प्रदेश में 17 साल तक मुख्यमंत्री रहे मोहनलाल सुखाड़िया की शादी का हुआ था विरोध, बंद हो गए थे बाजार

गौरव द्विवेदी

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Siasi Kisse: राजस्थान के मेवाड़ से आने वाला दिग्गज नेता रहे मोहनलाल सुखाड़िया के सिर महज 38 साल की उम्र में राज्य के मुख्यमंत्री का सेहरा सजा. जब वे सूबे की सत्ता पर काबिज हुए तो अगले 17 साल तक कोई हटा नहीं पाया. ना तो विपक्ष और ना ही आलाकमान. इनके लिए कहा जाता है वह पैदल ही घूमा करते थे और सड़कें नापते थे. खेतों में जाकर किसानों से मिला करते थे. जननेता सुखाड़िया के इस उपनाम और शादी को लेकर किस्सा है जो सियासी गलियारों में कभी-कभार चर्चा में आ ही जाता है.

दरअसल, 60 के दशक में मोहनलाल सुखाड़िया को तब राजस्थान में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में एक लोकप्रिय और जमीनी नेता के रूप में जाना जाता था. 31 जुलाई 1916 को राजस्थान के झालावाड़ में जन्में सुखाड़िया के पिता क्रिकेट के प्रसिद्ध खिलाड़ी थे. पिता पुरुषोत्तमदास सुखाड़िया बम्बई और सौराष्ट्र क्रिकेट टीमों के लिए खेलते थे. पुरुषोत्तमदास मूलतः गुजरात के सूरत नगर के निवासी थे.

गुजरात की सुखड़ी मिठाई से है नाता
कहा जाता है कि गुजरात की प्रसिद्ध मिठाई सुखड़ी बनाने वाले परिवार से उनका नाता था. इसीलिए इनका उपनाम ‘सुखाड़िया’ पड़ा. वर्तमान में सुखड़ी मिठाई से बना ‘सुखाड़िया’ उपनाम मुख्यतः गुजरात और महाराष्ट्र में पाया जाता है. दरअसल, गुजरात का एक प्रसिद्ध घरेलू मिष्ठान सुखड़ी देशी घी, भुने हुए आटे और गुड़ से तैयार बर्फीनुमा मिठाई है. वे परिवार जो इस मिठाई की व्यापारिक गतिविधियां संचालित करते थे, उन्हें ही गुजरात में ‘सुखाड़िया’ कहा गया.

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सुखाड़िया को हुआ प्यार फिर की शादी
मोहन लाल सुखाड़िया और इंदु बाला की शादी खुली बगावत से कम नहीं थी. जैसे उनके नाम से लेकर रोचक किस्सा है वैसे ही खास है उनका शादी से जुड़ा एक किस्सा. उदयपुर के पास राजसमंद जिले के नाथद्वारा में श्रीनाथजी को मानने वाले वैष्णव मत के अनुयायी हैं. आजादी के समय यहां के महंत दामोदरदास तिलकायत को क्रिकेट में बड़ी दिलचस्पी थी. उन्होंने पुरुषोत्तम सुखाड़िया को नाथद्वारा बुला लिया. मोहनलाल सुखाड़िया के बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया था. महंत ने सुखाड़िया को अपने बेटे की तरह पाला. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करवाया. जिसके बाद वह मुंबई में पढ़ाई के दौरान कांग्रेस के सदस्य बन गए. उदयपुर वापस लौटे तो इलेक्ट्रिक सामानों की दुकान खोल ली, लेकिन उनकी यह दुकान व्यवसाय कम राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र ज्यादा रही. इसी दौरान उनका संपर्क इंदुबाला से हुआ. आर्यसमाजी परिवार से ताल्लुक रखने वाली इंदुबाला और मोहनलाल ने शादी करने का मन बना लिया.

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इंटरकास्ट मैरिज करके पहुंचे तो नाथद्वारा में हुआ विरोध
मोहनलाल की मां वैष्णव मत को मानने वाली थीं. इंदु और मोहन ने तय किया कि दोनों पास के कस्बे ब्यावर जाएंगे. यहां आर्यसमाजियों का प्रभाव था. 1 जून 1938 को दोनों ब्यावर में थे. आर्यसमाज के मंदिर में शादी कर ली. उनके पहुंचने से पहले ही नाथद्वारा में इस शादी की खबर पहुंच गई. पूरे नाथद्वारा का गुस्सा ऐसा कि शादी के विरोध में अगले दिन बाजार बंद हो गया. उस दौर में रूढ़िवादियों के बीच अन्तरजातीय विवाह कर उन्होंने सामाजिक क्रांति का ही बिगुल बजाया. प्रो. मिश्रीलाल मांडोत लिखते हैं कि एक वैश्य युवक जात-पात के बन्धनों को तोड़कर, रूढ़िगत मान्यताओं से विमुक्त होकर जीवन की एक नई दिशा में चल पड़ा था. उस दौरान उसने नौजवानों के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया.

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शादी के बाद मां का आशीर्वाद चाहते थे सुखाड़िया
इस बीच जब विवाह के बाद वे नाथद्वारा पहुंचे तो अपनी मां का आशीर्वाद भी पाना चाहते थे. सुखाड़िया के मन में तब बहुत कुछ चल रहा था. वह सोच रहे थे कि जो मां उन्हें बचपन से स्नेह से पालती रही और हजारों कल्पनाएं संजोती रही, वही आज मिलने में आत्मग्लानि, घृणा कर रही है. उनके लिए यह विषम परिस्थिति थी. तब उन्होंने सोचा कि इसमें मां का भी क्या दोष. वह ऐसे ही वातावरण में जो पली थीं. बावजूद इन सबके सुखाड़िया आखिर एक ही विश्वास के बूते संतोष करके बैठ गए कि शायद मां का आज का आक्रोश कल आशीर्वाद बन उठे. इसी मानसिक विश्वास का सूत्र लेकर वो उज्ज्वल भविष्य के अच्छे दिनों के इंतजार में चुप हो गए. जिसके बाद स्वाभाविक तौर पर मां के भीतर अपने पुत्र के लिए ममता जागी और उन्होंने यह विवाह स्वीकार कर लिया.

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