श्रीराम के वंश से है महाराणा प्रताप के वंश का है ये खास कनेक्शन, जानें कैसे?

राजस्थान तक

22 Jan 2024 (अपडेटेड: Jan 22 2024 10:47 AM)

Ayodhya Ram Temple: अयोध्या में आज 22 जनवरी को भगवान रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा (Ayodhya Ram Temple) हो गई. इस ऐतिहासिक पल के सामने आने के बाद देशभर में उत्साह है. वहीं, देश की कई प्रमुख हस्तियों ने इस कार्यक्रम में शिरकत भी की. इस कार्यक्रम में मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य और महाराणा प्रताप […]

Lakshyaraj singh mewar

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Ayodhya Ram Temple: अयोध्या में आज 22 जनवरी को भगवान रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा (Ayodhya Ram Temple) हो गई. इस ऐतिहासिक पल के सामने आने के बाद देशभर में उत्साह है. वहीं, देश की कई प्रमुख हस्तियों ने इस कार्यक्रम में शिरकत भी की. इस कार्यक्रम में मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य और महाराणा प्रताप के वंशज डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ (Dr. Lakshyaraj singh mewar) भी आमंत्रण मिलने के बाद इस अद्भुत क्षण के गवाह बने. खास बात यह है कि ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक मेवाड़ का पूर्व राजवंश भगवान श्रीराम के वंशज भी हैं. जिसका प्रमाण कई शिलालेखों और ऐतिहासिक पुस्तकों में भी मिलते हैं. दरअसल, श्रीराम के वंशज मेवाड़ आए और गुहिलोत (सिसोदिया) वंश की स्थापना की.

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मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के मुताबिक वे श्रीराम के वंशज हैं और मेवाड़ का राज प्रतीक भी सूर्य है. एक समानता यह भी है कि श्रीराम की तरह ही मेवाड़ राजपरिवार भी एकलिंगनाथजी (शिवजी) का उपासक है. ये सूर्यवंशी श्रीराम के वंशज होने का ऐतिहासिक प्रमाण है.

श्रीराम के पुत्र कुश की वंशावली का भी मिलता है उल्लेख

दरअसल, इतिहासकार कविराज श्यामलदास की ऐतिहासिक पुस्तक वीर विनोद में इसका विस्तृत उल्लेख है. जिसमें मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार को सूर्यवंशी लिखा है. इस पुस्तक में भगवान श्रीराम के पुत्र कुश के वंशजों की वंशावली का भी उल्लेख है. जिसमें राजपरिवार की 76 पीढ़ियों का इतिहास दर्ज है. करीब 363 वर्षों से भी प्राचीन राज-प्रशस्ति ग्रंथ में सृष्टि के शुरुआत से लेकर सूर्यवंश तक का विस्तृत वर्णन किया गया है. जिसमें सूर्य, श्रीराम से लेकर मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा अमर सिंह द्वितीय तक का वंश का क्रम-वार जिक्र है. इतिहासकारों के मुताबिक महाराणा राजसिंह के शासनकाल में पं. रणछोड़ भट्ट ने राज-प्रशस्ति नाम का ग्रंथ लिखा. इसको महाराणा जयसिंह ने शिलालेख पर उत्कीर्ण कराया. विश्व के इस सबसे बड़े शिलालेख का संबंध मेवाड़ राजवंश से है.

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