जादूगर पर सबकी निगाहें, कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन से पहले गहलोत के पास एक आखिरी मौका! जानें

गौरव द्विवेदी

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Rajasthan Budget 2023: राजस्थान के लिए साल 2023 अहम साल है. इस चुनावी साल में जनता की तकदीर के साथ कई दिग्गज नेताओं की तकदीर का भी फैसला होगा. क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और बीजेपी के राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ीलाल मीणा बीजेपी में अपने कद को लेकर जोर-आजमाइश कर रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत की गुटबाजी के बीच कांग्रेस को भी फैसला लेना होगा.

लेकिन इन सबके बीच अहम है 10 फरवरी को पेश होना वाला राज्य सरकार का बजट. गहलोत तीसरे कार्यकाल का आखिरी बजट पेश करते समय क्या कुछ तीर चलाते हैं, यह तो समय बताएगा. गहलोत ये जरूर चाहेंगे कि उनकी महत्वकांक्षी योजनाओं के पिटारें में एक उपलब्धि और जुड़ सके. बजट की थीम बचत, बढ़त और राहत के जरिए उन्होंने पहले ही मंशा जाहिर की दी है. 

फिर चाहे वह राइट टू हैल्थ बिल की शक्ल में हो या कुछ और. इसी बजट के ठीक 2 हफ्ते बाद 24 फरवरी को छत्तीसगढ़ के रायपुर में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन होगा. ऐसे में गहलोत के लिहाज से यह भी अहम है कि जिस तरह से चिरंजीवी योजना के सहारे ना सिर्फ गहलोत ने ना सिर्फ मॉडल स्टेट की तस्वीर पेश की, बल्कि राहुल गांधी से भी वाहवाही लूट ली. ठीक वैसे ही वह चाहेंगे कि राइट टू हैल्थ बिल जैसा कोई प्रभावशाली घोषणा पटल पर रखी जाए. ताकि राष्ट्रीय कांग्रेस के दिग्गज नेता छत्तीसगढ़ में भी राजस्थान की चर्चा करें और गहलोत को एक मौका मिल जाए पायलट पर बढ़त बनाने का. चुनावी साल में अब बजट ही उनके पास आखिरी मौका है जिसके बाद वह खुद को जनता की तकलीफों को समझने वाले नेता के तौर पर पेश कर हाईकमान को मजबूर कर दें.

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गौरतलब है कि उदयपुर में चिंतन शिविर हो या राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, कई मौके पर कांग्रेस नेताओं ने गहलोत सरकार की नीतियों को कांग्रेस की नीतियों के तौर पर पेश करते हुए मोदी सरकार पर वार किया. ओपीएस हो या स्वास्थ्य नीति, समय-समय पर गहलोत भी राजस्थान को मॉडल स्टेट बताते हुए केंद्र से इस दिशा में योजनाएं लागू करने की बात करते है.

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हालांकि राइट टू हैल्थ बिल को जहां राजस्थान सरकार प्रदेश की जनता को स्वास्थ्य का कानूनी अधिकार देने के लिए लाना चाहती है. वहीं, पिछले विधानसभा सत्र में पेश करने के बाद से ही प्रदेश के प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टर इस बिल का विरोध कर रहे हैं. वह इसे राइट टू किल जैसी संज्ञा दे चुके हैं. दरअसल, पहली बार बनाए जा रहे स्वास्थ्य का अधिकार के तहत प्राइवेट अस्पताल इलाज के लिए बाध्य हो जाएंगे.

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पहले ही साल में 75 हजार भर्तियों का किया था ऐलान
घोषणाओं की बात करें तो साल 2019 के दौरान अपने पहले ही बजट में कांग्रेस सरकार ने युवाओं को लुभाने की कोशिश की. बजट में 75 हजार नई भर्तियों का ऐलान किया गया. इसके अलावा ईज ऑफ डूइंग फार्मिंग के लिए 1000 करोड़ के किसान कल्याण कोष बनाने की घोषणा के साथ कई सौगात दी गई. इस दौरान दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक की तर्ज पर राजस्थान में भी जनता क्लीनिक खोलने का प्रावधान किया गया. लेकिन अगले ही साल कोरोना महामारी के चलते यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई. जिसके बाद राजस्थान में क्लिनिक का लोकार्पण तो शुरू हुआ, लेकिन खुद सरकार के मंत्रियों की जुबां पर इस नेता का नाम नहीं आता. इसी बात से इस योजना का अंदाजा लगाया जा सकता है. साथ ही नेशनल गेम्स की तर्ज पर स्‍टेट गेम्स की शुरुआत की घोषणा की गई. जिसके तहत साल 2022 में ग्रामीण और शहरी ओलंपिक का महाकुंभ देखने को मिला.

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चिरंजीवी योजना जैसे कदमों से पेश किया मॉडल
यूनिवर्सल (स्वास्थ्य कवच) हेल्थ कवरेज के तहत प्रदेश में 1 मई 2021 से मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की गई थी. जिसके अगले बजट में सीएम गहलोत ने इसका दायरा बढ़ाते हुए आम जनता को राहत प्रदान करते हुए 5 लाख रुपए से बढ़ाकर ₹10 लाख करने की घोषणा की थी. पिछले दो  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 2021-22 की बजट घोषणा में चिरंजीवी योजना की जो सौगात दी, उसे खुद सीएम और तमाम कांग्रेसी नेता ब्रह्मस्त्र की तरह प्रयोग करते हैं. पेपर लीक पर घिरी सरकार खुद की उपलब्धि गिनाते समय चिरंजीवी का गुणगान करना नहीं भूलते. विधानसभा सत्र में भी जब कांग्रेसी विधायकों ने राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर वक्तव्य दिया तो मुख्यमंत्री की इस योजना पर जमकर तारीफ की.

शहरी नरेगा योजना की घोषणा, लेकिन इसी साल बस में पेपर लीक
लगातार महत्वकांक्षी योजना का खाका पेश करते हुए गहलोत खुद की छवि जनकल्याणकारी नेता के तौर पर पेश करने की जुगत में हैं. पिछले साल इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना लागू करने की घोषणा के तहत  मनरेगा की तर्ज पर 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने की बात कही. साथ ही मनरेगा में 100 दिन के रोजगार को बढ़ाकर 125 दिन कर दिया गया. जिसमें आने वाले 700 करोड़ रुपए के खर्च की भी बात गहलोत ने राज्य सरकार के जिम्मे ले ली. लेकिन साल आते-आते पेपर लीक का जिन्न फिर निकला और इस बार सड़क पर घूमती बस में जब नकल गैंग को पकड़ा तो सड़क से लेकर सदन तक सरकार घिर गई. उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने तो यहां तक कह दिया कि पहले सोशल मीडिया पर पेपर लीक होते थे, अब बस में लीक हो रहे हैं.

इस बार के बजट से क्या है उम्मीद, क्या होगा खास
वहीं, चुनावी साल में नए जिले और संभाग के गठन की चर्चा तेज हो गई है. ना सिर्फ प्रदेश के कई हिस्सों से यह मांग उठ रही हैं, बल्कि विधानसभा सत्र में भी कांग्रेस के विधायकों ने ही कई क्षेत्रों को जिला बनाने की मांग कर दी. पिछले काफी समय से नए विश्वविद्यालयों की मांग तेज हो गई है. इसके अलावा किसानों के लिए पैकेज में फसल बीमा बढ़ाना, निश्चित रूप से अनाज और दालों के लिए एमएसपी में वृद्धि, उपज को मंडी तक ले जाने के लिए परिवहन सुविधाएं जैसे भी मुद्दे अहम है.

एक्सपर्ट्स की मानें तो राज्य सरकार का बालिका शिक्षा पर भी फोकस होगा. 18 वर्ष से अधिक आयु की लड़कियों के लिए शिक्षा के लिए विशेष प्रोत्साहन की योजना महिला वोट के लिहाज से खास हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि महिलाओं को स्मार्टफोन देने की योजना लटकने के चलते इस वर्ग पर निशाना साधने की कांग्रेस की कोशिश हो सकती है. हाल ही में जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सक्रियता और अपने सरकार के दौरान दी गई स्कूटी पर सवारी करके महिला वोट बैंक में फिर से सेंध लगाने की कोशिश हो सकती है.

ईआरसीपी पर केंद्र को देंगे जवाब!
साथ ही यह देखना दिलचस्प होगा कि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना यानी ईआरसीपी को लेकर केंद्र पर हमलावर गहलोत खुद इस बजट में क्या खास करते हैं? क्योंकि पूर्वीराजस्थान में मोदी के दौरे के प्रस्तावित दौरे के पहले क्षेत्रवासियों ने इस मांग को फिर से उठा दिया है. साथ ही ईआरसीपी नहीं तो वोट नहीं के पोस्टर दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में राज्य सरकार की ओर से इस परियोजना के लिए खास फंड देने से भी पूर्वी राजस्थान की सियासी तस्वीर बदल सकती है.

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