मंत्री बन जिस कोठी में रहने गए राजेश पायलट वहां का किस्सा सुन पत्नी रमा रह गईं दंग, पढ़ें ये सियासी किस्सा

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Siasi Kisse Rajasthan Tak: फर्श से अर्श पर पहुंचने वाले नेताओं में राजेश्वर बिधूड़ी (राजेश पायलट) की गिनती होती है. ‘सियासी किस्से’ की सीरीज में हम ये तो बता चुके हैं कि उनका नाम राजेश्वर बिधूड़ी से राजेश पायलट कैसे पड़ा? अब हम आपको उनके जीवन के कठिन दौर का किस्सा बता रहे हैं जिसका जिक्र उनकी पत्नी रमा पायलट ने न केवल ‘राजेश पायलट: अ बायोग्रॉफी’ में किया है बल्कि BBC को दिए एक इंटरव्यू में भी बताया है.

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 घास काटने वालों को देख रमा ने कही ये बात
मंत्री बनने के बाद राजेश पायलट जिस कोठी में रहते थे उसमें कुछ गाय-भैंस पालने वाले घास काटने आते थे. एक दिन रमा और राजेश बैठे थे. रमा देख रही थीं कि घास काटने वाले बोरे में इतना ज्यादा घास भर चुके हैं कि जोर लगा रहे हैं उसमें और भरने की. रमा राजेश पायलट से कहती हैं- देखे न इन्हें कितना लालच आ रहा है. बोरी में इतनी घास ठूंस रहे हैं. तब राजेश पायलट बोले- जब मैं इन कोठियों में दूध देने आता था तो मैं भी यही करता था. मैं तो बोरियों में घास डालकर सीध खड़ा हो जाता था ताकि उसमें रखी घास दब जाए और ज्यादा घास आ सके.

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राजेश की माली हालत थी खराब
राजेश पायलट के करीबी दोस्त रमेश कौल ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में एक किस्सा शेयर किया था. रमेश कौल ने बताया- बचपन में राजेश की माली हालत बहुत खराब थी. वो अपने चचेरे भाई नत्थी सिंह के साथ रहते थे. उनके तबेले में गाय-भैंस को खिलाने, दूध बचने से लेकर गोबर निकालने का काम करते थे. राजेश्वर प्रसाद मंदिर मार्ग के म्यूनिसिपिल बोर्ड स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे. तब ये स्कूल इंग्लिश मीडियम हुआ करते थे. वहीं रमेश कौल और पायलट की कक्षा 8 में पढ़ाई के दौरान दोस्ती हुई जो ताऊम्र रही.

कौल बताते हैं कि पायलट उस वक्त कपड़े भी मांगकर पहनते थे. उन्होंने एनसीसी में इसलिए हिस्सा लिया क्योंकि पहनने के लिए यूनीफॉर्म मिल जाएगी. हालांकि वे एनसीसी कर एक्टिविटीज में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते थे.

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हनीमून पर 5 सितारा होटल से नॉर्मल लॉज का सफर
राजेश पायलट की रमा से साल 1974 में शादी हुई. तब राजेश के पास महज 5 हजार रुपए थे. पहले वे रमा के साथ 5 सितारा होटल में रुके. बजट को देखते हुए फिर एक सितारा और फिर 25 रुपए पर नाइट वाले होटल में शिफ्ट हो गए.

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वर्ष 1980 में एक दिन राजेश्वर बिधूड़ी इंदिरा गांधी के पास पहुंचे और यूपी के बागपत से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की. ये सुनकर इंदिरा गांधी चौंका गईं. उन्होंने समझाया कि बागपत में चौधरी चरण सिंह चुनाव लड़ते हैं और वहां चुनाव के दौरान हिंसा जैसे रिस्क फैक्टर को भी समझाया. इसपर राजेश्वर बिधूड़ी ने कहा कि वो भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में कई बम गिरा चुके हैं, चुनाव में लाठियां भी खा सकते हैं.

संजय गांधी का आया फोन
इंदिरा गांधी से मुलाकात के कुछ दिनों बाद राजेश्वर बिधूड़ी के पास संजय गांधी का फोन आया. उन्होंने उनसे राजस्थान के भरतपुर से चुनाव लड़ने का मशविरा दिया. भरतपुर यूपी से सटा वो इलाका है जिसके बारे में राजेश्वर बिधूड़ी बहुत ज्यादा कुछ नहीं जानते थे. वे संजय गांधी के कहने पर सीधे भरतपुर पहुंचे. वहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा- मैं राजेश विधूड़ी हूं. संजय गांधी ने भेजा है. कार्यकर्ता बोले- हम राजेश्वर बिधूड़ी को नहीं जानते. संजय गांधी ने हमें राजेश पायलट का प्रचार करने के लिए बोला है. इसपर वे चौंक गए. उन्होंने संजय गांधी को फोन मिला दिया.

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संजय गांधी ने नाम बदलने का बताया उपाय
तब संजय गांधी ने कचहरी जाकर नाम बदलने का हलफनामा देने को कहा और बोले कि राजेशश्वर बिधूड़ी से अपना नाम राजेश पायलट कर लीजिए. इसके बाद राजेश पायलट नाम बदलकर चुनाव लड़े और राजस्थान की सियासत ही नहीं बल्कि देश की सियासत में मशहूर हो गए.

भरतपुर से पहला चुनाव जीते और वादे भी पूरे किए
वर्ष 1980 में वे चुनाव जीते और भरतपुर से किए गए वादों को पूरा किया. इसके बाद वे दौसा से लगातार 3 बार चुनाव जीते. वर्ष 1991 में टेलीकॉम मिनिस्टर बने और 1993 में आंतरिक सुरक्षा मंत्री का पदभार संभाला.

दौसा से विशेष लगाव, वहीं हुआ हादसा
कहते हैं राजेश पायलट का दौसा से विशेष लगाव रहा. दौसा में ही 11 जून 2000 को भंडाना गांव के पास सड़क दुर्घटना में वे गंभीर रूप से घायल हो गए. उन्हें आनन-फानन में जयपुर लाया गया जहां सवाईमान सिंह अस्पताल में डॉक्टरों में मत घोषित कर दिया. दौसा में ऐसा मातम पसरा कि उस दिन एक भी घर में चूल्हा नहीं जला. उनकी मृत्यु का समाचार सुनकर पूरा प्रदेश गमगीन हो गया था.

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