जैसलमेर में मौजूद है 1500 साल पुराना शिव मंदिर, लेकिन ग्रामीण नहीं करते पूजा, जानें क्यों

विमल भाटिया

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Mahashivratri 2023: आज पूरे देश में शिवरात्रि का जश्न मनाया जा रहा है, शिवालय सजे हुए हैं. श्रद्धालुओं व दर्शरनार्थ हेतु लंबी-लंबी लाइनेंलगी हुई है लेकिन जैसलमेर जिला मुख्यालय से करीब 17 किमी दूर कभी प्राचीन रियासत रही लुद्रवापुर में स्थित 1500 साल पुराना एक ऐसा प्राचीन शिव मंदिर है, जहां पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है और आज शिव रात्रि के दिन न तो यहां कोई सजावट है और नहीं कोई भक्तों की भीड़. कारण सुनकर भी आप चोंक जाएंगे, विक्रम संवत 1135 में तत्कालीन मुगल आक्रांता मोहमद  गजनवी ने सोमनाथ जाते समय लुद्रवापुर में खूब लूटपाट मचाते हुए कई मंदिरों में तोड़ फोड़ थी और कई को नष्ट किया था. उस दौरान गजनी ने इस शिव मंदिर की मूर्ति को भी नुकसान पहुंचाया था. तब यह भगवान भोलेनाथ की मूर्ति खंडित हो गई थी. तब से खंडित मूर्ति वाले प्राचीन शिव मंदिर में पूजा अर्चना नहीं होती है, यदा कदा आसपास के लोग ग्रामीण दर्शरनार्थ आते हैं.

असल में आदि काल से ही शिव की उपासना व शिव के मन्दिर विभिन्न रूपों में प्रचलित है और अलग-अलग तरीकों से बने हुए हैं लेकिन हम आपको जैसलमेर के लुद्रावापुर में स्थित आठवीं शताब्दी के एक ऐसे अनूठे चर्तुमुखी शिव मन्दिर से रूबरू करवा रहे हैं, जो जीर्ण-शीर्ण होने के बावजूद भी अनूठा व चमत्कारिक बना हुआ है. लुद्रवापुर की पूरी राजधानी आज भी जमीन में दफन हैं लेकिन इस शिव मन्दिर का यह चमत्कार हैं कि यह आज भी विद्यमान हैं और सबसे खास बात हैं कि यह चर्तुमुखी है. भारत में त्रिमूर्ति वाले शिव मन्दिर तो बहुत हैं लेकिन चर्तुमुखी वाले मन्दिर तो शायद गिने चुने हैं. हालांकि इतिहास में इस मन्दिर की चर्चा पंचमुखी के रुप में की गई हैं.

जैसलमेर की प्राचीन राजधानी लुद्रवापुर का उल्लेख करें तो इसका पुराना नाम रुद्रपुर था और रुद्र का अर्थ शिव ही होता हैं. और सबसे खास बात इस क्षेत्र के करीब 10 किलोमीटर क्षेत्र में दर्जनों शिव मन्दिर ऐसे हैं जो आज भी जीवन्त हैं और लोगों की आस्था व विश्वास का प्रतीक बने हुए हैं, जिसमें खासतौर पर चूंधी पर त्रिमूर्ति शिव मन्दिर, वैशाखी में भूतेश्वर मन्दिर व अमरसागर का शिव मन्दिर प्रमुख रुप से शामिल है.

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लुद्रवापुर में मूमल की मेड़ी के पास स्थित जीर्ण-शीर्ण अवस्था में वर्तमान में चर्तुमुखी शिव मन्दिर आज भी अपनी कई पुरानी इतिहास की यादों को समेटे हुए हैं. करीब 12-13 साल पूर्व यहां पर भारतीय पुरातत्व संर्वेक्षण विभाग द्वारा की गई खुदाई में एक प्राचीन शिव मन्दिर का ऊपरी हिस्से के अवशेष व सैकड़ों की तादात में शिव मूर्तियां निकल कर बाहर आई थी. जिससे यह स्पष्ट हो गया कि इस क्षेत्र की जनता शिव उपासक थी. आज भी इस चर्तुमुखी शिव मन्दिर को देखने के लिए दर्जनों देशी विदेशी सैलानी प्रतिदिन यहां आते हैं और देश के गिने चुने चर्तुमुखी शिव मन्दिरों में से एक इस मन्दिर में पूजा अर्चना भी करते हैं.

जैसलमेर के इस मन्दिर जिसे इतिहास में पंचमुखी भी कहा गया है जिसकी हालत काफी जर्जर व जीर्णोशीर अवस्था में पहुंचती जा रही हैं. मूर्ति के एक हिस्से के साथ छेड़छाड़ करने से तोड़ने के प्रयास किये गए हैं. यहां पर किसी प्रकार का चौकीदार ना होने से आसपास बिखरी हुई इस मन्दिर की बेहतरीन शिल्प सौन्दर्य वाले पत्थरों की चोरी होने की संभावना से भी इंकार नही किया जा सकता. मन्दिर का शिवलिंग व नंदी की हालत भी ठीक नही हैं. कुछ समय पूर्व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा मूमल की मेड़ी का कार्य शुरु करवाया था, तब इस मन्दिर की छोटी-मोटी रिपेयरिंग भी करवाई गई थी लेकिन अभी भी यह काफी बदहाल स्थिति में मौजूद है.  ग्रामीणों की मांग है कि प्राचीन इस धरोहर को हर हाल में बचाया जाना चाहिए.

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ग्रामीणों का कहना है कि चूंकि इस प्राचीन शिव मंदिर की मूर्ति खंडित है और खण्डित मंदिर में पूजा अर्चना नहीं की जाती है. ऐसे में यहां भी पूजा अर्चना नहीं होती है. साल में कभी कभार या शिव रात्रि आदि के त्यौहार आदि के अवसर पर ग्रामीणों द्वारा यहां पर आकर रात्रि जागरण या भजन कीर्तन किये जाते हैं.

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