदेश
क्षेत्र में होली के पर्व पर चंग की धुन पर गाई जाने वाली धमालों में यहां की लोक संस्कृति का ही वर्णन होता है. इन धमालों के माध्यम से जहां प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं को अपने प्रेम का संदेशा पहुंचाते हैं वहीं श्रद्धालु धमालों के माध्यम से लोक देवताओं को याद कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं. धमाल के साथ ही रात्रि में नवयुवक विभिन्न प्रकार के स्वांग भी निकाल कर लोगों का भरपूर मनोरंजन करते हैं. गांवों में स्त्रियां रात्रि में चौक में एकत्रित होकर मंगल गीत, बधावे गाती हैं. होली के दिनों में आधी रात तक गांवों में उल्लास छाया रहता है.

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जानें क्या है गीदड़ नृत्य
शेखावाटी अंचल में होली पर कस्बों में विशेष रूप से गीदड़ नृत्य किया जाता है. गुजराती नृत्य गरबा से मिलता-जुलता गींदड़ नृत्य में काफी लोग विभिन्न प्रकार की चित्ताकर्षक वेशभूषा में नंगाड़े की आवाज पर एक गोल घेरे में हाथ में डंडे लिए घूमते हुए नाचते हैं तथा आपस में डंडे टकराते हैं. प्रारम्भ में धीरे-धीरे शुरू हुआ यह नृत्य रफ्तार पकड़ता जाता है. इसी रफ्तार में डंडों की आवाज भी टकरा कर काफी तेज गति से आती है तथा नृत्य व आवाज का एक अद्भुत दृश्य उत्पन्न हो जाता है. जिसे देखने वाला हर दर्शक रोमांचित हुए बिना नहीं रह पाता है. होली के अवसर पर चलने वाले इन कार्यक्रमों से यहां का हर एक व्यक्ति स्वयं में एक नई स्फूर्ति का संचार महसूस करता है.

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