राजस्थान के एकमात्र दलित CM जिनकी एक टिप्पणी के कारण 13 माह में ही चली गई थी कुर्सी
Siasi Kisse: राजस्थान में महज 13 महीने मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ पहाड़िया की सीएम बनने से लेकर कुर्सी छीनने तक की कहानी आज भी गाहे-बगाहे चर्चाओं में रहती है. राजस्थान के वे पहले दलित मुख्यमंत्री रहे. हालांकि इन 13 महीनों में उन्होंने प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी कर दी थी. जगन्नाथ पहाड़िया संजय गांधी के काफी करीबी […]
ADVERTISEMENT
Siasi Kisse: राजस्थान में महज 13 महीने मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ पहाड़िया की सीएम बनने से लेकर कुर्सी छीनने तक की कहानी आज भी गाहे-बगाहे चर्चाओं में रहती है. राजस्थान के वे पहले दलित मुख्यमंत्री रहे. हालांकि इन 13 महीनों में उन्होंने प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी कर दी थी. जगन्नाथ पहाड़िया संजय गांधी के काफी करीबी थे और उनका राजनीति में आना भी एक रोचक वाकया है.
बताया जाता है कि 1957 में एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता 25 साल के पहाड़िया को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिलवाने ले गए थे. नौजवान देख नेहरू ने पहाड़िया से पूछा- कैसा चल रहा है देश? बस फिर क्या था, पहाड़िया ने बेबाकी से जवाब देकर पंडित नेहरू का दिल जीत लिया. पहाड़िया ने पंडित नेहरू से कहा कि बाकी चीजें तो ठीक चल रही हैं, लेकिन देश में दलितों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है.
इसके बाद पंडित नेहरू ने उनसे कहा कि आप चुनाव क्यों नहीं लड़ते. इसके जवाब में पहाड़िया ने कहा कि आप टिकट देंगे और मौका देंगे तो चुनाव जरूर लड़ूंगा. इस तरह सिर्फ 25 साल की उम्र में जगन्नाथ पहाड़िया की राजनीति में एंट्री हो गई. साल 1957 में पहली बार पहाड़िया सवाईमाधोपुर सीट से चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे. 1957 में दूसरी लोकसभा में जगन्नाथ पहाड़िया सबसे कम उम्र के सांसद थे. इस तरह से पहाड़िया का चुनावी सफर शुरू हुआ था.
ADVERTISEMENT
यह भी पढ़ें...
संजय गांधी के नजदीकी रहे
जगन्नाथ पहाड़िया संजय गांधी के काफी करीबी थे. उनके मुख्यमंत्री बनने की सबसे बड़ी वजह भी यही थी. पहाड़िया इंदिरा गांधी के भी नजदीकी थे. ऐसा माना जाता है कि संजय गांधी से नजदीकी की वजह से ही उनकी राजनीति परवान चढी. कई दिग्गज नेताओं को किनारे कर 6 जून 1980 को वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे. दिल्ली में हुई विधायक दल की बैठक में उन्हें नेता चुना गया था. इस बैठक में संजय गांधी खुद मौजूद थे. हालांकि संजय गांधी के निधन के बाद पहाड़िया का रुतबा कुछ कम हो गया, लेकिन वे 2008 तक सक्रिय राजनीति में रहे. इसके बाद एक दशक से ज्यादा वक्त तक वे कभी कभार पार्टी के बड़े कार्यक्रमों में ही दिखते थे.
ADVERTISEMENT
ऐसे गई थी मुख्यमंत्री की कुर्सी
1980 में पहाड़िया केवल 13 महीने मुख्यमंत्री रहे थे. उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने का किस्सा भी काफी रोचक है. बताया जाता है कि जयपुर में एक समारोह में उन्होंने कवयित्री महादेवी वर्मा की कविताओं को लेकर टिप्पणी की थी. उसके चलते उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. जयपुर में लेखकों के एक सम्मेलन में सीएम के तौर पर पहाड़िया को बुलाया गया था. उस कार्यक्रम में छायावाद की कविताओं के लिए मशहूर कवयित्री महादेवी वर्मा भी मौजूद थीं. पहाड़िया ने महादेवी वर्मा की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा था, “महादेवी वर्मा की कविताएं मेरे कभी समझ नहीं आईं कि वे क्या कहना चाहती हैं. उनकी कविताएं आम लोगों के सिर के ऊपर से निकल जाती हैं, मुझे भी कुछ समझ में नहीं आतीं. साहित्य आम आदमी को समझ आए ऐसा होना चाहिए.”
ADVERTISEMENT
बताया जाता है कि पहाड़िया की इस टिप्पणी के बारे में महादेवी वर्मा ने इंदिरा गांधी से शिकायत कर दी थी. उसके बाद पहाड़िया को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था. कई राजनीतिक जानकारों ने तो यह भी कहा था कि महादेवी वर्मा की कविताओं पर टिप्पणी तो बहाना था, उन्हें हटाने की असली वजह तो उनका विरोध होना था.
इस तरह 14 जुलाई 1981 को कुर्सी भी छिन गई. पहाड़िया उसके बाद राजनीति की मुख्यधारा में नहीं आ पाए. हालांकि, बाद में उन्हें बिहार और हरियाणा का राज्यपाल बनाया गया. 19 मई 2021 को 89 साल की उम्र में कोरोना संक्रमण के चलते दूसरी लहर में जगन्नाथ पहाड़िया ने गुड़गांव के अस्पताल में अंतिम सांस ली. उनका गुड़गांव में ही राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया.
यह भी पढ़ें: राजनीति के जादूगर गहलोत जिस सीट से हारे पहला चुनाव, उसी को बनाया अपना गढ़, जानें
ADVERTISEMENT