बूटा सिंह की इस सलाह पर फांदनी पड़ी दीवार, तब जाकर राजस्थान के सीएम बने शिवचरण माथुर, जानें

गौरव द्विवेदी

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Siasi Kisse: बिना विधायकों के समर्थन के सीएम बनने की बात हो या राजनीति में मुकद्दर के सिकंदर चमकने की, इनमें सबसे आगे नाम आता है दो बार सूबे के मुखिया रहे शिवचरण माथुर का. जिन्हें मौके-मौके आलाकमान का साथ भी मिला और उनकी गद्दी भी आलाकमान की नाराजगी के चलते ही गई. सुखाड़िया मंत्रिमंडल में मंत्री रहते हुए उनका वह किस्सा भी याद किया जाता है, जब विधानसभा सत्र के दौरान भैरोंसिंह शेखावत ने उन पर आरोप लगाए. यह आरोप थे भीलवाड़ा की लेबर कॉलोनी में 2 बीघा जमीन आवंटन के, जिसके बाद उसी समय माथुर ने त्यागपत्र दे दिया.

ऐसा ही एक उनका दिलचस्प किस्सा है जब उन्हें अपनी एक सियासी मुलाकात करने के लिए दीवार फांदनी पड़ गई थी. वाकया 1988 का है, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जोशी को सीएम पद छोड़ने के लिए निर्देशित किया था. तब नए सीएम के नाम पर विचार चलने लगा और यही नजर आई सियासी खींचतान की तस्वीर.

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साल 1988 के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी से इस्तीफा मांग लिया था. इसके बाद सीएम पद की रेस में शिवचरण माथुर और जगन्नाथ पहाड़िया के नाम चलने लगा. सभी की निगाहें इन्हीं दो दावेदार पर थी. चाहे प्रदेश की जनता हो या देशभर का मीडिया.

तब चिकित्सालय मार्ग पर तीन नंबर बंगला माथुर का था, लेकिन वह श्याम नगर स्थित खुद के मकान में रहते थे और इस बंगले में अपनी संस्थान सामाजिक नीति शोध संस्थान का कार्यालय खोल रखा था. इसके पास ही विवेकानंद मार्ग पर जगन्नाथ पहाड़िया का बंगला था.

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सीएम के दावेदार माथुर पहाड़िया से गुप्त मंत्रणा करना चाहते थे, लेकिन सभी की नजरों से बचते हुए. जब माथुर बाहर निकल ही रहे थे तो बाहर गेट पर भीड़ जमा थी. ऐसे में सभी की नजरों से बचते हुए पहाड़िया से मुलाकात के लिए दीवार फांदने के सिवाय कोई रास्ता भी नहीं था. जिसके चलते वह दीवार फांदकर ही पहाड़िया के बंगले पर पहुंच गए. हालांकि इस तस्वीर को तब एक फोटोग्राफर ने कैद कर लिया. जिसकी तस्वीर अगले दिन एक अखबार में भी छप गई थी.

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बूटा सिंह की सलाह पर की थी पहाड़िया से मुलाकात
दरअसल, इस पूरे किस्से के पीछे असली वजह थे तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह. जब 1985 में सिखों में कांग्रेस के आक्रोश था और पंजाब से सांसद और पूर्व गृहमंत्री बूटा सिंह की कुर्सी भी खतरे में थी. उस दौर में माथुर ने पंजाब की बजाय से जालौर से बूटा सिंह को चुनाव लड़ने में मदद की. इसी मदद के बदले बूटा सिंह ने जोशी के खिलाफ प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीब लाने में माथुर को बड़ी मदद में.

कहा जाता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी से राजनैतिक रिश्ते ठीक नहीं थे. वहीं, सूबे में बूटा सिंह ने जोशी के विकल्प के तौर पर माथुर को पूरी मदद की. इस दौरान जब जोशी का इस्तीफा हुआ तो बूटा सिंह ने कहा कि सीएम पद के दूसरे दावेदार पहाड़िया को मनाया जाए तो माथुर सीएम हो सकते हैं. उनकी इसी सलाह के चलते माथुर ने पहाड़िया के साथ आपातकाल बैठक की. जिसके चलते उन्हें दीवार तक फांदनी पड़ी.

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गौरतलब है कि उनका सफर भीलवाड़ा नगर पालिका के चेयरमैन से शुरू हुआ था, जो सिविल लाइंस की मुख्यमंत्री कुर्सी के बाद असम के राज्यपाल तक रहा. इसके अलावा वह साल 1964 में लोकसभा के उपचुनाव में सांसद बने और 1967 में जिले की मांडल विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने के साथ ही सुखाड़िया मंत्रिमंडल में शामिल हो गए. कांग्रेस से 3 बार विधायक माथुर को पहली बार 14 जुलाई 1981 को सीएम की गद्दी मिली, लेकिन उन्हें 23 फरवरी 1985 को आधी रात को इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद वह फिर से 20 जनवरी 1988 से 4 दिसंबर 1989 तक मुख्यमंत्री रहे. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बुरे प्रदर्शन के चलते माथुर ने 4 दिसंबर 1989 को अपना इस्तीफा दे दिया.

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इनपुटः प्रमोद तिवारी

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