भीलवाड़ा: ठंड नहीं पड़ने से अफीम की फसल की ग्रोथ रुकी, रोग लगने से फीकी हुई काले सोने चमक

Pramod Tiwari

22 Dec 2022 (अपडेटेड: Dec 22 2022 1:57 PM)

Bhilwara News: इस सीजन में राजस्थान में ठंड कमजोर रही है. इसका असर सीधा-सीधा फसलों पर भी पड़ा है. ठंड ने राजस्थान के काले सोने की फसल को भी प्रभावित किया है. बता दें पिछले साल की तुलना में कम ठंड पड़ने से अफीम (जिसे काला सोना भी कहते हैं) के पौधों की ग्रोथ में […]

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Bhilwara News: इस सीजन में राजस्थान में ठंड कमजोर रही है. इसका असर सीधा-सीधा फसलों पर भी पड़ा है. ठंड ने राजस्थान के काले सोने की फसल को भी प्रभावित किया है. बता दें पिछले साल की तुलना में कम ठंड पड़ने से अफीम (जिसे काला सोना भी कहते हैं) के पौधों की ग्रोथ में जबरदस्त कमी आई है. साथ ही कम ग्रोथ के कारण अफीम के पौधों में रोग भी लगने लगा है. इस स्थिति को देखकर अफीम उत्पादक किसानों की चिंता बढ़ गई है. बता दें काफी खर्चों से होने वाली इस खेती में रोग लगने से उत्पादन में भारी कमी आएगी. जिसका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा.

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गौरतलब है कि भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया, मांडलगढ़ और कोटडी उपखंड के साथ-साथ जहाजपुर उपखंड के कुछ गांवों में पट्टे लेकर इस मौसम में अफीम की खेती की जाती है. जिसका उत्पादन तेज ठंड पर बहुत निर्भर करता है. इस सीजन में दिसंबर महीने का तीसरा सप्ताह बीत जाने के बाद भी क्षेत्र में दिन का तापमान 26 से 28 डिग्री सेल्सियस और रात का 8 से 9 डिग्री सेल्सियस बना हुआ है. जबकि पिछले साल इन्हीं दिनों में दिन का तापमान लगभग 20 डिग्री सेल्सियस और रात में 5 से 6 डिग्री सेल्सियस रहा था. जिससे अफीम के पौधे की बहुत अच्छी ग्रोथ हुई थी और उत्पादन भी अच्छा मिला. अभी मौसम में ठंड का असर नहीं होने से किसानों के चेहरे मुरझा गए हैं.

जानकारी के अनुसार अकेले बिजोलिया उपखंड में नारकोटिक्स विभाग ने 4 गांव चांद जी की खेड़ी में 22, गोपालपुरा में पांच, बृजपुरा में 7 और देवी निवास में एक पट्टे में अफीम की खेती के 6, 10, और 12 आरी के लगभग 35 पट्टे जारी किए थे. अफीम उत्पादक किसान नवंबर में अफीम की पौध लगाते हैं और फरवरी और मार्च महीने में डोडे आने पर उन पर चीरा लगाते हैं. इसके बाद विभाग द्वारा अप्रैल माह में अफीम की तुलाई करके उसकी गुणवत्ता के आधार पर काश्तकारों को भुगतान होता है.

किसानों ने बताई पीड़ा
चांद जी की खेड़ी के अफीम उत्पादक किसान राजेश धाकड़ कहते हैं कि अमूमन अफीम के पौधों को 8 से 10 बार पानी देकर तैयार कर लिया जाता है. लेकिन इस बार अभी दिसंबर खत्म भी नहीं हुआ कि मैंने 8 से 10 बार सिंचाई तो कर दी है. अब भी कम से कम 5 से 6 बार सिंचाई यानी 15 बार सिंचाई करनी होगी. इसके बाद भी पौधों की ग्रोथ पिछले साल की तुलना में है. पत्ते पीले पड़ कर उन पर काले निशान होने से झुलसा रोग लग चुका है.

किसान राजेश धाकड़ ने बताया कि सर्दी नहीं पड़ने से अफीम के पौधों में फुटान (vegetative growth) नहीं है. जहां इस समय तक अफीम के पौधों की ऊंचाई साढ़े 3 से 4 फीट तक हो जाती थी, इसबार यह ऊंचाई मात्र 2 फीट रह गई है. जहां पौधों में 10 से 15 डंठल निकल आते थे, जिन पर डोडे लगते हैं अभी उनकी संख्या केवल 2 से 3 रह गई है। अपनी चिंता बताते हुए आगे कहते हैं कि पहले अफीम के पौधों को सर्दी के मौसम में 15 दिन में एक बार पानी देते थे. अब सात-आठ दिन में पानी देना पड़ रहा है. पौधों में निराई गुड़ाई के समय लगभग 25 से 30 दिन तक पानी नहीं देते थे. मगर इस बार निराई गुड़ाई के बाद 19 दिन बाद ही पानी देना पड़ा. इसके बाद भी मेरे खेत में गर्मी के कारण 100 पौधे खराब हो गए और पौधों का पूर्ण विकास नहीं होने से इनकी जड़ें कमजोर हो गई.

गौततलब है कि अफीम की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु और 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ सभी प्रकार की मिट्टी को उपयुक्त बताया गया है. फिर भी इसकी खेती के लिए चिकनी या दोमट मिट्टी को ज्यादा बेहतर बताया गया है. जिसका PH लेवल 7 हो, ठंडी जलवायु इसका उत्पादन बढ़ाने में उपयोगी होती है. वहीं दिन और रात का तापमान इसके उत्पादन को बहुत प्रभावित करता है. फ्रास्टी तापमान बादल या बारिश का मौसम न केवल अफीम की मात्रा कम करता है बल्कि उसकी गुणवत्ता भी कम कर देता है.

काली मस्सी रोग का है प्रकोप, 3 साल तक खेत में रहता है प्रभाव
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के अनुसंधान निदेशक डॉक्टर शांति कुमार शर्मा ने बताया कि कड़ाके की ठंड नहीं पडने से अफीम के पौधों में काली मस्सी रोग (Downey Mildew Caused by Dungi) लगा है. जो रात और दिन के तापमान में वृद्धि के कारण फैलता है. डॉ शांति कुमार शर्मा ने यह भी बताया कि मृदुरोमिल फफूंद खेत में यह रोग एक बार आ जाए तो अगले 3 साल तक उस खेत में अफीम नहीं बोना चाहिए. रोग की रोकथाम के लिए मेटैलेक्सिल के 0.2 प्रतिशत गोल के तीन छिड़काव बुवाई के 30, 50 और 70 दिन के बाद करना चाहिए. यदि यह रसायन उपलब्ध ना हो और रोग के लक्षण दिखाई देने पर 2 किलो मैनकोज़ेब प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए.

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