Udaipur News: अनेक रंगों के साथ होली तो हम देखते और खेलते आए हैं, लेकिन आज हम रंगों वाली होली की बात नहीं कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं बारूद, बंदूक, तोप, तलवार व आतिशबाजी वाली होली की. वैसे तो उदयपुर झीलों की नगरी, खूबसूरती और इतिहास के लिए जाना जाता है.
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उदयपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर मेनार गांव में धुलेंडी के दूसरे दिन बारूदी होली खेली जाती है. इस होली में सभी लोग आमने-सामने खड़े रहकर झुंड बनाकर बंदूकों से हवाई फायर करते हैं. होली का जश्न और दिवाली जैसा माहौल ज्यादा लगने लगता है.
खुले आसमान में तोप छोड़ी जाती हैं. तलवारें लहरा-लहरा कर इस त्यौहार को सेलिब्रेट किया जाता है. इस गांव में रहने वाला व्यक्ति किसी भी त्यौहार को घर पर आए ना आए पर कितनी भी दूर क्यों ना हो इस बारूदी होली के दिन यहां पर जरूर पहुंचता है. आसपास के क्षेत्र से ग्रामीण आकर इस में सम्मिलित होते हैं और पूरी रात इसी रस्म के साथ बारूदी होली खेली जाती है. इस होली को खेलते समय आज तक यहां पर किसी भी प्रकार की कोई जान माल की हानि नहीं हुई है.
मान्यता है कि महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह के शासनकाल में मेवाड़ पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए मेनारिया ब्राह्मणों ने दुश्मनों से युद्ध लड़ा. यह युद्ध रात के समय लड़ा गया था. जब सभी दुश्मनों को मारकर मेनारिया ब्राह्मणों ने मौत के घाट उतार दिया था, मेवाड़ पर हो रहे अत्याचारों का अंत किया तभी से मेनारिया गांव में उस रात की याद में बारूदों की होली की परंपरा चली आ रही है.
लगभग 450 वर्षों से यह मेनारिया गांव के लोग इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं और धुलेंडी के दूसरे दिन खुलकर वह इस त्यौहार को बड़ी आतिशबाजी के साथ मनाते हैं. जिसमें बंदूक, बारूद, तोप, पटाखे व तलवार सब देखने को मिलते हैं. दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला मेनारिया गांव का व्यक्ति इस त्यौहार से दूर नहीं रहता है.
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