Rajasthan: जैसलमेर से आई बड़ी खुशखबरी, विलुप्त हो रही सोन चिरैया को कृत्रिम तरीके से किया पैदा

विमल भाटिया

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Rajasthan: जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क में राजस्थान सरकार वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया व वनविभाग द्वारा संयुक्त रूप से गोडावण के कन्जरवेशन व कैपेटिव ब्रीडिंग प्रोग्राम के तहत एक नई खुशखबरी आई है. करीब 3 साल पहले कोरोना काल मे एक अंडे से निकली मादा गोडावण की चिक जिसका नाम भी कोरोना रखा गया था. जिसके द्वारा प्रजनन के बाद दिए गए अंडे की हैचिंग के बाद एक नया गोडावण का चिक (चूजा) निकल आया है. इस प्रकार का देश का यह पहला मामला है.

इस उपलब्धि पर भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने भी ट्वीट करके इसकी जानकारी देकर बधाई दी है. उन्होंने अपने ट्वीट में बताया कि साझा करते हुए खुशी हो रही है कि प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ने जैसलमेर में एक और मील का पत्थर पार कर लिया है. यह दूसरी जेनरेशन के गोडावण की आर्टिफिशियल हैचिंग की बहुत बड़ी सफलता है.

उन्होंने बताया कि यह एक अत्यधिक लुप्तप्राय पक्षी है, जिसे सोन चिरैया के नाम से भी जाना जाता है, जिसे कृत्रिम रूप से पाले गए पक्षियों से सफलतापूर्वक बनाया गया है. अगला कदम जीआईबी की दूसरी पीढ़ी को जंगल में छोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर पालना किया जाएगा.

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धरती पर विलुप्त हो रही सोन चिड़िया

असल में धरती पर तेजी से लुप्त हो रहे शेड्यूल फर्स्ट के वन्य जीव जिसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड व हिंदी में सोन चिड़िया या स्थानीय भाषा में गोडावण कहा जाता है का जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क के जीआईबी के ब्रीडिंग सेंटर में कुनबा बढ़ा है. इसकी पुष्टि करते हुए सम गोडावण सेंटर के कोर्डिनेटर व WII के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ सुथिरतो दत्ता ने बताया कि राजस्थान वन विभाग, भारतीय वन्यजीव संस्थान, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और हौबारा संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष (यूएई) की एक संयुक्त पहल के रूप में बस्टर्ड रिकवरी प्रोग्राम 2016 में आबादी को ठीक करने के लिए शुरू किया गया था. इसके तहत साम एवं रामदेवरा में दो गोडावण संरक्षण प्रजनन केन्द्र स्थापित किए गए थे.

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वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता

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उन्होंने बताया कि घोंसले का पता लगाने के लिए मादा जीआईबी में ट्रांसमीटर लगाए गए थे और 2019-22 के दौरान थार रेगिस्तान में प्रजनन स्थलों से अंडे एकत्र किए गए थे. मार्च 2020 में लॉकडाउन की शुरुआत में उसे सम सेंटर में एक जंगली एकत्रित अंडे से कृत्रिम रूप से रचा गया था और इसलिए उसका नाम कोरोना रखा गया. आज उसी कोरोना मादा गोडावण ने एक ने 6 मार्च 2023 को एक अंडा दिया. इस अंडे को सम सेंटर के टेक्निशियन द्वारा 23 दिनों के लिए कृत्रिम रूप से उष्मायन किया गया और सफलतापूर्वक हैच किया गया.

इसके साथ ही जैसलमेर में जीआईबी कैप्टिव प्रजनन परियोजना ने एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर पार कर लिया है. दत्ता ने बताया कि कैप्टिव प्रजनन के लिए संस्थापक आबादी का निर्माण जारी रखने के लिए इस चूजे को अब अपने माता-पिता की तरह कैद में पाला जाएगा

आंशिक संस्थापक आबादी बनाने के लिए संरक्षण प्रजनन केंद्रों के निर्माण और जंगली एकत्रित अंडों की सफल हैचिंग के बाद, यह परियोजना का तीसरा प्रमुख मील का पत्थर है. अब यह स्थापित हो गया है कि कैप्टिव पाले गए जीआईबी सामान्य रूप से पुनरुत्पादन करने में सक्षम हैं, यदि उनका उचित और वैज्ञानिक रूप से पालन व प्रबन्धन किया जाता है. डेजर्ट नेशनल पार्क के डिप्टी कंजरवेटिव फॉरेस्ट आशीष व्यास ने बताया कि वर्तमान में इन केंद्रों में 06-33 महीने की उम्र के बीच 23 कैप्टिव जीआईबी हैं.

यूं किया गया संरक्षण

आशीष व्यास ने बताया कि जिस मादा ने इस बच्चे को 6 मार्च को जन्म दिया है. वह एक अंडे के रूप में जंगल में मिली थी. उसकी सम गांव स्थित ब्रीडिंग सेंटर में देखभाल की थी. करीब 21 दिन के बाद अंडे से एक मादा गोडावण निकली. उसे विशेषज्ञों की देखरेख में रखा और पालकर बड़ा किया. नर-मादा की मेटिंग भी सम स्थित ब्रीडिंग सेंटर में हुई. ब्रीडिंग सेंटर में ही मादा ने अंडा दिया. शनिवार को उस अंडे में से एक नन्हा गोडावण बाहर आया है.

ये अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. डेजर्ट नेशनल पार्क में बनाए गए हैचरी सेंटर में अंडों को वैज्ञानिक तरीके से सेज कर उनसे चूजे निकलवाए जा रहे हैं. ये कृत्रिम प्रजनन केन्द्र कई मायनों में सफल साबित हो रहा है. उन्होंने बताया कि डेजर्ट नेशनल पार्क में राजस्थान सरकार, मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरनमेंट फॉरेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज व वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया मिलकर डेजर्ट नेशनल पार्क में गोडावण के कंजर्वेशन ब्रीडिंग प्रोग्राम चला रहे हैं उसके तहत एक खुशखबरी आई है.

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