विधायकों का नहीं था समर्थन, एक डॉक्टर के संदेश से बदली शिवचरण माथुर की किस्मत, बने CM
Siasi Kisse: विधायक दल के नेता के तौर पर या शक्ति प्रदर्शन के चलते कई राजनेताओं को मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने का मौका मिला, लेकिन राजस्थान की सियासत में एक मौका ऐसा भी आया जब कांग्रेस में बिना किसी विधायक के समर्थन के 3 बार के एक विधायक को सिविल लाइंस की सबसे बड़ी कुर्सी […]
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Siasi Kisse: विधायक दल के नेता के तौर पर या शक्ति प्रदर्शन के चलते कई राजनेताओं को मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने का मौका मिला, लेकिन राजस्थान की सियासत में एक मौका ऐसा भी आया जब कांग्रेस में बिना किसी विधायक के समर्थन के 3 बार के एक विधायक को सिविल लाइंस की सबसे बड़ी कुर्सी मिली. यह किस्सा है ऐसे ही एक नेता शिवचरण माथुर का. कुल 3 बार के विधायक माथुर ने 14 जुलाई 1981 को मुख्यमंत्री शपथ ली.
यह पूरा वाकया निधन से पहले खुद माथुर ने प्रमोद तिवारी से बातचीत के दौरान साझा किया. दरअसल, किस्सा शुरू होता है 11 जुलाई 1981 की दोपहर से. पृथ्वीराज रोड स्थित पुराने राजस्थान हाउस के भवन में शिवचरण माथुर, हीरालाल देवपुरा जैसे तमाम नेताओं के साथ मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया को हटवाने के लिए दिल्ली डेरा डाले हुए थे.
तभी राजस्थान हाउस के रिसेप्शन पर लगे टेलीफोन की घंटी बज गई. शिवचरण माथुर को बुलाने के लिए कहा जाता है और माथुर ने जब फोन उठाया तो फोन पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पर्सनल फिजीशियन डॉ. केपी माथुर थे. उन्होंने तुरंत राजस्थान हाउस खाली करने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि जयपुर के लिए रवाना हो जाइए और पृथ्वीराज रोड पर ही दो रेडलाइट के बाद तीसरी रेडलाइट पर साइड में खड़े हो जाइए. आप के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर मैं वहीं आ रहा हूं.
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इंदिरा गांधी का था संदेश, सीएम बनने से पहले पत्नी से नहीं कर सकते थे साझा
डॉ. केपी माथुर का संदेश सुनकर शिवचरण माथुर ने आनन-फानन में अपना सामान पैक कर एक कार को खुद ही चलाकर डॉ. माथुर की बताई जगह पर पहुंच गए. कुछ ही देर में डॉ. माथुर आए और उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आपके लिए संदेश है. आप तुरंत जयपुर जाइए, 3 दिन बाद आप राजस्थान के मुख्यमंत्री बनाए जाने वाले हैं. जगन्नाथ पहाड़िया मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देंगे, फिर दूसरे दिन ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी से ऑब्जर्वर आएंगे और वह आपके नाम की प्रदेश कांग्रेस कमेटी में घोषणा करेंगे.
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डॉ. केपी माधुर ने कहा कि आपको बिना समय गवाएं उसी दिन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी है. यह ध्यान रहे कि यह संदेश आप अपनी पत्नी से भी साझा नहीं करेंगे, नहीं तो यह निर्णय बदल भी सकता है. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का डॉ. माथुर की ओर से दिया गया संदेश पाकर शिवचरण माथुर जयपुर तो आ गए और 3 दिन तक इतने महत्वपूर्ण संदेश को अपनी पत्नी से छिपा कर रखा. जैसा डॉ. माथुर ने बताया था वैसा ही हुआ. 12 जुलाई को जगन्नाथ पहाड़िया ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और 14 जुलाई को प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक में आए ऑब्जर्वर ने माथुर के नाम का सीएम के लिए ऐलान किया. शाम 4 बजे उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली.
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मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने वाले जगन्नाथ पहाड़िया भी जोर लगा रहे थे. वह चाहते थे कि भीलवाड़ा के तत्कालीन सांसद और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके गिरधारीलाल व्यास को 70 से अधिक कांग्रेस विधायकों के साथ के चलते मुख्यमंत्री बना दिया जाए. शिवचरण माथुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद गिरधारी लाल व्यास ने 20 सूत्री कार्यक्रम की तर्ज पर पूरे राजस्थान में माथुर हटाओ के नाम पर एक सूत्री कार्यक्रम भी चलाया था. बाद में 1988 में माथुर के मुख्यमंत्री के दूसरे कार्यकाल में गिरधारीलाल व्यास और शिवचरण माथुर में सुलह भी हो गई थी.
नगरपालिका चेयरमैन से शुरू हुआ था सियासी सफर
शिवचरण माथुर का सियासी सफर भीलवाड़ा नगर पालिका के चेयरमैन से शुरू हुआ था. बाद में भीलवाड़ा जिला परिषद के प्रमुख बनाए गए. साल 1964 में लोकसभा के उपचुनाव में सांसद बने और 1967 में जिले की मांडल विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने के साथ ही सुखाड़िया मंत्रिमंडल में शामिल हो गए. इसके बाद वे मांडल के पंचायत समिति प्रधान अपने मित्र विजय सिंह के खातिर मांडल छोड़कर मांडलगढ़ चले गए और वहीं के होकर रह गए. 1971 से लेकर साल 2003 तक माथुर ने 7 चुनाव लड़ा. साल 1977 के अलावा उन्होंने 6 बार चुनाव जीते. राजस्थान के प्रमुख स्वाधीनता सेनानी और आजादी के बाद संयुक्त राजस्थान के प्रथम प्रधानमंत्री माणिक्यलाल वर्मा के दामाद होने का भी फायदा शिवचरण माथुर को मिला. 1 जनवरी 1945 को वर्मा की बेटी सुशीला माथुर के साथ उनका विवाह हुआ.
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